बॉम्बे हाईकोर्ट ने पति और ससुरालवालों के खिलाफ क्रूरता और हिंसा के मामले में एक महिला जज की FIR रद्द कर दी। महिला जज ने आरोप लगाया था कि उनके पति और ससुरालवालों ने उनके चैंबर में घुसकर उन्हें धमकाया और जज के रूप में कर्तव्यों का पालन करने में बाधा डाली।
बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एएस चंदूरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन की बेंच ने कहा कि ऐसा लगता है कि FIR केवल पति और पत्नी के बीच विवाद में बदला लेने के भावना से दर्ज कराई गई थी। किसी ने भी महिला जज को उसके कर्तव्यों को निर्वहन करने से नहीं रोका था।
कोर्ट ने यह भी कहा कि यह एक ऐसा मामला है, अदालती कार्रवाई का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए कोर्ट को अपने अधिकारों का इस्तेमाल करना चाहिए।
मैट्रिमनी साइट के जरिए हुई थी मुलाकात
महाराष्ट्र में न्यायिक अधिकारी के पद पर कार्यरत महिला जज की उसके पति से एक मैट्रिमनी साइट के जरिए हुई थी। दोनों ने फरवरी 2018 में शादी कर ली। महिला जज ने अपनी शिकायत में कहा कि शादी के बाद पति ने उसके साथ वैवाहिक संबंध बनाने से इनकार कर दिया था। इसको लेकर पति-पत्नी के बीच विवाद होता था।
महिला जज ने बताया कि पति ने कोर्ट में तलाक की याचिका लगाई थी। ये मामला पेंडिंग ही था कि पति और उसके भाई ने 7 जून, 2023 को उनके चैंबर में आए और आपसी सहमति से तलाक के लिए जबरन साइन करने की धमकी दी। उसी दिन उसके ससुराल वाले भी चैंबर में आए और धमकी दी।
महिला जज ने दावा किया कि उस दिन उन्हें जज के रूप में अपना काम करने से रोका गया। इसको लेकर महिला जज ने 9 जुलाई, 2023 को पति और ससुरालवालों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की।
पुलिस ने धारा 186, 353 (लोक सेवक को रोकने के लिए आपराधिक बल), 498 ए (क्रूरता) और आईपीसी की धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत प्राथमिकी दर्ज की। FIR में अपराध की अवधि 1 अक्टूबर 2018 से 7 जून 2023 तक थी।
कोर्ट ने मामले पर क्या कहा
इस FIR को रद्द करने की मांग करते हुए महिला जज के पति और ससुरालवालों ने हाई कोर्ट का रुख किया। कोर्ट ने कहा कि उन्हें इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि पति और ससुरालवालों ने महिला जज को सुबह के सेशन में काम करने से रोका या बाधा डालने की कोशिश की।
कोर्ट ने कहा कि दोपहर के सत्र के दौरान भी पति और ससुरालवालों ने कोर्ट में नहीं गए, बल्कि चैंबर में महिला जज का इंतजार कर रहे थे। महिला जज अपनी स्वेच्छा से कोर्ट से उठकर चैंबर में गई थीं। कोर्ट ने यह भी नहीं पाया कि पति ने पत्नी के मन में जज के रूप में अपना कर्तव्य निभाने से डर पैदा करने के लिए कोई बल प्रयोग किया हो।
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