345 डूबते लोगों को बचाने वाले गोताखोर की कहानी: ब्रेन हेमरेज से तड़पती मां को छोड़कर भगवानदीन रेस्क्यू करने पहुंचे, अब तक 1700 डेडबॉडी निकाल चुके

 

भगवानदीन निषाद…जैसा नाम वैसा ही काम। जिंदगी से हार चुके लोग मरने के लिए छलांग लगाते हैं और भगवानदीन भगवान बनकर उन्हें जीने का एक मौका देते हैं। अब तक 345 लोगों को मौत के मुंह से निकाल लाए हैं। हर थानों में भगवानदीन का नंबर दर्ज है। जहां NDRF और SDRF भी नहीं पहुंच पाती, वहां भगवानदीन को बुलाया जाता है। अब तक 1700 से ज्यादा लाशें निकाल चुके हैं।

345 डूबते लोगों को बचाने वाले गोताखोर की कहानी: ब्रेन हेमरेज से तड़पती मां को छोड़कर भगवानदीन रेस्क्यू करने पहुंचे, अब तक 1700 डेडबॉडी निकाल चुके

भगवानदीन को लोगों को बचाने या फिर डेडबॉडी निकालने के लिए कोई सैलरी नहीं मिलती। उनके पास लाइफ जैकेट तक नहीं है। कोई बीमा नहीं है। रहने के लिए घर नहीं है। लेकिन उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं है। हर दिन लोगों को बचाने के लिए 20 से 30 फीट गहरे पानी में कूद जाते हैं।

दैनिक भास्कर की टीम इस योद्धा से मिलने अयोध्या के उस सरयू घाट पर पहुंची, जहां जिंदगी से हार चुके लोग अक्सर मौत की छलांग लगाते हैं। ‘कर्मवीर’ सीरीज की पहली कड़ी में आज कहानी गोताखोर भगवानदीन निषाद की। उनके संघर्ष की। उनके हौसले की।

शुरुआत 15 सितंबर 2023 की एक घटना से…
सुबह के 11 बज रहे थे। अयोध्या के गुप्तार घाट के किनारे भगवानदीन और उनके भाई प्रदीप निषाद नाव की रिपेयरिंग कर रहे थे। घाट के दूसरे छोर पर लोग स्नान कर रहे थे। इस बीच एक लड़का नहाते-नहाते सरयू के बीचोंबीच पहुंच गया। उस जगह नदी का बहाव तेज था।

लड़के का कंट्रोल छूट गया। तेज धारा में फंसकर वह छटपटाने लगा। उसे देख घाट पर मौजूद लोग चिल्लाने लगे। इस शोर को सुनकर भगवानदीन पूरा माजरा समझ चुके थे। उधर…लड़का नदी में डूबने लगा था। सिर्फ उसके हाथ ही नजर आ रहे थे।

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भगवानदीन सारा काम छोड़कर भागे। बगल में बैठे प्रदीप से नाव लाने को कहा और 15 फीट गहरी नदी में छलांग लगा दी। लड़का बचने के लिए पानी में हाथ-पांव मार रहा था। भगवानदीन ने उसके बाल पकड़ लिए और पानी के ऊपरी छोर पर ले आए।

भगवानदीन 20 साल से गोताखोरी कर रहे हैं। गुप्तार घाट पर यह सुबह तैनात रहते हैं। इनका घर भी नदी से सटा हुआ है।

‘अंकल मुझे बचा लो…निकाल लो मुझे।’ लड़का चिल्लाता रहा, भगवानदीन उसे खींचकर नदी के किनारे लाने लगे। तब तक उनके भाई गोताखोर प्रदीप वहां नाव लेकर पहुंच गए। लड़के को बाहर निकाला। परिवार वालों को सौंप दिया गया। लड़के की मां इतनी भावुक हो गईं कि उन्होंने भगवानदीन के पैर छुए और 500 रुपए की नोट हाथ में पकड़ा दी।

