सृष्टि की रचना हेतू कर्दम ऋषि की उत्पत्ति ब्रह्मा की छाया से हुई: डा. शंकरानंद सरस्वती

एस• के• मित्तल 
सफीदों,   नगर के महाभारतकालीन नागक्षेत्र तीर्थ के मंदिर हाल में भक्ति योग आश्रम के तत्वावधान में आयोजित श्रीमद् भागवत अमृत कथा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कथा व्यास स्वामी डा. शंकरानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि कर्दम ऋषि की उत्पत्ति सृष्टि की रचना हेतु ब्रह्मा की छाया से मानी जाती है। इनका विवाह मनु की कन्या देवहूति से हुआ था। देवहूति ने नौ कन्याओं को जन्म दिया, जिनका विवाह प्रजापतियों से किया गया था।
ब्रह्मा ने कर्दम को आज्ञा दी थी कि वह सृष्टि का विस्तार करें। कर्दम ने भगवान विष्णु को अपनी तपस्या से प्रसन्न करके अपने लिए योग्य कन्या की याचना की। विष्णु ने कहा कि इसकी व्यवस्था वे पहले ही कर चुके हैं। भगवान विष्णु ने कर्दम से कहा, स्वयंभुव मनु तुम्हारी कुटिया में पहुंचकर अपनी कन्या देवहूति का प्रस्ताव तुम्हारे सामने रखेंगे, जिसे तुम स्वीकार कर लेना। भगवान विष्णु ने बताया कि वे स्वयं उसकी पत्नी के गर्भ से जन्म लेकर अवतरित होंगे। कालांतर में मनु ने अपनी कन्या के साथ कर्दम की कुटिया पर पधारकर विवाह का प्रस्ताव रखा। कर्दम ने सहर्ष ही देवहूति से विवाह कर लिया। देवहूति नारद के मुंह से कर्दम की प्रशंसा सुनकर उससे विवाह के लिए उत्सुक थी। कर्दम ने योग में स्थित होकर एक सर्वत्रचारी विमान की रचना की।
कर्दम ने देवहूति को सरस्वती नदी में स्नान करके विमान में प्रवेश करने को कहा। देवहूति ने ज्यों ही नदी में गोता लगाया, उसे अनेक दासियां उबटन लगाती हुई दिखाई दीं। उनकी सहायता से स्नान कर वह कर्दम के साथ विमान में चढ़ी। विमान से उन दोनों ने बहुत भ्रमण किया। कर्दम और देवहूति ने नौ कन्याओं को जन्म दिया। कर्दम ने देवहूति को यह बताकर कि पूर्व वरदान के फलस्वरूप विष्णु निकट भविष्य में उसकी कोख से जन्म लेकर अवतरित होंगे, ब्रह्मा की प्रेरणा से अपनी सब पुत्रियों का विवाह प्रजापतियों से कर दिया। कला, अनसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति, क्रिया, ख्याति, अरुंधती तथा शान्ति का विवाह क्रमश: मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, भृगु, वशिष्ठ तथा अथर्वा से सम्पन्न हो गया।
देवहूति ने कपिल को जन्म दिया, जोकि विष्णु के अवतार थे। कपिल अपनी मां देवहूति के साथ रहे तथा देवहूति ने उसे भक्ति-वैराग्य आदि के मार्ग पर अग्रसर किया। देवहूति ने उस आश्रम में रहकर ही गृहस्थ धर्म का परित्याग कर योग के द्वारा अध्यात्म पथ का अनुसरण किया। कपिल मां की आज्ञा लेकर पिता के आश्रम ईशानकोण की ओर चले गए। कथा के दौरान गण्यमान्य लोगों को व्यास पीठ से डा. शंकरानंद सरस्वती ने सम्मानित किया।

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