संपन्न पिछड़ों को आरक्षण से बाहर क्यों नहीं कर सकते: सुप्रीम कोर्ट का सवाल- क्या IAS-IPS अफसरों के बच्चों को भी कोटा मिलना चाहिए

 

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि वह एससी-एसटी में कोटा को लेकर दिए गए 2004 के अपने ही फैसले की समीक्षा करेगी। 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यों को अनुसूचित जाति (SCs) और अनुसूचित जनजाति (STs) में कोटा के लिए सब-कैटेगिरी बनाने का अधिकार नहीं है।

 

अब सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संवैधानिक बेंच इस फैसले को एग्जामिन करेगी। इस बेंच की अगुआई CJI जस्टिस चंद्रचूड़ करेंगे। इसमें जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रमनाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा शामिल हैं।

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6 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने 2006 के पंजाब के SC-ST काननू के मामले से सुनवाई की शुरुआत की। 2006 में पंजाब सरकार कानून लेकर आई थी, जिसके तहत शेड्यूल कास्ट कोटा में वाल्मीकि और मजहबी सिखों को नौकरी में 50% रिजर्वेशन और प्राथमिकता दी गई थी।

2010 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने इस कानून को असंवैधानिक बताया था और एक्ट को खत्म कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार समेत 23 अपील दायर की गई हैं। सुप्रीम कोर्ट में बुधवार (7 फरवरी) को सुनवाई का दूसरा दिन है।

6 फरवरी: सुनवाई का पहला दिन…

क्या IAS-IPS अफसरों के बच्चों को कोटा मिलना चाहिए बेंच ने मंगलवार को सवाल किया कि पिछड़ी जातियों में मौजूद संपन्न उप-जातियों को आरक्षण की सूची से बाहर क्यों नहीं किया जाना चाहिए। बेंच ने यह भी सवाल उठाया कि क्या IAS-IPS अफसरों के बच्चों को कोटा मिलना चाहिए?

बेंच में शामिल जस्टिस विक्रम नाथ ने पूछा कि, इन्हें आरक्षण सूची से क्यों नहीं निकाला जाना चाहिए? उन्होंने कहा- इनमें से कुछ उप-जातियां संपन्न हुई हैं। उन्हें आरक्षण से बाहर आना चाहिए। ये आरक्षण के दायरे से बाहर आकर बेहद पिछड़े और हाशिए पर चल रहे वर्ग क लिए जगह बना सकती हैं।

संपन्न लोगों को आरक्षण से बाहर करने का फैसला संसद करे
बेंच में शामिल जस्टिस बीआर गवई ने कहा- एक शख्स जब IAS या IPS बन जाता है तो उसके बच्चे गांव में रहने वाले उसके समूह की तरह असुविधा का सामना नहीं करते हैं। फिर भी उनके परिवार को पीढ़ियों तक आरक्षण का लाभ मिलता रहेगा। अब ये संसद को तय करना है कि संपन्न लोगों को आरक्षण से बाहर करना चाहिए या नहीं।

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जस्टिस बीआर गवई 14 मई 2025 से 23 नवंबर 2025 तक देश के मुख्य न्यायाधीश भी रहेंगे। वे दलित समुदाय से आते हैं।

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पंजाब सरकार की ओर से मंगलवार (6 फरवरी) को सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि पिछड़े वर्गों में सबसे पिछड़े समुदायों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें रोजगार के अवसरों का लाभ उठाने के लिए साधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

सरकार को ओर से यह भी कहा गया कि जो लोग सरकारी सेवा में उच्च प्रतिनिधित्व के माध्यम से आगे बढ़ चुके हैं, उन्हें अनुसूचित जाति (SC) के दायरे में वंचित समुदायों के लिए रास्ता बनाना चाहिए।

इस पर जस्टिस बीआर गवई जो खुद SC वर्ग से आते हैं उन्होंने कहा कि SC/ST समुदाय का एक व्यक्ति IAS और IPS जैसी केंद्रीय सेवाओं में जाने के बाद सर्वोत्तम सुविधाओं तक पहुंच पाता है। फिर भी उनके बच्चे और उनके बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलता रहे। क्या यह जारी रहना चाहिए?”

मंगलवार को सुनवाई का पहना दिन था। CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र मिश्रा की 7 जजों की बेंच पंजाब सरकार के SC/ST आरक्षण से जुड़े मसले पर सुनवाई कर रही है।

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पंजाब के एडवोकेट जनरल गुरमिंदर सिंह ने कहा कि भर्ती परीक्षा में 56% अंक हासिल करने वाले पिछड़े वर्ग के सदस्य को 99% हासिल करने वाले उच्च वर्ग के व्यक्ति की तुलना में प्राथमिकता दी जाए। क्योंकि उच्च वर्ग के पास हवाई जहाज और जीवन में सभी सुविधाएं हैं, जबकि पिछड़ा वर्ग इन सुविधाओं से बिना ही संघर्ष करता है।

वहीं, सीनियर एडवोकेट निधेश गुप्ता ने कहा कि पंजाब की आबादी में अनुसूचित जाति की आबादी 33% है। इनमें से बाल्मीकि (चुरा और भंगी) और मजहबी (सिख) 29% हैं। उन्होंने कहा कि 43% अनुसूचित जाति समुदायों का राज्य सरकार में 81% एससी पदों पर कब्जा है।

सिंह ने आगे कहा कि SC के रूप में वर्गीकृत एक समुदाय को आरक्षण के लिए पात्र लोगों की सूची से हटाया जा सकता है, जब उसने सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व प्राप्त करके सामाजिक क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति हासिल कर ली हो। संविधान निर्माताओं सहित किसी का इरादा नहीं था कि आरक्षण हमेशा के लिए है।

यह है पूरा मामला
पंजाब सरकार पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) कानून 2006 के वैध होने का सुप्रीम कोर्ट बचाव कर रहा है। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने कहा था कि बाल्मीकि और मजहबी (सिख) महादलित हैं।

सरकार ने उन्हें सरकारी नौकरियों में से 50% कोटे में से 15% देना निर्धारित किया था। इसके बाद पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग (सेवा में आरक्षण) अधिनियम 2006 के आधार पर भर्तियां की गईं थीं। बाद में साल 2020 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की पांच जजों की बेंच ने तत्कालीन सरकार के इस फैसले को रद्द करते हुए बड़ी बेंच के पास भेजा था।

यह कहा गया था कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2005) में दिए गए फैसले में उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं थी, लेकिन पुनर्विचार की जरूरत हो सकती है। SC ने 2020 वाले फैसले में कहा कि अनुसूचित जातियां समरूप वर्ग बनाती हैं, उनमें कोई उपविभाजन नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट का 2005 वाला फैसला ही पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के लिए पंजाब सरकार की 1975 की अधिसूचना को रद्द करने का आधार बना। उसमें SC के लिए मौजूदा 25% आरक्षण को दो कैटेगरी में बांटा गया था। इनमें से आधी सीटें बाल्मिकियों और मजहबी सिखों को दी जानी थीं, जबकि बाकी SC के बाकी समूहों के लिए थीं।

 

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