24 घंटे फोन ऑन रहता है, 6 डिग्री तापमान में भी किया रेस्क्यू
अयोध्या में जान देने के लिए सरयू नदी में कूदने वालों में कई जिंदा नहीं बचते, तो कुछ को नदी किनारे मौजूद गोताखोर बचा लेते हैं। भगवानदीन की तरह अयोध्या में करीब 28 गोताखोर हैं, जो अपने पुरखों की तरह ये जोखिम भरा काम करते हैं। इनमें से कुछ तेज-तर्रार गोताखोरों को पुलिस से ‘उत्तर प्रदेश सरकारी गोताखोर’ का दर्जा मिला है। भगवानदीन भी उनमें से एक हैं।

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यूपी पुलिस से दिए गए अपने कार्ड को दिखाते हुए भगवानदीन कहते हैं, “सुबह 6 बजे से शाम 8 तक नदी के किनारे रहते हैं। खाली वक्त में नाव चलाता हूं। बीच-बीच में चाय की दुकान भी देख लेता हूं। अयोध्या के सभी पुलिस स्टेशनों पर हमारे नंबर दिए गए हैं।

इसलिए 24 घंटे फोन ऑन रखना पड़ता है। देर रात पुलिस थाने से फोन आने पर मौके पर पहुंचना पड़ता है। मैंने ठंड के वक्त 6 डिग्री तापमान में भी पानी में 20 फीट नीचे जाकर लोगों को बचाया है।”

ये फोटो अक्टूबर 2021 की है। भगवानदीन और उनके साथी गोताखोरों ने गुप्तार घाट के पास एक लड़के को बचाया था। लेकिन अस्पताल ले जाते वक्त उसकी मौत हो गई।

भगवानदीन साल 2003 से गोताखोरी का काम कर रहे हैं। इस दरमियान उन्होंने 300 से ज्यादा लोगों की जान बचाई। वहीं, 1700 से ज्यादा डेडबॉडी सरयू नदी से निकाली है। भगवानदीन के पिता रामकुमार निषाद भी अयोध्या के पुराने गोताखोर थे। साल 2016 में उनका निधन हो गया।

‘मां को ब्रेन हेमरेज हो गया…उस दिन भी नदी में कूदा’
भगवानदीन परिवार में सबसे बड़े हैं। उनपर 2 छोटे भाइयों विक्रम, सोनू और बहनें पूनम-नीलम की जिम्मेदारी है। पिता की मौत के बाद मां राजकुमारी घर का ख्याल रख रही थीं। लेकिन 2021 में उनकी ब्रेन हेमरेज से मौत हो गई। जब राजकुमारी की मौत हुई, उस दिन भी भगवानदीन ने काम किया था।

वह कहते हैं, “2 साल पहले गर्मियों के दिन थे…मां को तेज सिरदर्द हुआ। वह खाना बनाते-बनाते अचानक रसोई में बेहोश हो गईं। मैं उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचा तो डॉक्टरों ने बताया कि ब्रेन हेमरेज हुआ है। माता जी को एडमिट करना पड़ेगा। मैं उन्हें भर्ती करवाने के लिए कागज तैयार करवा रहा था। तभी मेरे पास कैंट थाने से फोन आया कि 2 लड़के नदी में कूद गए हैं। मैं अपने भाइयों को मां के पास छोड़कर वहां चला गया।”

“जब मैं वहां पहुंचा तो लड़कों को नदी में कूदे हुए 15 मिनट बीत गए थे। नदी में छलांग लगाई, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मैंने किसी तरह एक लड़के को बचा लिया, लेकिन दूसरे की डूबने से जान चली गई। मैंने लड़के की लाश निकाली और पुलिस को सौंपकर वापस मां के पास अस्पताल पहुंच गया। 2 दिन मां का इलाज चला…लेकिन उनका देहांत गया।”

दूसरे की जान बचाते हैं…खुद की बीमा पॉलिसी तक नहीं
नदी में डूबते लोगों को बचाते समय या डेडबॉडी निकालते वक्त गोताखोरों की जान को भी खतरा रहता है। लंबे समय तक पानी में रहने से मृत शरीर का वजन बढ़ जाता है। इस वजह से गहराई में जाकर रेस्क्यू करना कई बार गोताखोरों के लिए भी जानलेवा साबित होता है।

