खड़गे का राष्ट्रपति को पत्र- सैनिक स्कूलों का निजीकरण रोकें: सरकार इनका संचालन BJP-RSS के लोगों को दे रही, इससे लोकतंत्र कमजोर होगा

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नई दिल्ली26 मिनट पहले

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खड़गे ने अपने पत्र में एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि केंद्र सरकार ने 62% नए स्कूलों को चलाने का जिम्मा RSS-भाजपा और संघ से जुड़े लोगों को दिया है।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर सैनिक स्कूलों के निजीकरण के केंद्र सरकार के फैसले पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि NGO और प्राइवेट संस्थानों के साथ पार्टनरशिप मोड में सैनिक स्कूलों को चलाने का सरकार का फैसला दिखाता है कि सरकार इन स्कूलों का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रही है। इस फैसले को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

खड़गे ने अपने पत्र में एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि नए सैनिक स्कूलों को लेकर जो 40 मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग फाइनल किए गए हैं, उनमें से 62% ऐसे स्कूलों के साथ साइन किए गए हैं, जिनका संचालन RSS-भाजपा और संघ से जुड़े लोग कर रहे हैं।

इससे पहले केंद्र सरकार ने 2 अप्रैल को इस मीडिया रिपोर्ट को खारिज कर दिया था। रक्षा मंत्रालय ने कहा, ‘सैनिक स्कूलों को लेकर प्रेस में कुछ आर्टिकल छपे हैं। ये दावे बेबुनियाद हैं। हमें 500 से ज्यादा एप्लिकेशन मिली थीं, जिसमें से अब तक हमने 45 स्कूलों के आवेदन को मंजूरी दी है।’

मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार शाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम लिखी चिट्‌ठी शेयर की।

मल्लिकार्जुन खड़गे ने बुधवार शाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के नाम लिखी चिट्‌ठी शेयर की।

खड़गे के पत्र की प्रमुख बातें…
1. खड़गे ने लिखा कि आप इस तथ्य की सराहना करेंगीं कि सेना को राजनीति से दूर रखने का फैसला ऊंचे लोकतांत्रिक मूल्यों और अंतरराष्ट्रीय अनुभवों के आधार पर किया गया था। यही वजह थी कि जब दुनियाभर में सैन्य हस्तक्षेप के चलते सरकारें गिर रही थीं तो, भारत में लोकतंत्र प्रगति करता रहा।

2. इस मामले में, मैं आपको बताना चाहता हूं कि RTI इन्क्वायरी पर आधारित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि नए पीपीपी मॉडल का उपयोग करके आपकी सरकार ने सैनिक स्कूलों की निजीकरण की शुरुआत की है। इसके चलते अब 62% स्कूलों का मालिकाना हक BJP-RSS नेताओं के पास आ गया हैं।

3. देश में 33 सैनिक स्कूल हैं। ये स्कूल रक्षा मंत्रालय (MoD) के अधीन आने वाली स्वायत्त संस्था सैनिक स्कूल सोसाइटी (SSS) के तहत संचालित होते हैं। इनकी पूरी फंडिंग सरकार करती है।

4. 2021 में, केंद्र सरकार ने सैनिक स्कूलों की निजीकरण की शुरुआत की। नतीजतन, इस मॉडल पर आधारित 100 नए स्कूलों में से 40 के लिए समझौते (MoUs) हस्ताक्षर किए गए हैं। इस मॉडल के तहत केंद्र सरकार मेरिट और जरूरत के आधार पर क्लास 6 से 12 तक हर क्लास के 50% छात्रों (50 छात्रों तक) को 50% फीस (40 हजार रुपए तक) की सालाना मदद देगी। इसका मतलब ये है कि एक स्कूल जहां 12वीं तक क्लासेस हैं वहां सैनिक स्कूल सोसाइटी अन्य फायदों के साथ सालाना अधिकतम 1.2 करोड़ रुपए की मदद मुहैया कराएगी।

5. इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि नए सैनिक स्कूलों को लेकर जो 40 मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग फाइनल किए गए हैं, उनमें से 62% ऐसे संस्थानों के साथ साइन किए गए हैं, जिनका संचालन RSS-भाजपा और संघ से जुड़े लोग कर रहे हैं। इनमें एक मुख्यमंत्री का परिवार, विधायक, भाजपा के पदाधिकारी और RSS नेता शामिल हैं।

6. सरकार का ये कदम लंबे समय से चली आ रही उस परंपरा का उल्लंघन करता है, जिसके तहत सेना और उससे जुड़े संस्थानों को राजनीति और राजनीतिक विचारधाराओं से दूर रखा जाएगा। ये स्कूल नेशनल डिफेंस एकेडमी और इंडियन नेवल एकेडमी के लिए भविष्य के कैडेट तैयार करने का काम करते हैं। सैनिक स्कूलों की स्थापना देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने 1961 में की थी, और तब से ही ये सैन्य नेतृत्व और उत्कृष्टता का प्रतीक बने हुए हैं।

