नच्चो-नच्चो-नच्चो.. रुत नचन दी आई है… यह गीत गाते हुए कुछ बच्चे नाच रहे थे। कुछ बच्चे एक दूसरे की पकड़म-पकड़ाई के खेल में व्यस्त थे तो कुछ दूधिए से दूध लेने के लिए लाइनों में लगे हुए थे। यह दृश्य था फतेहाबाद की अनाज मंडी में बाढ़ पीडि़त परिवारों के रिलीफ कैंप का। बच्चों से जब पूछा गया कि वह पढ़ क्यों नहीं रहे तो जवाब था कि किताबें पानी में डूब गई हैं।
भविष्य की चिंता से अनजान बच्चे रिलीफ कैंप में कैरम खेलते हुए।
पहले कोरोना और अब बाढ़ ने बच्चों की पढ़ाई को भी चौपट कर दिया है। यहां खेल रहे दर्जनों बच्चों में कोई नर्सरी का छात्र था तो कोई, पहली दूसरी, तीसरी या पांचवीं का। बड़े छात्र पशुओं को संभालने, मोबाइल चलाने या फिर अपना सामान संभालने में लगे हुए थे। जब बाढ़ आई तो सामान के साथ-साथ इनकी किताबें व बस्ते धुल गए।
छोटे-छोटे मासूम बच्चों को सिर पर छत तो मिल गई, लेकिन भविष्य का क्या होगा, पता नहीं।
स्कूल बंद हो गए और यह अब बेघर होकर यहां रहने को मजबूर हो गए। पांचवीं में पढऩे वाले अमनदीप ने बताया कि वे शहर के आजाद नगर स्कूल में जाते हैं, लेकिन बाढ़ के चलते पिछले पांच-छह दिनों से स्कूल नहीं गए हैं। उसके आसपास रहने वाले बच्चे भी यहीं हैं, कोई स्कूल नहीं जा रहा, वे यहां पढ़ सकते हैं, लेकिन किताबें घर रह गई हैं।
रिलीफ कैंप में डॉक्टरों की टीम लोगों का चैकअप भी कर रही है।
प्रशासन पूरी तरह से इन शिविरों में रह रहे लोगों को राहत पहुंचाने के काम में जुटा है, लेकिन अभी तक प्रशासन का ध्यान भी बच्चों की शिक्षा की तरफ नहीं गया था। ऐन मौके पर पहुंचे डीईईओ दयानंद सिहाग के संज्ञान में यह मामला लाया गया तो उन्होंने बताया कि प्राइमरी कक्षाओं के बच्चों की किताबें उपलब्ध हैं, जो जल्द ही बच्चों को उपलब्ध करवा दी जाएंगी और नोटबुक भी दी जाएंगी। प्राइमरी से ऊपर की कक्षाओं के बच्चों के लिए जल्द किताबें मंगवाई जाएंगी।
आस-पास की ढाणियों से लोग बाढ़ पीड़ितों को बच्चों के लिए दूध दे रहे हैं।
उधर कैंपों में रह रहे लोगों के आम जीवन की बात करें तो काफी कठिन परिस्थितियों से लोग यहां गुजर रहे हैं। शहर में काफी जगह कैंप बनाए गए हैं। लेकिन अधिकतर आबादी बाढ़ से सुरक्षित रहने के कारण कैंपों में ज्यादा परिवार नहीं हैं। केवल नई अनाज मंडी ही ऐसा कैंप है, जहां पूरा का पूरा ढाणी टाहली वाली गांव के लोग ठहराए गए हैं।
रिलीफ कैंप में बच्चों की जिंदगी इस समय मौज मस्ती में बीत रही है।
गर्मी और उमस के माहौल लोग चारपाइयों पर लेटे रहते हैं, साथ लाया सामान आसपास ही बिखरा हुआ है। कूलरों की व्यवस्था जरूर की गई है और लंगर पानी भी यहीं मिल रहा है। आसपास की ढाणियों से दूधिए दूध लेकर यहां तक पहुंचाने आ रहे हैं। हर दूसरी-तीसरी चारपाई पर झूला लटका है, जिनमें नौनिहाल इस आफत से बेखबर चैन की नींद सोते हैं।
बचा खुचा सामान समेटे लोग रिलीफ कैंपों में गुजर बसर कर रहे हैं, जो कब तक होगा, कोई नहीं जानता।
लखविंद्र, कुलवंत सिंह, जसविंद्र सिंह, कश्मीरो बाई, संतो बाई, मंगत सिंह, गुरजंट सिंह, गुरमेज सिंह आदि ने बताया कि वे सालों से अपने गांव में घर बनाकर काबिज हैं, जो अब ढहने की कगार पर हैं। उनके पास घरों के कागज भी नहीं हैं, पहले भी सरकारी योजनाओं के लिए उनसे कागज मांगे जाते रहे हैं, अब उन्हें डर है कि बाढ़ पीडि़तों की श्रेणी में उन्हें रखा जाएगा या नहीं, कागजों के अभाव में उन्हें सरकार से आया मुआवजा दिया जाएगा या नहीं। या फिर कहीं वे उम्रभर बेघर ही तो नहीं रह जाएंगे, क्योंकि दिहाड़ी कर दोबारा घर बनाना उनके लिए मुमकिन नहीं है।
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