एस• के• मित्तल
सफीदों, अग्रवाल समाज के इतिहास पर शोध कर रहे दिल्ली निवासी युवा शोधकर्ता मोहित अग्रवाल सफीदों पहुंचे। उन्होंने सफीदों क्षेत्र के ऐतिहासिक नागक्षेत्र सरोवर, ऐतिहासिक किले तथा अन्य अनेक धार्मिक एवं पौराणिक स्थलों का भ्रमण किया और अपने शोध को लेकर विशेष जानकारी हासिल की। इसके अलावा वे अग्रवाल समाज के प्रबुद्धजनों मिलकर उनके इतिहास के बारे में जानकारियां जुटाई।
सफीदों, अग्रवाल समाज के इतिहास पर शोध कर रहे दिल्ली निवासी युवा शोधकर्ता मोहित अग्रवाल सफीदों पहुंचे। उन्होंने सफीदों क्षेत्र के ऐतिहासिक नागक्षेत्र सरोवर, ऐतिहासिक किले तथा अन्य अनेक धार्मिक एवं पौराणिक स्थलों का भ्रमण किया और अपने शोध को लेकर विशेष जानकारी हासिल की। इसके अलावा वे अग्रवाल समाज के प्रबुद्धजनों मिलकर उनके इतिहास के बारे में जानकारियां जुटाई।
इस दौरान उन्होंने अपने शोध एवं अन्य विषयों पर हमारे संवाददाता से मुलाकात करके खास बातचीत की। बातचीत में मोहित अग्रवाल ने बताया कि वे आजादी से पूर्व ब्रिटिश पंजाब के शहरों व ग्रामीण अंचल मे निवास करने वाले अग्रवाल परिवारों के आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक क्षेत्र में भूमिका पर शोध कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हरियाणा के विभिन्न नगर, कस्बे व गांव पुराने व्यापारिक मार्ग पर स्थित थे। हरियाणा व पंजाब में इन्हीं व्यापारिक मार्गों पर इन लोगों की उपस्थित उल्लेखनीय रही है। सफीदों नगर महाभारतकाल से ही हरियाणा के इतिहास में महत्वपूर्ण रहा है। सफीदों नगर में अग्रवाल समाज के कुछ महत्वपूर्ण परिवार रहे हैं, जिन्होंने यहां रहकर इसके समृद्धि को और ज्यादा बढ़ाया है। साथ ही ये धार्मिक व सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाया है। आजादी से पूर्व मंडी बनने के बाद इसका महत्व और बढ़ गया। जीन्द के आखिरी महाराजा रणबीर सिंह के समय मंडी बनने के बाद यहां पर आसपास के गांवों से आकर महाजन व्यापार करने लगे।
ऐसा समय भी आया, जब ये मंडी उस समय में बड़ी मंडियों में गिनी जाने लगी। इस मंडी में हरियाणा के कई प्रतिष्ठित महाजन परिवार व्यापार करते रहे। उन्होंने बताया कि वे आजादी से पहले के हरियाणा में फैले व्यापारिक मार्ग व उन पर बैठे पर व्यापारी व उनके निष्क्रिमण से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी व उन परिवारों के इतिहास को एकत्र कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि शोध में पाया है कि सफीदों क्षेत्र धान का कटोरा माना जाता है और यहां कभी 37 राईस मिल हुआ करते थे तथा कभी यहां से विदेशों तक चावल सप्लाई हुआ करता था लेकिन सन् 1998 के बाद चावल के व्यापार में घाटे के चलते यहां से चावल मिलों की संख्या निरंतर घटती चली गई और आज सिर्फ यहां पर कुछ ही राईस मिल अस्तित्व में हैं। पुराने समय में यहां पर गुड, खांड, देसी घी, सरसों व दालों की भी फसलें खूब आया करती थी लेकिन यहां की मंडी सिर्फ धान और गेंहू की फसलों तक सीमित रह गईं हैं।
मोहित अग्रवाल ने बताया कि वे हरियाणा भर में घूम-घूमकर इसी प्रकार पुरातन जानकारियां हासिल कर रहे हैं और जल्द ही वे इसके ऊपर किताब लिखने वाले हैं। उन्होंने बताया कि इससे पूर्व वे ला. नरूमल गर्ग वंशावली, हरियाणा का गौरव अग्रवाल समाज, अग्रवाल समाज की विरासत व अग्रवाल वैश्य वंशावली पर 4 किताबें लिख चुके हैं। उन्होंने बताया कि वे फिलहाल हरियाणा के मुलाना स्थित महर्षि मार्कण्डेश्वर यूनिवर्सिटी से पारम्परिक ग्रामीण व्यापारियों के अर्धशहरी व शहरी स्थानान्तरण विषय पर पीएचडी कर रहे हैं।