गुरूओं के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता: बचन सिंह आर्य

बैसाखी मेले श्रद्धालुओं ने नवाया मस्तक

एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर के गैस एजेंसी रोड स्थित गुरूद्वारा बाग समाधा में वीरवार को वैशाखी उत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर बतौर अतिथि पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य व भाजपा नेता कर्मबीर सैनी ने शिरकत की। गुरूद्वारा के जत्थेदार हरवैल सिंह व संदीप सिंह ने अतिथियों को सिरोपा भेंट करके उनका अभिनंदन किया। अतिथियों ने गुरूद्वारा में मत्था टेककर समाज की सुख-समृद्धि की कामना की।

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इस मौके पर आए रागी जत्थों ने धर्म की रक्षा को दिए सिख गुरुओं के बलिदान के बारे में उपस्थित श्रद्धालुओं को बताया तथा गुरबानी सुनाकर सबकों निहाल किया। अपने संबोधन में पूर्व मंत्री बचन सिंह आर्य ने कहा कि 13 अप्रैल 1699 को सिख पंथ के 10वें गुरु गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी, इसके साथ ही इस दिन को मनाना शुरू किया गया था। आज के दिन से ही पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है। गुरूओं के बलिदान की सिख धर्म ही नहीं बल्कि समस्त समाज में मिसालें दी जाती है। यह दिन सिखों के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण है। आज ही के दिन उन्होंने 5 प्यारों को अमृतपान करवाया था। जिस समय गुरु तेग बहादुर शहीद हुए। उस वक गोबिंद सिंह जी महज पंद्रह वर्ष के थे। इस घटना ने उन्हें अंदर से झकझोर दिया। गुरु गोबिंद सिंह जानते थे की अगर लोगों को शासकों के अत्याचारों से मुक्ति दिलानी है जो उनके अंदर नैतिक बल भरना जरूरी है।

बैसाखी का पर्व सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। किसानों के लिए यह पर्व विशेष समृद्धि लेकर आता है और इस दिन अपने आप में ऊर्जा और जोश का अनुभव होता है। उन्होंने कहा कि गुरू, संत, महात्मा व महापुरूष किसी एक धर्म के नहीं होते बल्कि सभी धर्मों, वर्गों व जातियों के लिए समान रूप से वंदनीय व आदरणीय होते हैं। गुरू और महात्माओं के नेक विचारों पर ही आज संपूर्ण संसार चल रहा है। गुरूओं व संतों द्वारा प्रकट किए गए वचन मनुष्य के पथ-प्रदर्शक हैं।

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