संतों को समाज की बुराईयों से कोई लेना देना नहीं: मुनि नवीन चन्द्र

एस• के• मित्तल   
सफीदों,    नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि जो पैसा रखे, औरत रखे, मोह रखे वह साधू नहीं है और ना ही उसे गुरू माना जा सकता है। मनुष्य को कभी भी कलेश का कारण नहीं बनना चाहिए। कई बार लोग साधू-साध्वियों को झगड़े का कारण बना देते हैं। समाज के ठेकेदार एक तराजू में साधू-साध्वी को तोलते हैं।
समाज को अखाड़ा नहीं बनने देना चाहिए और इस प्रकार के लोगों से समाज को बचाकर रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि साधू-साध्वी को अपना जीवन अपने ढंग से जीने दो। समाज की बुराईयों से उनका कोई लेना देना नहीं है। उन्होंने श्रावकों से कहा कि गुरूओं ने उन्हे जो प्यार-प्रेम का तोहफा दिया है, उसमें गोता लगाओ। गुरूओं ने जो बाग लगाया है उसमें कांटे ना बोओ और उससे प्राप्त होने वाले मीठे फलों को खाओ। जिन गुरूओं ने जीवन में आनंद, एक नई दिशा, ऊंची उडान भरने की हिम्मत और आशा की किरणें प्रदान की हैं, उनका किसी के बहकावे में आकर बहिष्कार मत करो। गुरूओं के लगाए गए बाग को उजाड़ने का प्रयास मत करों।
हमेशा गुरूओं के प्रति समर्पित रहो और गुरूओं द्वारा बताई गई वाणी को जीवन में उतारो। उन्होंने कहा कि अगर बाहर का आदमी किसी बाग में जाता है तो वह फल खाता है। उस फल में केला और छिलका दोनों ही जरूरी है। अगर हम छिलके के बगैर केला रखेंगे तो वह जल्द काला पड़ जाएगा। इस पर अगर छिलका घमंड करके कि उसके बगैर काम नहीं चल पा रहा है तो उसे फेंक दिया जाता है। यहां पर यह चरितार्थ होता है कि एक दूसरे के बिना केले व छिलके का कोई अस्तित्व नहीं है। ठीक इसी प्रकार की स्थिति समाज में भी है। जिस समाज में हम रह रहे हैं वहां पर भी एक-दूसरे के बिना किसी का काम नहीं चल पाता। सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, व्यापारिक व अन्य कारणों से हमें एक दूसरे की कहीं ना कहीं जरूरत रहती है।

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