बादल ने ही बनवाई वाजपेयी की सरकार: बाबरी विध्वंस के बाद BJP के साथ डटे रहे; पर्दे के पीछे रहकर दूसरे दलों को NDA में लाए

पंजाब के 5 बार CM रहे प्रकाश सिंह बादल ने नेशनल पॉलिटिक्स में भी अपनी सियासी समझ-बूझ का लोहा मनवाया। वर्ष 1992 में हुए बाबरी विध्वंस के बाद बादल BJP के साथ डटे रहने वाले इकलौते ऐसे नेता थे जो माइनोरिटी कम्युनिटी से आते थे। वर्ष 1996 से 1999 के दौरान BJP को अछूत मानने वाले तमाम क्षेत्रीय दलों को NDA के बैनर तले लाने में भी सबसे अहम रोल बादल ने ही निभाया।

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पंजाब में भी BJP और शिरोमणि अकाली दल के अंदरूनी विरोध के बावजूद उन्होंने भाजपा का साथ नहीं छोड़ा। हालांकि अंतिम दिनों में सियासी तौर पर बादल की सक्रियता घटने और केंद्र की ओर से बनाए गए तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर अकाली दल BJP से अलग हो गया।

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अटलजी की 13 दिन की सरकार का समर्थन किया
वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में BJP देशभर में 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस तब 140 सीटें जीतीं। अकाली दल ने पंजाब की 13 में से 8 सीटें जीतीं तो अपने सांसदों को लेकर बादल दिल्ली स्थित पंजाब भवन पहुंच गए। उन्होंने BJP के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात कर कहा कि अकाली दल उनके साथ है।

हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के तब 4 सांसद थे। बादल के कहने पर चौटाला ने भी वाजपेयी को समर्थन दे दिया जबकि शिवसेना पहले से BJP के साथ थी। उसके बाद वाजपेयी प्रधानमंत्री बने मगर बहुमत साबित नहीं कर पाए और 31 मई 1996 को 13 दिन में उनकी सरकार गिर गई।

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देवेगौड़ा के साथ नहीं गए
वाजपेयी के इस्तीफा देने के अगले दिन यानि 1 जून 1996 को 24 छोटे-छोटे क्षेत्रीय दलों ने संयुक्त मोर्चा बनाकर एचडी देवेगौड़ा को अपना नेता चुना। कांग्रेस के समर्थन से देवेगौड़ा प्रधानमंत्री बन गए। वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद अकाली दल के कई सांसद संयुक्त मोर्चा के साथ जाने के पक्ष में थे मगर बादल ने सख्त लहजे में इनकार कर दिया। उन्होंने साफ कर दिया कि जिसे कांग्रेस का समर्थन मिला है, उन्हें हम सपोर्ट नहीं करेंगे।

1998 में NDA बनाकर 13 क्षेत्रीय पार्टियों को BJP के साथ लाए
देवेगौड़ा और उसके बाद आईके गुजराल की सरकार कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और 1998 में मध्यावधि चुनाव हुए। अटल-आडवाणी-जोशी के उस दौर में BJP की अगुवाई वाले नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) का गठन हुआ। तब देशभर की 13 क्षेत्रीय पार्टियों को NDA के बैनर तले लाने में सबसे अहम रोल बादल ने ही निभाया। उस चुनाव में BJP 182 सीटें लेकर लगातार दूसरी बार सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और वाजपेयी दोबारा प्रधानमंत्री बने।

वाजपेयी 13 महीने प्रधानमंत्री रहे और अप्रैल, 1999 में सिर्फ एक वोट से विश्वास मत हार गए। वाजपेयी के इसी कार्यकाल में 11 मई, 1998 को दूसरा परमाणु परीक्षण किया गया। 1999 में फिर मध्यावधि चुनाव हुए जिसके बाद वाजपेयी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और इस बार अपना कार्यकाल पूरा किया। BJP को राजनीतिक स्वीकार्यता दिलाने में अहम रोल निभाने वाले बादल का मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत तमाम दूसरे भाजपा दिग्गज पूरा सम्मान करते रहे।