7. यह कोई हैरान करने वाली बात नहीं है कि केंद्र सरकार ने इस स्थापित परंपरा को तोड़ दिया है। तेजी से अपनी आइडियोलॉजी थोपने की RSS की इस योजना के तहत पहले ही देश के एक से बढ़कर एक संस्थानों को खोखला किया जा चुका है। अब इस कड़ी में आर्म्ड फोर्सेस के स्वभाव और नैतिकता को भी गहरा धक्का दे दिया गया है। सैनिक स्कूलों में किसी एक विचारधारा की शिक्षा मुहैया कराने से न सिर्फ समावेशिता खत्म होगी, बल्कि राजनीतिक, धार्मिक, व्यावसायिक, पारिवारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सिद्धांतों के जरिए सैनिक स्कूलों का राष्ट्रीय किरदार भी नष्ट हो जाएगा।

8. इसलिए मेरी आपसे मांग है कि इस निजीकरण की पॉलिसी को पूरी तरह वापस लिया जाए और इन MoU को निरस्त किया जाए, ताकि आर्म्ड फोर्सेस स्कूलों में पढ़ रहे बच्चे वह किरदार, नजरिया और सम्मान बनाए रखे, जो देश की सेवा करने के लिए जरूरी है।

रक्षा मंत्रालय ने कहा था- स्कूलों की योजना बहुत सोच-समझकर बनाई गई
मीडिया रिपोर्ट के जवाब में 2 अप्रैल को रक्षा मंत्रालय ने कहा था कि नए सैनिक स्कूलों की योजना बहुत सोच-समझकर बनाई गई है। इसकी सिलेक्शन प्रोसेस बहुत सख्त है। इसका उद्देश्य पूरा हो सके, साथ ही योग्य छात्रों को जरूरी आर्थिक मदद मिल सके इसके लिए इसे संतुलित रखा गया। इसकी लगातार जांच होती है। आवेदक का राजनीतिक झुकाव या उसकी विचारधारा या किसी और चीज से सिलेक्शन प्रोसेस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। इस प्रक्रिया का राजनीतिकरण करना या इस स्कीम के उद्देश्य को लेकर भ्रांति फैलाना गलत है।

पहले फेज में देश में खोले जाएंगे 100 सैनिक स्कूल
मंत्रालय ने बताया कि पहले फेज में सरकार ने देशभर में 100 सैनिक स्कूल खोलने की स्कीम लागू की थी। इसके तहत कई NGO, राज्य सरकारों और शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रहे प्राइवेट सेक्टर से पार्टनरशिप की गई थी। मंत्रालय ने बताया कि हमें 500 से ज्यादा एप्लिकेशन मिली थीं, जिसमें से अब तक हमने 45 स्कूलों के आवेदन को मंजूरी दी है। इसमें मौजूद स्कूल और प्रस्तावित स्कूल शामिल हैं।

सालाना इंस्पेक्शन के बाद अस्थायी अप्रूवल को आगे बढ़ाया जाता है
मंत्रालय के मुताबिक इन स्कूलों के लिए अप्रूवल भी अस्थायी तौर पर दिया जाता है। स्कूल इंस्पेक्शन कमेटी की तरफ से सालाना इंस्पेक्शन के आधार पर इस अप्रूवल को आगे बढ़ाया जाता है। यानी इस स्कीम में किसी संस्था या व्यक्ति को स्कूल चलाते रहने की अनुमति मिलेगी या नहीं, ये तय मानकों को पूरा करने के बाद ही होगा।

ऐसी होती है सिलेक्शन प्रोसेस
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि अक्टूबर 2021 में केंद्र सरकार में केंद्र सरकार ने रक्षा मंत्रालय के तहत सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के 100 स्कूलों को सैनिक स्कूलों से एफिलिएट करने को मंजूरी दी थी। स्कूलों को चुनने की प्रक्रिया के बारे में रक्षा मंत्रालय ने बताया कि एक स्कूल इवैलुएशन कमेटी बनाई गई थी। इसमें आसपास के सैनिक स्कूल या नवोदय स्कूल के प्रिंसिपल को शामिल किया गया था और डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट को चेयरपर्सन बनाया गया था।

मानकों के मुताबिक आवेदक स्कूल का दौरा किया गया और उसका वेरिफिकेशन किया गया। एक अप्रूवल कमेटी जिसमें सैनिक स्कूल सोसायटी का जॉइंट सेक्रेटरी अध्यक्ष पद पर रहता है, CBSE का सचिव और एक प्रख्यात शिक्षाविद् सदस्य के तौर पर शामिल होते हैं। वे ही अंतिम सिफारिशें देते हैं।

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