धर्म के मर्म को समझे बिना जीवन सार्थक सिद्ध नहीं हो सकता: मुनि अरूण

एस• के• मित्तल 
सफीदों,       पवित्र आचरण बिना जीवन का कल्याण नहीं हो सकता है। उक्त उद्गार संघशास्ता गुरुदेव सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य एवं युवा प्रेरक अरूण मुनि जी महाराज ने नगर की जैन स्थानक में धर्म सभा को संबोधित करते हुए प्रकट किए।
उन्होंने कहा कि धर्म क्षेत्र में तपस्या के मार्ग में सही गलत का अंतर करना यह आवश्यक होता है। धर्म की राह में गलती का प्रायश्चित करें तो सफलता मिलती है। पवित्र धर्म के पुण्य कर्म करने से मनुष्य जीवन का कल्याण होता है पाप से नहीं। गलती होने पर क्षमा मांगने वाला भी महान होता है और क्षमादान देने वाला भी महान होता है। स्वयं की गलती को स्वीकार करने वाला महान होता है। धर्म के मर्म को समझे बिना जीवन सार्थक सिद्ध नहीं होता है। आचरण पवित्र हो तो जीवन का कल्याण हो सकता है। किसी की झूठी बुराई करता है तो बुराई करने वाले को पाप कर्म का फल की सजा मिलती है।
इसलिए किसी की भी बुराई नहीं करना चाहिए। जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है उस गड्ढे में पहले वही गिरता है। किसी के लिए भी बुरा नहीं सोचना चाहिए। सदैव दूसरों के लिए भी भला ही सोचना चाहिए। संसार में जो दूसरों के लिए भला सोचता है उसका भला अपने आप हो जाता है। जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है उसका फल स्वत: ही उसे मिल जाता है। धर्म के प्रति सच्ची आस्था हो तो सफलता अवश्य मिलती है।

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