गोताखोर टिंकू कहते हैं, “हम गोताखोर पानी में 3 से 4 मिनट तक सांस रोककर रहते हैं। बावजूद इसके हर वक्त जान जाने का खतरा रहता था। कई बार आप किसी डूबते इंसान को बचाने पहुंचते हैं तो वह भी बचने के लिए आपको तेजी से पानी में खींचता है। इससे गोताखोर का बैलेंस बिगड़ने का खतरा होता है। कई बार बचने और बचाने वाले…दोनों की डूबकर मौत हो जाती है।”

“अयोध्या के घाटों पर रोजाना ड्यूटी करने वाले 25 से ज्यादा गोताखोर हैं। सभी हर दिन अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरे कि जिंदगी बचाते हैं लेकिन खुद के पास बीमा पॉलिसी तक नहीं है। पिछले विधानसभा चुनाव में हमें सरकारी आवास और मासिक भत्ता देने का वादा किया गया, लेकिन आज तक कुछ नहीं मिला।”

भगवानदीन अयोध्या गोताखोर टीम के हेड हैं। वह सरयू किनारे रहने वाले युवाओं को गोताखोरी की ट्रेनिंग देते रहते हैं।

गोता लगाते-लगाते शरीर कड़ा पड़ा गया…सेफ्टी किट नहीं मिली
गोताखोर भगवानदीन कहते हैं, “हमारी टीम ने सिर्फ अयोध्या ही नहीं बहराइच, जौनपुर, बलरामपुर, गोंडा और बाराबंकी तक जाकर डेडबॉडी निकाली है। फिर भी गोताखोरों को कोई सुरक्षा उपकरण नहीं दिए गए। बगैर लाइफ-जैकेट काम करना पड़ता है। कभी-कभार डेडबॉडी गंदे नालों में पड़ी मिलती है। बदबूदार पानी में सांस रोककर शव निकालना मुश्किल भरा काम होता है। इसमें जोखिम के साथ-साथ खाल की बीमारियां भी हो जाती हैं।”

वो आगे कहते हैं कि 2003 से हम गोताखोरी कर रहे हैं। इतने वर्षों में गहरे पानी से लाश निकालते-निकालते आंखें लाल पड़ गई हैं। हाथ कड़े हो चुके हैं…बदन घिर चुका है। ये काम करने का हमें कोई वेतन नहीं मिलता। हां… कभी-कभी लोगों को बचाने पर उनके घरवाले 300 से 500 रुपए जरूर दे देते हैं। कई बार जिस जगह NDRF की टीम नहीं पहुंच पाती उस जगह गोताखोरों की मदद ली जाती है। क्योंकि उन्हें पता रहता है कि नदी में किस जगह ज्यादा गहराई है। किस जगह कम है।

पुलिस की मदद के लिए दिन-रात नदी में कूदने को तैयार रहने वाले गोताखोरों को कोई खास सुविधा भी नहीं मिलती। गुप्तार घाट से लेकर 12 किलोमीटर तक गोताखोर भगवानदीन, प्रदीप, दिनेश और टिंकू तैनात हैं। सब ने बताया कि गोताखोरी से जुड़े परिवारों की मूलभूत सुविधाओं पर भी प्रशासन ध्यान नहीं देता। इतनी तंगी है कि घर चलाने के लिए कुछ गोताखोरों ने काम छोड़कर होटल, चाय की टपरी और रिक्शा चलाने का काम पकड़ लिया है।

जिन लोगों को बचाया वह दोस्त बन गए…आज भी फोन करते हैं
भगवानदीन अब तक 300 से ज्यादा लोगों को बचा चुके हैं। जिन लोगों को उन्होंने मौत के मुंह से वापस लाया वह आज भी उन्हें फोन करते हैं। त्योहारों पर उनके लिए खास उपहार लेकर आते हैं।

भगवानदीन कहते हैं, “पिछले साल नदी में नहा रही महिला अचानक फिसलकर गहरे पानी में चली गई। जब मैंने उसे बाहर निकाला तो वह होश में नहीं थी। हमारी टीम ने उसे अस्पताल पहुंचाया जहां इलाज के बाद उसे होश आया और उसकी जान बच गई। वह महिला आज भी हमें फोन करके हालचाल पूछती है। होली-दिवाली पर हमारे लिए कपड़े लाती है। ऐसे लोग ही हमें इस काम को करने की ताकत देते हैं।”

