कलश यात्रा के साथ हुआ दिव्य गीता महोत्सव का शुभारंभ

 

कर्तव्य का पालन करना ही गीता का सार हैै: स्वामी ज्ञानानंद

 

एस• के• मित्तल 

सफीदों, श्री कृष्ण कृपा परिवार द्वारा नगर की महाराजा शूरसैनी धर्मशाला में दिव्य गीता महोत्सव का शुभारंभ हुआ। इस महोत्सव में गीता मनीषी महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। शुभारंभ अवसर पर नगर के ऐतिहासिक नागक्षेत्र सरोवर से विशाल कलश व शोभायात्रा निकाली गई।

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कलश यात्रा में काफी तादाद में महिलाओं व श्रद्धालुओं ने भाग लिया। इस यात्रा का समारोह स्थल पर आकर विराम हुआ। श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि मनुष्य जीवन परमपिता परमात्मा की अनूठी एवं अद्भूत रचना है। मानव जीवन केवल मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। मनुष्य जीवन की प्राप्ति अपने आप में सौभाग्य की बात है। गीता का अनुसरण करने से मनुष्य को कर्तव्य बोध का ज्ञान प्राप्त होता है। उन्होंने कहा कि हम सभी जीवन में कुछ पाना चाहते हैं। सभी की इच्छा, आस्था और कामना अलग-अलग हो सकती है, लेकिन गरीब हो या धनवान, किसी जाति या वर्ग से हो, चाहे किसी भी देश से हो या कोई भी पात्र हो सभी जीवन में एक वस्तु अवश्य चाहते है वह है मानसिक शांति।

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मानसिक शांति हमें भगवत गीता से मिल सकती है। उन्होंने कहा कि जहां कृष्ण हैं वहीं धर्म है और जहां धर्म है वहीं विजय होती है। अपने कर्तव्य की पालना करना ही गीता का सार है। कुरूक्षेत्र की युद्ध भूमि में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से गीता का उपदेश समस्त मानव कल्याण के लिए दिया। यह पहला ग्रंथ है जिसमें युद्ध की भूमि से शांति का संदेश दिया गया है। अर्जुन महाभारत के युद्ध में मोहग्रस्त हो गए थे तो भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उसका कर्तव्य याद करवाया। अपने कर्तव्य का पालन करना ही गीता का सार है। भगवान श्री कृष्ण की हर अदा और घटना एक लीला है और श्री कृष्ण की हर लीला में गीता की प्रेरणा छिपी हुई है। उन्होंने कहा कि जिस तरह मनुष्य के शरीर को आहार की जरूरत होती है उसी प्रकार मन का भगवद् भजन गीता पाठ की जरूरत है।

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यदि शरीर को आहार नहीं मिलेगा तो मनुष्य बीमार परेशान हो जाएगा। भागवत गीता के अनुसार जीवन को सादगी से जीने का अपना ही आनंद है। हमारी परेशानी का मूल कारण हमारी नकारात्मक सोच है। भगवान के नाम के बिना मानसिक शांति नहीं मिलती। परमात्मा कण-कण में विराजमान है। आज बचपन संस्कार विहीन हो रहा है। हमें गऊ सेवा व गीता पाठ नित्य नियम के साथ करना चाहिए।

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