खास बातचीत /हरियाणवीं लोक गायक महावीर गुड्डू पदमश्री के लिए हुए चयनित पदम श्री मिलना मेरे लिए भगवान के प्रसाद व गंगा स्न्नान के समान: महावीर गुड्डू

एस• के• मित्तल   
सफीदों,  हरियाणा ही नहीं बल्कि देश और विदेशों में भी हरियाणवीं संस्कृति की अमिट छाप छोड़ने वाले प्रसिद्ध लोक कलाकार महावीर हुड्डा को पदमश्री देने की घोषणा की गई है। उनके इस पुरस्कार के लिए चयनित होने पर हरियाणवीं संस्कृति प्रेमियों में खुशी की लहर है और उनके सफीदों स्थित निवास स्थान पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। इसके अलावा उन्हे सीएम मनोहर लाल, डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, सिरसा से सांसद सुनीता दुग्गल, राज्यसभा सांसद कृष्ण पंवार, भाजपा के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़, कृषि मंत्री जेपी दलाल के अलावा अनेक नेताओं ने फोन करके बधाई दी।
हमारे संवाददाता से बातचीत में महावीर गुड्डू ने अपनी कला के क्षेत्र की शुरूआत के बारे में बताया कि वे उपमंडल सफीदों के गांव गांगोली में एक सामान्य परिवार में जन्मे और शिक्षा-दीक्षा के बाद वे शिक्षा विभाग में प्राध्यापक बने। 1972 से उन्होंने हरियाणवीं कला के क्षेत्र में अपना पहला कदम रखा था। हालांकि उनका परिवार कला व संस्कृति के क्षेत्र में नहीं रहा है लेकिन उनके अंदर हरियाणवीं संस्कृति के बीच उस वक्त अंकुरित हुए जब उनके गांव में एक संत महात्मा आते थे और पूरे गांव में घूम-घूमकर बम लहरी गाया करते थे। वे उन साधू के पीछे-पीछे जाते थे और उनसे ही गाना सीखा। फिर उन्होंने शिव गायन सीखकर धोती-कुर्ता पहना और चिमटा बीन, बांसुरी और शंख को धारण किया। उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और प्रदेश, देश व विश्व की कोई ऐसी स्टेज नहीं है जिस पर उन्होंने अपनी कला ना दिखाई हो। धोती-कुर्ता, चिमटा, बीन, बांसुरी और शंख आज उनकी पहचान है। महावीर गुड्ड पंडित लखमी चंद राज्य पुरस्कार, हरियाणा कला रत्न अवार्ड, पंडित लखमी चंद शिक्षा एवं संस्कृति पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।
अभी पिछले वर्ष उन्हे केंद्र सरकार ने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया था। वहीं महावीर गुड्ड लंदन इंडियन हाई कमीशन, हाऊस आफ लार्ड, अमेरिका व नार्वें में भी पुरस्कृत हो चुके है। कैलीफोर्नियां यूनिवर्सिटी ने उन्हे पीएचडी की मानद उपाधि से नवाजा था। महावीर गुड्डू कहते है कि अब पदम श्री पुरस्कार ने उन्हे जमीन से हाथी पर बैठा दिया है और उनके लिए यह पुरस्कार भगवान के प्रसाद व गंगा स्नान के समान है। इसके लिए प्रदेश की मनोहर लाल सरकार व चयन समिति के हार्दिक आभारी है जिन्होंने इस नाचीज को इस लायक समझा। गुड्डू ने कहा कि जिंदगी भर मेरा रास्ता संगीत व कला का ही रहेगा और वे कभी भी एकतारे को नहीं छोड़ेंगे। हरियाणवीं संस्कृति की 52 साल सेवा करने की वजह से ही वे आज यहां तक पहुुंचे हैं।
अभी उनका पुरस्कार के लिए चयन हुआ है और जब भी राष्ट्रपति भवन से पुरस्कार लेने के लिए निमंत्रण आएगा वे उसे लेने के लिए दिल्ली जाएंगे। उन्होंने हरियाणवीं संगीत जगत में आने वाले युवाओं से कहा कि वे सबसे पहले तो अच्छी शिक्षा ग्रहण करें और शिक्षा के दौरान ही सांस्कृतिक गतिविधियों में जरूर भाग लें, वहीं से उनका बेस तैयार हो जाएगा। हरियाणवीं संगीत में वे नए प्रयोग जरूर करें लेकिन उसमें फुहड़ता का समावेश ना करें। संस्कृति की जड़ों का ना छोड़कर अपने हुनर का परिचय दें। अगर हुनर में दम होगा तो सफलता उनके कदम जरूर चुमेगी।

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