समता ही सुख-दुख के बीच संतुलन बनाने में सहायक: मुनि अरूण

एस• के• मित्तल 
सफीदों,       संघशास्ता गुरुदेव सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य एवं युवा प्रेरक अरूण मुनि जी महाराज ने नगर की जैन स्थानक में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहा कि समता ही सुख-दुख के बीच संतुलन बनाने में सहायक होती है, जिस प्रकार भवन में नींव का महत्व है उसी प्रकार जीवन में सुख-शांति पाने के लिए धर्म ही आधार है। यदि मानव सुखी होना चाहता है तो उसे धर्म धारण करना चाहिए।
पद, प्रतिष्ठा एवं धन को सफलता मान लेना सही नहीं है। इससे जीवन में प्रसन्नता प्राप्त नहीं होती। संतोष से ही जीवन में शांति एवं धर्म की संतुष्टि हो सकती है। उन्होंने कहा कि कर्म की शक्ति बहुत है। कर्म के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए। यदि मनुष्य अपना कल्याण चाहता है तो अपने कर्मों को धर्म के आधार पर ठीक रखे और गलत कार्यों से बचें। उन्होंने कहा कि जो हमारी आत्मा को निर्मल और पवित्र करें वह कार्य पुण्य होता है और जिस कार्य से हमारी आत्मा मलिन और दूषित हो जाये वह पाप कर्म होता है।
इस मनुष्य जीवन को सार्थक करना है तो अपनी मंजिल को पहचानो और उसकी ओर बढऩा प्रारंभ करो। मुनि ने कहा कि संसार में रहकर इंसान आत्मा के हित में आत्मसाधना कर सकता है। जब भी मुनियों और गुरूओं का सानिध्य का अवसर मिले उसे गंवाना नहीं, बल्कि उनके नजदीक जाकर अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। मुनि अरूण ने फरमाया कि आपका मन जब मुस्कुराए, इससे बड़ा कोई और मुहूर्त हो नहीं सकता। मन यदि प्रसन्ना है तो सभी काम सफल हो जाएंगे। आज के दौर में हर व्यक्ति अपनी बुराइयों को ढंकना चाहता है।
आप अपनी बुराइयों को ढंककर दूसरे की आंखों में धूल झोंक तो सकते हैं, स्वयं के बिगड़े मन को क्या समझाओगे? दूसरों को समझाने की समझ हर किसी के पास है, लेकिन स्वयं को समझाने की समझ बिरले आदमी में ही होती है।

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