गणेश चतुर्थी- नवरात्र में काम डबल हो जाता है
गोताखोर भगवानदीन के मुताबिक, त्योहारों और मूर्ति विसर्जन के टाइम पर गोताखोरों का काम बढ़ जाता है, क्योंकि इस बीच नदी किनारे सबसे ज्यादा भीड़ जुटती है। नवरात्र और गणेश चतुर्थी के समय अयोध्या के हर घाट पर 2 से 3 गोताखोर रहते हैं। यहां के सारे पुलिस स्टेशन और अस्पतालों पर हमारे नंबर दिए गए हैं। कहीं भी जरूरत पड़ती है तो हम तुरंत लोगों को बचाने पहुंच जाते हैं।

गोताखोरों को सैलरी के नाम पर सिर्फ आश्वासन
साल 2005 में अयोध्या के 28 गोताखोरों को ‘उत्तर प्रदेश सरकारी गोताखोर’ का दर्जा मिला। सबको विशेष कार्ड बनाकर दिए गए। साथ ही हर महीने 500 रुपए भत्ता देने की बात तय हुई, लेकिन एक बार भी यह रकम गोताखोरों को नहीं मिली। 15 अगस्त 2023 को यूपी के जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने अयोध्या के गोताखोरों को सम्मानित किया। तब भी हर गोताखोर को वर्दी और भत्ता देने का वादा किया गया, लेकिन इसके बाद भी कुछ नहीं हुआ।

अयोध्या के घाटों पर तैनात गोताखोरों को ऐसे कार्ड दिए गए हैं।

भगवानदीन ने बताया, “गोताखोर कार्ड को हर दूसरे साल रिन्यू कराना पड़ता है। इसी कार्ड से पुलिस के पास हमारा रिकॉर्ड मेंटेन रहता है। जब यह कार्ड मिला था, तब कहा गया था कि इसे दिखाकर ही भत्ता मिलेगा। लेकिन कोई मदद नहीं मिली। बीते 3 साल से यही कार्ड चला रहे हैं।”​​

अब…
यहां तक आपने गोताखोरों की बहादुरी और संघर्ष की कहानी जानी। इनको मिलने वाली सुविधाओं के बारे में नेताओं से लेकर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का क्या कहना है। ये भी जान लीजिए…

पूर्व DGP एके जैन ने कहा- गोताखोरों को सैलरी देना का कोई प्रावधान नहीं

यूपी के पूर्व डीजीपी AK जैन कहते हैं, “उत्तर प्रदेश पुलिस विभाग में गोताखोरों के लिए अलग से कोई पद स्वीकृत नहीं है। हां…नदी किनारे रहने वाले मल्लाहों को जरूर स्पेशल जल पुलिस का दर्जा दिया गया है। ताकि विशेष परिस्थितियों में पुलिस इनकी मदद ले सके। इसके लिए अलग से कोई भत्ता भी अभी तक नहीं तय किया गया, लेकिन बॉडी रेस्क्यू करने के बाद इन्हें प्रशासन अपनी मर्जी से सम्मानित कर सकता है।”

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भगवानदीन जैसे गोताखोर समाज के लिए मसीहा: बृजभूषण शरण
भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह भगवानदीन निषाद को सम्मानित कर चुके हैं। उन्होंने नदी किनारे तैनात रहने वाले गोताखोरों के भत्ते और उनके परिवारों की सामाजिक सुरक्षा का मुद्दा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने रखने का आश्वासन दिया है।

बृजभूषण शरण कहते हैं, “भगवानदीन जैसे गोताखोर समाज के लिए किसी मसीहा से कम नहीं हैं। इन्होंने अयोध्या से लेकर बनारस तक डूबते लोगों को बचाया है। खुद अस्पताल लेकर इलाज भी करवाया है। मैंने इनकी परमानेंट नौकरी के लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से बात की है। जल्द ही इन्हें मदद मिलेगी।”

आखिर में उन तस्वीरों को देख लीजिए जब भगवानदीन को बड़े मंचों पर सम्मानित किया गया…

 

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