प्रशिक्षणाधीन आईएएस अधिकारियों ने ली जींद की ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत की जानकारी

 

एस• के• मित्तल
जींद, भारतीय प्रशासनिक सेवा सहायक आयुक्त (प्रशिक्षणाधीन) 2020 बैच के अधिकारियों की टीम बुधवार को हरियाणा दर्शन कार्यक्रम के अंतर्गत जींद के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक विरासत से रूबरू होने के लिए पहुंची। कार्यक्रम के तहत एसीयूटी प्रदीप सिंह मलिक, दीपक बाबूलाल करवा, पंकज राव, हर्षित कुमार, सी. जयशरध ने महाभारत कालीन पाण्डू पिण्डारा तीर्थ स्थल, भूतेश्वर तीर्थ, रानी तालाब, माता जयंती देवी मन्दिर व संग्रहालय का भ्रमण कर उनके ऐतिहासिक महत्व के बारे में जानकारी ली।

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इस दौरान उनके साथ जिला प्रशासन के निर्देशानुसार सूचना, जन सम्पर्क एवं भाषा विभाग के उपनिदेशक अमित पंवार व इतिहासकार जितेन्द्र अहलावत मौजूद रहे। इस मौके पर उपस्थित इतिहासकार जितेन्द्र अहलावत ने हरियाणा दर्शन के लिए पहुंचे आईएएस अधिकारियों को ऐतिहासिक तीर्थ स्थल पाण्डू पिण्डारा के महत्व को विस्तार से बताते हुए जानकारी देते हुए बताया कि इस तीर्थ का महत्व शल्य पर्व के स्कंद पुराण में है।

ऐसी धार्मिक मान्यता है कि कुरूक्षेत्र की 48 कोस की परिधी में आने वाले पवित्र तीर्थ स्थलों में पिण्डतारक सोम तीर्थ भी एक है। सोमवती अमावस्या, कृष्ण पक्ष, पंचनारायण वली पर तीर्थ में स्नान करने से मिलने वाले पुण्य प्राप्ति का महत्व बताया। जनश्रुति के अनुसार पाण्डूओं ने इसी स्थान पर अपने पिण्डदान कर स्नान किया था। इस तीर्थ स्थान पर प्राचीन काल से ही लाखोरी ईंटों से निर्मित पाण्डूओं का अलग से घाट बना हुआ है। उन्हानें पाण्डू पिण्डारा तीर्थ के पाण्डूओं द्वारा अपने परिवार के पिण्डदान और तर्पण का महत्व भी बताया। उन्होंने बताया कि इतिहासकारों के अनुसार रियासत-ए जींद राजा रघुबीर सिंह ने यहां पर घाट व कुंए का निर्माण करवाया था।

इसमें कुल 38 घाट है, जिनमें से 7 घाट महिलाओं के लिए है। इस तीर्थ स्थल पर लज्जाराम, रतिराम व बाबा लोंगपुरी आश्रम अतिप्राचीन आश्रम है। इसके बाद प्रशिक्षाणाधीन आयुक्तों ने भूतेश्वर तीर्थ व हर कैलाश मन्दिर के दर्शन किए। यह स्थान वर्तमान समय में रानी तालाब के नाम से जाना जाता है। सन् 1858 में रियासत जींद के राजा रघुबीर सिंह ने इसका निर्माण करवाया था। रानी तालाब के बीचोबीच बने हर कैलाश मन्दिर में सफेद रंग का शिवलिंग है, जिसमें सफेद ही फूल और दूध के साथ पूजा अर्चना की जाती है। इस मन्दिर के चारों कोनो में छतरीनुमा आकृतियां बनी हुई है, जो इस मन्दिर को पंचायतन मन्दिर का स्वरूप प्रदान करती है।

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तत्पश्चात टीम ने सिद्धपीठ जयंती देवी मन्दिर में पहुंचकर उसके प्राचीन मान्यता व इतिहास के बारे में जानकारी ली। श्रीराज राजेश्वरी मंशादेवी मन्दिर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह मन्दिर रियासत के राजा स्वरूप सिंह ने 1854 में बनवाया था। इस दौरान टीम ने जयंती देवी संग्रहालय में रखे जींद व आसपास के क्षेत्र से हडप्पा संस्कृति व प्राचीन दस्तावेजों के बारे में भी जानकारी प्राप्त की।

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