भास्कर ओपिनियन: चुनावी राजनीति, क्या हाईकमान पर भरोसा नहीं रहा? कांग्रेस में इतनी बेचैनी क्यों है?

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कुछ ही क्षण पहले

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इतिहास में कभी भी कांग्रेस में इतनी बेचैनी नहीं देखी गई जितनी इस बार लोकसभा चुनाव से पहले दिखाई दे रही है। पार्टी के नेता थोक के भाव में भाजपा का दामन थाम रहे हैं। हालाँकि भाजपा की यह रणनीति रही है कि चुनाव से ऐन पहले वह कांग्रेसियों को तोड़ कर उसका आत्म विश्वास डगमगाने का खेल करती है लेकिन इस बार कहानी कुछ अलग है। जिन कांग्रेसी नेताओं को लोकसभा का टिकट मिलने की उम्मीद नहीं है वे भी भाजपा की तरफ़ जा रहे हैं।

लोकसभा चुनावों से पहले राजस्थान कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने रविवार को भाजपा जॉइन कर ली।

लोकसभा चुनावों से पहले राजस्थान कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने रविवार को भाजपा जॉइन कर ली।

राजस्थान के लालचंद कटारिया और रिछपाल मिर्धा हों या मध्यप्रदेश के सुरेश पचौरी, सबका कांग्रेस से मोह भंग हो गया है। दूसरी, और ज़्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि जो नेता कांग्रेस में जमे हुए हैं, डटे हुए हैं, वे भी लोकसभा का चुनाव लड़ने से कतरा रहे हैं। कोई न कोई बहाना बनाकर कन्नी काट रहे हैं। दिग्विजय सिंह पहले ही चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं। कमलनाथ घबराए हुए हैं। वे भाजपा का दामन थामते- थामते चूक गए। बेचारे न इधर के रहे, न उधर के। कम से कम फ़िलहाल तो उनकी स्थिति ऐसी ही है।

कांग्रेस आलाकमान कहे जाने वाले मल्लिकार्जुन खरगे खुद भी चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके। जब आलाकमान के मन में ही चुनावी राजनीति से भागने का विचार आ गया है तो बाक़ी पार्टी नेताओं की क्या हालत होगी, आसानी से समझा जा सकता है। पहली बार स्वयं सोनिया गांधी ने राज्यसभा का रास्ता चुन लिया है। प्रियंका गांधी का चुनाव लड़ना अब तक तय नहीं है। अकेले राहुल गांधी कांग्रेस की तरफ़ से ख़म ठोक कर खड़े हुए हैं। वे वायनाड से चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। कांग्रेस उम्मीदवारों की पहली सूची में उनका नाम है।

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए कैंडिडेट्स की पहली लिस्ट 8 मार्च को जारी की थी।

कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव के लिए कैंडिडेट्स की पहली लिस्ट 8 मार्च को जारी की थी।

पहली सूची से याद आया इसमें ज़्यादातर नाम दक्षिण के राज्यों से हैं या इसमें दक्षिण की सीटों के उम्मीदवार ही हैं। भाजपा से जहां पार्टी को सबसे बड़ी चुनौती मिलनी है, उस मध्य भारत और उत्तरी राज्यों की सीटों से एक भी नाम अब तक कांग्रेस ने घोषित नहीं किया है। जबकि इन राज्यों में भी पार्टी सब के सब नए चेहरे तो लाने वाली है नहीं! दूसरी पार्टियों से तालमेल का अभी ज़्यादा अता- पता है नहीं। इस तरह आधे- अधूरे मन से भला लोकसभा चुनाव कैसे जीता जा सकता है? चुनाव घोषित होने से पहले ही भारतीय जनता पार्टी बहुत भारी दिखाई दे रही है। चार सौ पार का उसका नारा निश्चित तौर पर कोई जादुई काम करने वाला है। इस सब के बीच कांग्रेस अपने कार्यकर्ताओं में किस तरह जोश भरेगी, यह बड़ा मुश्किल का मैदान नज़र आ रहा है। हालाँकि चुनाव में कुछ भी संभव है लेकिन फ़िलहाल तो पलड़ा एक ही तरफ़ झुका हुआ दिखाई दे रहा है।

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