ओपिनियन- राजनीति: बिहार भले ही थक जाए, पर पाला, बदलते-बदलते नीतीश नहीं थकते!

 

नीतीश कुमार ने 9वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है।

आख़िर नीतीश कुमार एक बार फिर पाला बदलकर मुख्यमंत्री की अपनी कुर्सी पर क़ाबिज़ हो गए। वे पाला बदलने में माहिर हैं। इतने माहिर कि देश में अन्य किसी राजनेता ने ऐसा और इतनी बार कभी पाला नहीं बदला। किसी राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में तो कभी नहीं। हरियाणा के चौधरी भजनलाल से राजनीति में शुरू हुई आयाराम- गयाराम की पौध को अगर किसी ने सिद्दत से पाला-पोसा और सींचा है तो वे नीतीश कुमार ही हैं।

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समाजवाद की मशाल लेकर अपने छात्र जीवन से ही नीतीश कुमार ने कभी लालू यादव के साथ राजनीति की राह पकड़ी थी। लालू सीनियर थे और वे पहले कई सीढ़ियाँ चढ़ गए। नीतीश कुमार ने उनसे दूरी बना ली। इतना ही नहीं वे लालू के खिलाफ खड़े हो गए और उनसे सत्ता हासिल कर ली। फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे कुर्सी के क़रीब ही रहे। चाहे कपड़ों की तरह पाला ही क्यों न बदलना पड़ा हो।

अपने मुख्यमंत्रित्व काल में कुछ कार्यकालों को छोड़कर उन्होंने कभी दो-दो बार तो कभी तीन-तीन बार पाला बदला लेकिन हर हाल में मुख्यमंत्री बने रहे। अपने मौजूदा कार्यकाल में ही वे इस दफ़ा तीसरी बार शपथ ले चुके हैं। वे कई बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने का भी रिकॉर्ड बना चुके हैं। हो सकता है विधानसभा चुनाव से पहले वे फिर पाला बदल लें। अगर ऐसा होता है तो भी किसी को कोई अचरज नहीं होगा।

राजनीति में कभी जैसे को तैसा भी मिल जाता है। यह डर रविवार की सुबह निश्चित रूप से नीतीश कुमार को भी सता रहा था। लालू यादव जब सरकार बचाने की कोशिश कर रहे थे और नीतीश कुमार जब नई सरकार बनाने में जुटे थे तभी भाजपा ने शर्त रख दी कि समर्थन का पत्र तभी दिया जाएगा जब नीतीश मौजूदा सरकार से इस्तीफ़ा देंगे।

तब नीतीश डर रहे थे कि कहीं ऐसा न हो जाए कि वे खुद जिस तरह का खेल करते आए हैं, वैसा उनके साथ भी हो जाए। डर यह था कि नीतीश के इस्तीफ़ा देते ही भाजपा राज्य विधानसभा को भंग करवाने की चाल चल सकती है। शुक्र है सबकुछ ठीक से हो गया और जैसा नीतीश ने सोचा था, नई सरकार उनके नेतृत्व में बन गई वर्ना लेने के देने पड़ गए होते!

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बहरहाल, इस पूरे घटनाक्रम से भाजपा को बम्पर फ़ायदा होने वाला है। इंडिया गठबंधन जिसके कुछ दिनों पहले नीतीश संयोजक बनते बनते रह गए, उन्हीं का दल अब कह रहा है कि कांग्रेस की जहां ज़मीन तक नहीं बची है, वह वहाँ सीटों के लिए बड़ा मुँह फाड़ रही है। इंडिया गठबंधन इसीलिए टूटता दिखाई दे रहा है। वैसे भी अब तो जदयू नेता खुद भी बयान बदलते बदलते थक चुके होंगे। लेकिन नीतीश नहीं थकते।

 

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