धरती पर धर्म की स्थापना के लिए भगवान बार-बार जन्म लेते हैं: डा. शंकरानंद सरस्वती कथा में धूमधाम से मनाया गया श्रीकृष्ण जन्मोत्सव

श्रीकृष्ण जन्म को लेकर निकाली झांकी ने सभी का मन मोहा

एस• के• मित्तल 
सफीदों,  नगर के महाभारतकालीन नागक्षेत्र तीर्थ के मंदिर हाल में भक्ति योग आश्रम के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद् भागवत अमृत कथा में श्री कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर कथा व्यास स्वामी डा. शंकरानंद सरस्वती महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ।
इस मौके पर श्रीकृष्ण जन्म की निकाली गई विशेष झांकी ने सभी का मन मोह लिया। कृष्ण जन्म के प्रसंग शुरू होते ही पांडाल में मौजूद श्रद्धालु नंद के घर आनंद भया जय कन्हैया लाल की भजनों के साथ झूम उठे। वहीं श्रद्धालुओं में माखन मिश्री के प्रसाद का भोग वितरित किया गया। अपने संबोधन में कथा व्यास स्वामी डा. शंकरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि जीवन में जब भी भगवत नाम सुनने का अवसर प्राप्त हो, उससे विमुख नहीं होना चाहिए। जब-जब धरती पर अधर्म बढ़ता है, तब-तब परमात्मा अवतार धारण करके धरती पर धर्म की स्थापना करते हैं। उन्होंने कहा कि जब इस धरा पर धर्म की ग्लानि होती है तथा अधर्म का अभ्युत्थान होता है तब भगवान अपने को इस विश्व में पैदा करते हैं। अजन्मा जन्म को स्वीकार कर लेता है और निराकार परमात्मा साकार हो जाते हैं।
समय-समय पर अनेकानेक अवतारों ने भारत की भूमि पर जन्म लिया है। भारत जिसे विश्व का हृदय भी कहा गया है क्योंकि ईश्वर सर्वभूत प्राणियों का धाम हैं। ईश्वर सर्व प्राणियों के हृदय में निवास करता है। कंस की कारागार में वासुदेव-देवकी के भादो मास की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उनका लालन-पालन नंदबाबा के घर में हुआ था। श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का वध करके पृथ्वी को अत्याचार से मुक्त किया और अपने माता-पिता को कारागार से छुड़वाया। उन्होंने कहा कि भक्ति से ही मुक्ति मिलती है।
भगवान से मिलने का कोई न कोई बहाना ढूंढते रहना चाहिए। भक्ति, वैराग्य, विचार, ज्ञान प्रभू से मिलने का मार्ग बताते हैं। ध्रुव जैसी भक्ति से ही भगवान मिलते हैं। भगवान से मिलना आसान नहीं होता, उनको पाने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है।

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