पुश्तैनी सूखी मछलियों के कारोबार को आगे बढ़ाकर कोलकाता सहित अन्य जनपदों से लाखों कमा रहे दो सगे भाई

वाराणसी, संजय यादव। आधुनिकता के इस भागमभाग भरी जिंदगी में जहां लोग नौकरी की तलाश में भटक रहे हैं वही कुंडा निवासी दो सगे भाई अपने पुश्तैनी व्यवसाय सूखी मछली से जुड़ कर संस्कार के साथ ही व्यापार को आगे बढा रहे हैं। नंवबर से फरवरी माह इस कार्य के लिए सबसे‌ महफूज समय माना जाता हैं। सूखी मछलियों का कारोबार अब रफ्तार पकड़ने लगा है और यह कारोबार दर्जनों परिवारों को रोजगार का मौका भी उपलब्ध करा रहा है। महज चार माह की मेहनत से लाखों रुपये तक का मुनाफा होता है। यहां की तैयार सूखी मछलियां गोरखपुर, मानिकपुर, सिलीगुड़ी व पश्चिम बंगाल के विभिन्न बाजारों तक पहुंचाई जाती है, जहां इसकी खूब मांग है। एक तरफ मछली के इस कारोबार से जुड़े लोगों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ खरमास के प्रतिकूल मौसम में भी इस धंधे से जुड़े परिवारों को जीविकोपार्जन का जरिया मिल रहा है।

कुंडा निवासी राकेश साहनी सूखी मछली के कारोबार करते थे और सूखी मछलियां इन व्यापारियों के अर्थोपार्जन का माध्यम बन रही है। पिता जब बुजुर्ग हो गए तो बेटे गोरख साहनी व राजेश साहनी ने पुस्तैनी कारोबार को संभाला। पहले इसे छोटे स्तर पर करते थे। जिसमें उन्हें कई तरह का उतार चढ़ाव भी देखने को मिला। कई बार इन्हें मछली व्यवसाय में मुंह की भी खानी पड़ी। छोटी मछलियों को तीस से चालीस रुपये प्रति किलो की खरीदारी करते हैं और कड़ी धूप होने पर यह तीन से चार दिन में अच्छे से सूख जाता हैं। उसे बोरे में पैक करके सूखे स्थल पर रखा जाता। साथ ही चींटी व चूहे के बचाव के लिए भी ध्यान रखना पड़ता हैं। जब माल स्टाक हो जाता हैं तो उसे बेचा जाता। इससे लागत से बेहतर मूल्य मिल जाता है। बहादुरपुर के खलिहान में जमीन पर मच्छरदानी बिछाकर मछलियों को सुखाया जाता है और बाद में दूर-दराज के व्यापारी मछलियों की खरीद कर इसे देश के विभिन्न हिस्सों में ले जाते हैं। पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में इसकी खपत ज्यादा होती है।

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एक क्विंटल में 40 किलो माल होता है तैयार

गोरख व राजेश जनपद सहित आसपास के जिलों से 30 से 35 रुपये किलो तक छोटी मछलियों को खरीदते हैं। एक क्विंटल कच्ची मछली सुखाने पर तीस से चालीस किलो माल तैयार होता हैं। मछलियों को सुखाने के बाद मंडी में 90 रुपये किलो तक बेचा जाता है। एक सीजन में 30 से 40 क्विंटल मछली को बेचा जाता है।

कुंडा में हुआ कटाव तो बहादुरपुर बना आशियाना

कुंडा इलाके की पहचान बाढ़ व कटाव के लिए ही होती है। इसी इलाके के रहने वाले गोरख व राजेश ने गांव में बाढ़ की तबाही का आलम देखा। पहले गांव में ही अपने खेत में मछलियों को सुखाने का काम करते थे, लेकिन उनका ज्यादातर खेत बाढ़ की भेंट चढ़ गया। इसके बाद दोनों भाइयों ने बहादुरपुर खलिहान के समीप किराये पर खेत लेकर कारोबार करने लगे।

प्रत्येक वर्ष कारोबार से जुड़ रहे नए लोग

इस कारोबार को प्रारंभ करने वाले गोरख ने बताया कि प्रारंभ में इस धंधे में लोग नहीं आ रहे थे, लेकिन अब हर साल कई परिवारों से लोग इससे जुड़ रहे हैं। नवंबर से फरवरी तक इस धंधा किया जाता है। एक बार में काम करने के लिए लगभग 20 से 25 लोगों की आवश्यकता होती है। मछलियों को सुखाने से लेकर उनकी अच्छी तरह से सफाई भी की जाती है।

मरीजों के लिए होती हैं फायदेमंद

सुखाई जाने वाली छोटी मछलियों का इस्तेमाल कई चीजों में किया जाता है। टीवी के रोगियों के लिए यह काफी फायदेमंद होता है। मछलियों को पेरवाने के बाद उसका तेल निकाला जाता है। इसके बाद निकले वेस्ट को जानवरों के चारे के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोग सूखी मछलियों को अचार भी बनाते हैं।

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