एस• के• मित्तल
सफीदों, परमपिता परमात्मा निराकार और एक है। उक्त उद्गार माउंटआबू से पधारे राजयोगी एवं मोटिवेशनल स्पीकर प्रोफेसर भ्राता ओमकार चंद ने कही। वे नगर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सफीदों के हैप्पी हाल चल रहे खुशियों से दोस्ती उत्सव को बतौर मुख्यवक्ता संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सफीदों सैंटर इंचार्ज बहन स्नेहलता ने भ्राता ओमकार व अन्य अतिथियों का अभिनंदन किया।
सफीदों, परमपिता परमात्मा निराकार और एक है। उक्त उद्गार माउंटआबू से पधारे राजयोगी एवं मोटिवेशनल स्पीकर प्रोफेसर भ्राता ओमकार चंद ने कही। वे नगर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सफीदों के हैप्पी हाल चल रहे खुशियों से दोस्ती उत्सव को बतौर मुख्यवक्ता संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सफीदों सैंटर इंचार्ज बहन स्नेहलता ने भ्राता ओमकार व अन्य अतिथियों का अभिनंदन किया।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित करके किया गया। अपने संबोधन में भ्राता ओमकुमार ने कहा कि परमात्मा आकृति विहिन है। सभी देवी-देवता और अवतार उस परमात्मा के साकार रूप हैं। कोई भी व्यक्ति कुछ भी बन जाए लेकिन परमात्मा नहीं बन सकता। हम परमात्मा की तरह से तो बन सकते हैं लेकिन परमात्मा नहीं बन सकते हैंं। हम परमात्मा के अंश नहीं है बल्कि उस परमेश्वर के वंश हैं। उन्होंने कहा कि जब-जब धर्म की ग्लानि होती है और पाप बढ़ता है, तब-तब परमात्मा इस धरा पर जन्म लेते हैं। आत्मा का पिता परमात्मा है। आत्मा ज्योति स्वरूप है तो परमात्मा भी ज्योति स्वरूप है। एक नूर अर्थात एक प्रकाश पुंज से ही सारी दुनिया बनी है।
उन्होंने कहा कि शिव ही परमात्मा हैं और उसका परिचय प्राप्त कर लेना नितांत आवश्यक है। शिव अर्थात परमात्मा को सुक्ष्म आंखों से नहीं देखा जा सकता। वह रूप में जरूर बिंदू के समान है लेकिन वह गुणों में सिंधू है और शांति व ज्ञान का सागर है। ब्रह्मा, विष्णु व महेश का रचियता परमात्मा है। शिव का मतलब कल्याणकारी है। शिव का शंभू भी कहते है, उसका मतलब है स्वयंभू। शिव अवतरित होते हैं लेकिन कभी जन्म नहीं लेते। पूर्व से पश्चिम तथा उत्तर से दक्षिण तक शिव परमात्मा की महता प्रदर्शित होती है। संसार का हर कार्य शिव से ही होता है। श्रीराम ने भी लंका पर चढ़ाई से पूर्व शिव की उपासना की थी। किसी भी मंदिर या देवस्थान को जाकर देख लो वहां पर शिवलिंग की स्थापना जरूर मिलेगी। शिव के साथ जो लिंग शब्द जुड़ा है वह एक प्रतीक के समान है, जिसे ध्यान में रखकर लोग पूजा-अर्चना करते हैं।