अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव में उत्तर भारत के हजारों श्रद्धालुओं ने की शिरकत

संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज के सानिध्य में तपस्वियों ने खोला व्रत
परम्परा के मुताबिक गन्ने का रस ग्रहण करके तपस्वियों ने किया व्रत का पारणा

एस• के• मित्तल 
सफीदों,        श्री एसएस जैन सभा के तत्वावधान में मंगलवार को अक्षय तृतीया पारणा महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। नगर के सिटी पार्क में मनाए गए इस महोत्सव में उत्तर भारत के हजारों श्रद्धालुओं ने शिरकत की। समारोह में संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। वहीं त्याग शिरोमणी राजर्षि राजेंद्र मुनि महाराज, मधुर गायक नवीन मुनि महाराज, सुंदरी शांति साध्वी संघ की महासाध्वी सुदक्षा महाराज की भी पावन मौजूदगी रही।
कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री एसएस जैन सभा सफीदों के प्रधान एडवोकेट एमपी जैन ने की। इस अवसर पर दिल्ली के रिठाला से विधायक महेंद्र गोयल, सफीदों के विधायक सुभाष देशवाल, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता एडवोकेट विजयपाल सिंह व हरियाणा टैक्स ट्रिब्युनल के पूर्व सदस्य कर्मबीर सैनी विशेष रूप से उपस्थित थे। इस मौके पर वर्ष भर तपस्या में लीन दर्जनों श्रावकों का श्री एसएस जैन सभा सफीदों द्वारा अंगवस्त्र भेंट करके व माल्यार्पण करके जोरदार अभिनंदन किया गया। उसके उपरांत नगर के सरस्वती विद्या मंदिर स्कूल में वर्षी तपस्वियों के लिए की गई विशेष व्यवस्था के तहत संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज ने परंपरा के मुताबिक तपस्वियों को गन्ने का रस पिलाकर उनके व्रत का पारणा करवाया और उन्हे अपना आशीर्वाद देते हुए भविष्य में भी तपस्या करते रहने के लिए प्रेरित किया।
श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज ने कहा कि हजारों साल पहले जैन समाज के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को 13 माह तक खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला था। उन्हें 13 माह बाद अक्षय तृतीया के दिन उनके पुत्र श्रेयांस कुमार द्वारा गन्ने का रस पिलाया गया। तभी से जैन समाज में वर्षीतप की परंपरा शुरू हो गई। गुरूदेव ने वर्षीतप आराधकों की अनुमोदना की और इस महान तपस्या की पूर्णाहुति पर जीवन में पलने वाली बुराइयों का त्याग करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि जीवन में त्याग व तपस्या का बेहद महत्व है। धर्म उत्कृष्ट मंगल है और धर्म के अधीन अहिंसा, संयम और तप है।
जिसके हद्य में धर्म का वास होता है उसे देवता भी नमन करते हैं। भगवान महावीर स्वामी त्याग, तपस्या और उनके गुणों के कारण आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। मनुष्य का मन बेलगाम है इसलिए मन पर संयम व सामाजिक जीवन में अनुशासन रखना बहुत आवश्यक है।

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