बाबरी विध्वंस के साथ BJP से जुड़ने वाले माइनोरिटी कम्युनिटी के पहले नेता
1992 में जब यूपी में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराया गया तो मुस्लिमों की नाराजगी के चलते तमाम सियासी पार्टियों और अल्पसंख्यक दलों के नेताओं ने BJP से दूरी बना ली। अल्पसंख्यकों की नाराजगी के चलते कोई भी पार्टी BJP के साथ आने को तैयार नहीं थी। उस समय प्रकाश सिंह बादल माइनोरिटी कम्युनिटी से आने वाले पहले ऐसे नेता थे, जिन्होंने BJP से गठजोड़ किया। सियासत की नब्ज समझने वाले बादल समझ चुके थे कि आगे भाजपा का ही भविष्य है।

PM नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री रहते उनसे मुलाकात के दौरान हंसी के अंदाज में पूर्व CM प्रकाश सिंह बादल।

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वह भाजपा और अकाली दल के गठजोड़ को नाखून और मांस जैसा रिश्ता बताते थे जो कभी एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। इसी वजह से जब 2014 में केंद्र में BJP की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी तो भी बादल की पुत्रवधू हरसिमरत कौर बादल को नरेंद्र मोदी ने मंत्री बनाया। वर्ष 2019 में मोदी सरकार में हरसिमरत फिर मंत्री बनीं। हालांकि बाद में किसान आंदोलन के चलते अकाली दल ने BJP से गठजोड़ तोड़ दिया और हरसिमरत ने इस्तीफा दे दिया।

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राष्ट्रीय राजनीति रास नहीं आई, ढाई महीने में छोड़ दिया मंत्री पद
मार्च 1977 में केंद्र में मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी की सरकार बनी। उसमें प्रकाश सिंह बादल को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री बनाया गया। मगर, केंद्र की राजनीति उन्हें पसंद नहीं आई। लगभग ढाई महीने बाद ही बादल ने केंद्रीय मंत्री का पद छोड़ दिया। उसके बाद वह कभी पंजाब की राजनीति से बाहर नहीं निकले। 5 बार सूबे के CM बने। मुक्तसर जिले में आती लंबी विधानसभा सीट से लगातार 10 बार लगातार चुनाव जीतकर विधायक बने।

SP को इंतजार कराने पर पत्नी ने डांटा
वर्ष 1970 में जब प्रकाश सिंह बादल पहली बार पंजाब के CM बने, तब उनकी उम्र सिर्फ 43 साल थी। प्रकाश सिंह बादल खुद बताया करते थे कि एक दिन वह बादल गांव स्थित अपने पैतृक घर की छत पर कुछ फाइलें देख रहे थे। तब जिले का SP मिलने आ गया तो उन्होंने इंतजार करने को कहा। बाद में फाइलें देखते-देखते वह उसे भूल गए। लगभग घंटेभर बाद उनकी पत्नी सुरिंदर कौर गुस्से में छत पर आई और डांटते हुए कहने लगीं कि इतना बड़ा अफसर नीचे इंतजार कर रहा है और आप यहां फाइलें देख रहे हो। बादल हंसते हुए कहा करते थे कि तब उनकी पत्नी को पता नहीं था कि CM के आगे अफसर की क्या हैसियत होती है।

पत्नी सुरिंदर कौर(बाएं), बेटे सुखबीर बादल, पुत्र वधू हरसिमरत कौर बादल और पोते-पोतियों के साथ पूर्व CM प्रकाश सिंह बादल।

पत्नी सुरिंदर कौर(बाएं), बेटे सुखबीर बादल, पुत्र वधू हरसिमरत कौर बादल और पोते-पोतियों के साथ पूर्व CM प्रकाश सिंह बादल।

