2017 से 2022 तक हिरासत में 270 से ज्यादा रेप: आरोपियों में पुलिसकर्मी, रिमांड होम स्टाफ शामिल; उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले

 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने एक डाटा जारी किया है। इसके मुताबिक, साल 2017 से 2022 के दौरान हिरासत में रेप (Rape in Custody) के 270 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इन केस के लिए लॉ एनफोर्समेंट सिस्टम में संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को जिम्मेदार ठहराया है।

 

NCRB के मुताबिक, रेप के आरोपियों में पुलिसकर्मी, पब्लिक सर्वेंट, आर्मड फोर्स के मेंबर जेल का स्टाफ, रिमांड होम स्टाफ , जिन जगहों पर हिरासत में लिया गया वहां के लोग और अस्पतालों का स्टाफ शामिल है।

2017 से 2022 तक हिरासत में 270 से ज्यादा रेप: आरोपियों में पुलिसकर्मी, रिमांड होम स्टाफ शामिल; उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा मामले

 

IPC की धारा 376 (2) के तहत दर्ज किया जाता है केस
हिरासत में रेप के मामले IPC की धारा 376 (2) के तहत दर्ज किए जाते हैं। यह एक पुलिस अधिकारी, जेलर, या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किए गए रेप के अपराध से संबंधित है, जिसके पास एक महिला की कानूनी हिरासत है। यह धारा विशेष रूप से उन मामलों से संबंधित है। जहां अपराधी किसी महिला से हिरासत में रेप करने के लिए अपने पद और ताकत लाभ उठाता है।

कस्टडी की व्यवस्थाएं रेप के मौके पैदा करती हैं- पूनम मुत्तरेजा
​​​​​
पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, ‘कस्टोडियल व्यवस्थाएं हिरासत में रेप के लिए अवसर प्रदान करती है, जहां सरकारी कर्मचारी अक्सर अपनी शक्ति का इस्तेमाल यौन इच्छा पूरी करने के लिए करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां महिलाओं को उनके संरक्षण या उनकी कमजोर स्थिति जैसे तस्करी या घरेलू हिंसा के कारण हिरासत में लिया गया और उनके साथ यौन हिंसा की गई, जो प्रशासनिक प्रोटेक्शन की आड़ में पावर के मिसयूज को दर्शाता है।’

उन्होंने आगे कहा कि हिरासत में होने वाले रेप के कारणों में पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड, कानून प्रवर्तन के लिए अपर्याप्त लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण और पीड़ितों पर लगे आरोप भी शामिल हैं।इन रेप में विक्टिम सेंट्रिक अप्रोच, मजबूत कानूनी ढांचा और इंस्टीट्यूशनल रिफॉर्म्स की आवश्यकता है।

मुत्तरेजा कहती हैं कि ये लोग ऐसा माहौल बनाते हैं जिसमें ऐसे अपराध हो सकते हैं। कई मामलों में तो रिपोर्ट ही नहीं की जाती या उन पर ध्यान नहीं दिया जाता है।

CM योगी के काफिले के साथ हादसा: कुत्ते को बचाने के चक्कर में एस्कॉर्ट कर रही कार दूसरी गाड़ियों से टकराई; 6 पुलिसकर्मी समेत 15 घायल – Lucknow News

 

ऐसे केस के मूल कारणों और परिणामों को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिए सरकार को कानूनी सुधार, कानून प्रवर्तन के लिए बेहतर प्रशिक्षण, सामाजिक मानदंडों को बदलने के लिए सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन कम्युनिकेशन, जवाबदेही के लिए मजबूत सिस्टम शामिल करना चाहिए।

NGO, सिविल सोसाइटी और कम्यूनिटी ग्रुप के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने से अधिक जानकारी के साथ-साथ मदद मिल सकती है।

पुलिस थानों में कस्टडी में रेप आम घटना
न्गुवु चेंज लीडर पल्लबी घोष ने NCRC के डाटा पर कहा कि कि कानून प्रवर्तन में सजा से मुक्ति और पीड़ित को दोष देने की संस्कृति न्याय मिलने से रोकती है। पुलिस स्टेशनों में रेप इन कस्टडी आम घटना है।

थानों में जूनियर पुलिस अधिकारी, महिला कांस्टेबल जिस तरह से पीड़िताओं से बात करते हैं, उससे पता चलता है कि इनके मन में उनके लिए सहानुभूति नहीं है। पल्लबी कहता हैं कि पुलिसकर्मियों में संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है।

हिरासत में रेप की शिकायत दर्ज कराने में होने वाली परेशानियों को लेकर पल्लबी ने कहा कि जब तक बाकी के लोग अपराधियों का नाम नहीं लेते, तब तक न्याय नहीं मिल सकता। आप किसी पुलिस अधिकारी को हिरासत में रेप के लिए दोषी ठहराते हैं, तो हम न्याय की उम्मीद कर सकते हैं।

 

खबरें और भी हैं…

.(24 फरवरी 2024) राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक न्यूज़पेपर में प्रिंट आज़ की ख़बर..

.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *