जैन धर्म सुक्ष्म से सुक्ष्म जीवों की रक्षा करने का संदेश देता है: मुनि नवीन चंद्र

एस• के• मित्तल 

सफीदों, नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि मन, वाणी और कर्म से पवित्र होकर ही हम परमात्मा के दर्शन कर सकते हैं। मौजूदा समय मोहमाया के कारण समाज में चौतरफा शांति का अभाव है। जैन धर्म हमें सुक्ष्म से सुक्ष्म जीवों की रक्षा करने का संदेश देता है। जैन धर्म में किसी जीव की हत्या का नहीं अपितु उसकी रक्षा का विधान है।

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हम किसी को जीवन नहीं दे सकते तो हमें किसी की हत्या करने का भी कोई अधिकार नहीं है। मनुष्य को ही जीव की रक्षा करनी चाहिए और मन में सभी के प्रति दया व अहिंसा का भाव पालना चाहिए। जीवन मे दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों की सहायता व सेवा करना ही सही समाजसेवा व पुरूषार्थ है। दयावान व्यक्ति ही इंसान कहलाने का हकदार है। उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन मिला है जीने के लिए, इसे निखारने के लिए और जीवन में कुछ पाने के लिए। जीवन इसलिए नहीं मिला है कि तुम जीवन में पाप कर्म करो वे दूसरों को कष्ट पहुंचाओ। मनुष्य को गुरु सानिध्य में रहकर संस्कारों को पाना चाहिए। जब मनुष्य के संस्कार अच्छे होंगे तो उसके कर्म भी अच्छे होंगे।

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जब मनुष्य धन संपदा ही इक्टठा करता रहेगा तो वह जीवन में इन चीजों को भूल जाएगा। अगर जीवन में कुसंस्कार होंगे तो जितनी धन दौलत इक्टठी की है वह कुछ ही समय में हाथ से निकल जाएगी, लेकिन धर्म ध्यान, सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन और सम्यक चारित्र ऐसी दौलत है जिसमें इंसान का आत्म कल्याण छुपा हुआ है और वह उससे आपसे कोई छीन नहीं सकता।

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