हार के बाद जेलेंस्की की फोटो लगाने को कहा
प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर बादल बताते हैं, ‘वर्ष 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में हुई हार के बाद मैं पिताजी के कमरे में गया। मैंने उनसे कहा कि हम हार गए। मैंने आपको भी जबरन चुनाव लड़वाया और आप भी हार गए। इस पर उन्होंने हंसते हुए कहा कि मेरे कमरे में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की की फोटो लगा दो। सुखबीर ने पूछा कि ऐसा क्यों तो उन्होंने बताया कि यूक्रेन छोटा सा मुल्क है और रूस इतना बड़ा। इसके बावजूद वह अभी भी लड़ रहे हैं। दरअसल चुनावी हार स्थायी नहीं होती।’

समय के पाबंद
अमूमन राजनेताओं के बारे में कहा जाता है कि वह कहीं भी तय समय पर नहीं पहुंचते। मगर, प्रकाश सिंह बादल इसके उलट समय के बड़े पाबंद थे। अगर उन्हें कहीं 11 बजे पहुंचना होता था तो वे 10.55 बजे ही वहां पहुंच जाते थे। CM या विपक्ष का नेता रहते हुए वह सुबह 7 बजे ही तैयार हो जाते थे ताकि लोगों से मिल सकें।

गुस्सा होते तो मुस्कुराते या उठकर चले जाते
प्रकाश सिंह बादल की सियासी समझ बहुत गहरी थी। सार्वजनिक तौर पर तेवर दिखाने वाले आजकल के नेताओं के उलट, बादल हमेशा शांत रहते थे। अकाली दल में उनके साथ लंबा समय बिताने वाले वरिष्ठ नेता बलविंदर सिंह भूंदड़ बताते हैं कि बादल साहब को कभी गुस्सा होते नहीं देखा। कभी कोई गुस्सा करता तो वे उसे कुछ नहीं कहते बल्कि खुद वहां से उठकर चले जाते। अगर कभी गुस्सा आ भी जाता तो वह मुस्कुराकर उसे छिपा लेते। मुख्यमंत्री रहते भी उनका रवैया बिल्कुल ऐसा ही था। कभी पत्रकार उन्हें कोई तल्ख सवाल पूछ लेता तो वे हंसते हुए कह देते ‘छड्‌डो काका जी, पुराणियां गल्लां'(पुरानी बातें छोड़िए)।

पूर्व CM बादल की स्व. देवीलाल चौटाला के साथ गहरी दोस्ती थी। इसी वजह से उनके चौटाला परिवार के साथ पारिवारिक रिश्ते रहे।

पूर्व CM बादल की स्व. देवीलाल चौटाला के साथ गहरी दोस्ती थी। इसी वजह से उनके चौटाला परिवार के साथ पारिवारिक रिश्ते रहे।

देवीलाल ने निभाया पिता का फर्ज
प्रकाश सिंह बादल और देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री रहे ताऊ देवीलाल के परिवारों का गहरा रिश्ता है। प्रकाश सिंह बादल की इकलौती बेटी परनीत कौर की शादी कांग्रेस के दिग्गज नेता और पंजाब के CM रह चुके प्रताप सिंह कैरों के पोते आदेश प्रताप कैरों के साथ हुई। इमरजेंसी के उस दौर में बादल दक्षिण भारत की जेल में बंद थे। परिवार के सदस्य उनके पास गए और कहा कि बेटी की शादी के नाम पर आसानी से पैरोल मिल जाएगी और वह शादी में शामिल हो सकते हैं। मगर बादल ने पैरोल लेने से इनकार करते हुए कह दिया कि मेरे बड़े भाई देवीलाल हरियााणा में हैं। शादी में मेरी जगह सारी रस्में वे ही निभाएंगे। तब देवीलाल ने ही बादल की बेटी का कन्यादान किया।

जब मोदी ने उन्हें नेल्सन मंडेला कहा
वर्ष 2015 में, जयप्रकाश नारायण के जन्म की 113वीं सालगिरह पर मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रकाश सिंह बादल की उपस्थिति में उन्हें ‘भारत का नेल्सन मंडेला’ कहकर संबोधित किया। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएम मोदी ने कहा, ‘बादल साहब यहां बैठे हैं। ये भारत के नेल्सन मंडेला हैं। बादल साहब जैसे लोगों का बस इतना ही गुनाह था कि सत्ता में बैठे लोगों से उनके विचार अलग थे।’

 

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