तमिलनाडु विधानसभा से पास हुए बिलों को लटकाने के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने गवर्नर आरएन रवि को अहम नसीहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि मुद्दा सुलझाने के लिए गवर्नर को सीएम के एक साथ बैठकर चर्चा करनी चाहिए। इस मामले की अगली सुनवाई अब 11 दिसंबर को होगी।
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तमिलनाडु विधानसभा से 10 बिल दो बार पारित हो चुके हैं। जिन पर गवर्नर ने सहमति नहीं दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधानसभा से दो बार बिल पारित होने के बाद गवर्नर राष्ट्रपति को रैफर नहीं कर सकते।
सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। इस बेंच की अध्यक्षता CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने की। बेंच ने कहा कि बेहतर होगा अगर गवर्नर सीएम को इस मुद्दे पर चर्चा करने के लिए बुलाए और मामले को हल कर लें।
बिल पारित होने के बाद गवर्नर के पास होते हैं ये तीन विकल्प…
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के आर्टिकल 200 का उल्लेख करते हुए कहा कि विधानसभा से बिल पारित होने के बाद गवर्नर के पास तीन ऑप्शन होते हैं, या तो मंजूरी दे या फिर पुनर्विचार के लिए वापस विधानसभा भेजे या फिर राष्ट्रपति के पास भेजे। अगर पुनर्विचार के लिए विधानसभा भेज दिया है तो राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा जा सकता है।
विशेष सत्र में पारित किए गए थे बिल
गवर्नर ने 12 में से 10 बिलों को 13 नवंबर को बिना कारण बताए विधानसभा में लौटा दिया था और 2 बिलों को राष्ट्रपति के पास भेज दिया था। इसके बाद 18 नवंबर को तमिलनाडु विधानसभा के विशेष सत्र में इन 10 बिलों को फिर से पारित किया गया और गवर्नर की मंजूरी के लिए गवर्नर सेक्रेटेरिएट भेजा गया।
सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिका में राज्य सरकार ने मांग की है कि गवर्नर इन सभी बिलों पर जल्द से जल्द सहमति दें। याचिका में कहा गया है कि गवर्नर का ये रवैया गैरकानूनी है और इन बिलों को लटकाने, अटकाने से डेमोक्रेसी की हार होती है।
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एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि 28 नवंबर को इस केस में नया डेवलपमेंट हुआ था। गवर्नर ने इन बिलों को गवर्नर को रैफर कर दिया है। इसके बाद गवर्नर की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि गवर्नर अगर पारित बिल पर मंजूरी नहीं दे रहे तो जरूरी नहीं की इसे विधानसभा को वापस भेजे।
अटॉर्नी जनरल की इस दलील के बाद CJI ने कहा कि यह मुद्दा केरल गवर्नर वाले केस में सुना जा चुका है। CJI ने कहा कि गवर्नर केंद्र सरकार का प्रतिनिधि है और उसके पास इस मामले निपटने के लिए तीन ही ऑप्शन हैं, जो अनुच्छेद 200 में लिखे हैं। CJI ने कहा कि अगर बिल को दोबारा विधानसभा द्वारा पारित किया गया है तो उसे गवर्नर राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते।
अटॉर्नी जनरल ने कहा कि विधानसभा को इस बिल को फिर पारित करने का अधिकार तब ही है जब गवर्नर इसे खारिज करते हुए कोई वजह बताए। बिना वजह के विधानसभा इस बिल को फिर से पारित नहीं कर सकती। इसके बाद CJI ने CM और गवर्नर को साथ में बैठकर मामले पर चर्चा करने को कहा।
01 दिसंबर 2023) राष्ट्रीय हिन्दी दैनिक न्यूज़पेपर में प्रिंट आज की ख़बर..
पंजाब के गवर्नर को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी फटकार
पंजाब में भी तमिलनाडु की तरह ही गवर्नर और सरकार के बिल पर दस्तखत करने करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पंजाब गवर्नर से कहा था कि आप आग से खेल रहे हैं। लोकतंत्र सही मायने में मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथों से चलता है। विधानसभा में पास बिल अपने पास ना रोकें। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर राज्य सरकार और राज्यपाल में डेडलॉक बना हुआ है तो यह चिंता का विषय है। राज्य में जो भी घटनाक्रम चल रहा है, उससे हम खुश नहीं हैं।
केरल के गवर्नर और CM को SC ने दी थी बैठकर चर्चा करने सलाह
केरल विधानसभा द्वारा पारित किए गए बिलों को लटकाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 29 नवंबर को सुनवाई करते हुए कहा था कि राज्यपाल राज्य सरकार को कानून बनाने से नहीं रोक सकती है। इस मामले में भी कोर्ट ने राज्यपाल और संबंधित मंत्री और सीएम को साथ में बैठकर चर्चा करने को कहा था।
बिल पारित होने के बाद गवर्नर के पास होते हैं ये तीन विकल्प…
भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 में राज्यपाल की शक्तियों और सदन से पारित किए गए बिलों का उल्लेख किया गया है। इसके मुताबिक, अगर कोई बिल राज्य की विधानसभा से पारित होकर गवर्नर के पास पहुंचता है तो गवर्नर के पास तीन ऑप्शन होते हैं, या तो गवर्नर पारित बिल पर मंजूरी दे सकते हैं या दोबारा विधानसभा को विचार करने के लिए कह सकते हैं, या फिर वह बिल को राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं।
भारतीय संविधान के मुताबिक, अगर कोई चुनी हुई सरकार बहुमत में है तो गवर्नर उस सरकार की सलाह पर ही काम कर सकते हैं। इस मामले में गवर्नर अपने विवेक से फैसला नहीं ले सकते।