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सैंकड़ों शादियों, सामाजिक कार्यक्रमों व पंचायतों का गवाह बना चुका है पिलंग
पिलंग को देखने के लिए दूर-दूर से आते है लोग
एस• के • मित्तल
सफीदों, आज के आधुनिक दौर में जहां बुजुर्गों व उनकी धरोहरों का सम्मान कहीं ना कहीं कम होता दिखाई देता है, वहीं कुछ ऐसे उदाहरण भी समाज में यदाकदा दिख जाते है जब बुजुर्गों व उनकी धरोहरों को विशेष स्थान दिया जाता है। ऐसा ही एक उदाहरण उपमंडल के गांव खेड़ा खेमावती में सामने आया है। इस गांव के कश्यप परिवार की 7वीं पीढ़ी पिछले करीब 350 सालों से अपनी बड़ी दादी की धरोहर पिलंग (चारपाई) को सहेजकर रखे हुए है। इस पिलंग रूपी धरोहर को सहेजकर रखने के लिए कश्यप परिवार की क्षेत्रभर में चर्चा है और दूर-दूर से इस पिलंग को देखने के लिए लोग आते हैं।
सफीदों, आज के आधुनिक दौर में जहां बुजुर्गों व उनकी धरोहरों का सम्मान कहीं ना कहीं कम होता दिखाई देता है, वहीं कुछ ऐसे उदाहरण भी समाज में यदाकदा दिख जाते है जब बुजुर्गों व उनकी धरोहरों को विशेष स्थान दिया जाता है। ऐसा ही एक उदाहरण उपमंडल के गांव खेड़ा खेमावती में सामने आया है। इस गांव के कश्यप परिवार की 7वीं पीढ़ी पिछले करीब 350 सालों से अपनी बड़ी दादी की धरोहर पिलंग (चारपाई) को सहेजकर रखे हुए है। इस पिलंग रूपी धरोहर को सहेजकर रखने के लिए कश्यप परिवार की क्षेत्रभर में चर्चा है और दूर-दूर से इस पिलंग को देखने के लिए लोग आते हैं।
पानीपत जिले का गांव बादड सताना के रहने वाले सामकिया कश्यप की शादी गांव वजीरपुर (गोहाना) में हुई थी। उस वक्त उनकी पत्नी दहेज में एक पिलंग अपने साथ लेकर ससुराल में लेकर आई थी। शादी के बाद सामकिया कश्यप का परिवार सफीदों नगर के बिल्कुल सटे गांव खेडा खेमावती में आ बसा। साथ में यह पिलंग भी यहां पर आ गया था। उसके बाद सामकिया कश्यप के घर में नत्थू राम, बदलू राम, नंबरदार लिछमन व राज सिंह का जन्म हुआ। अब राज सिंह के भी आगे पोता-पोती हो चुके है, उसके बावजूद भी ये पिलंग आज भी ज्यों का त्यों है। परिवार के मुताबिक अपनी याद में सन् 1988 में इस पिलंग को एक बार भरवाया गया था। परिवार को अपनी बड़ी दादी का नाम तो याद नहीं है लेकिन इस पिलंग को वे अपनी दादी के आशीर्वाद के रूप में देखते है।
यह पिलंग आज भी पूरी दुरूस्त अवस्था में है तथा परिवार आज भी इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। परिवार के छोटे-छोटे बच्चे इस पर पूरी धमाचौकड़ी करते हैं। इस परिवार के राज सिंह के मुताबिक पुराने समय में सांग हुआ करते थे और इस पिलंग पर करीब 20 लोगों ने एकसाथ बैठकर सांग का आनंद लिया हुआ है। इसके अलावा यह पिलंग विभिन्न शादी समारोह, सामाजिक कार्यक्रमों व पंचायतों का गवाह बना चुका है। राज सिंह कश्यप के मुताबिक उनके घर भी करीब दो-दो बार गिराकर नए बनाए जा चुके है लेकिन 350 साल गुजर जाने के बावजूद उनकी बड़ी दादी द्वारा लाया गया यह पिलंग यूं का यूं है। उनका कहना है कि जो मजा इस पिलंग पर बैठने व सोने का है वह आज के दौर के बैड़ व फौलडिंग पर भी नहीं है। राज सिंह का कहना है कि उन्होंने इस धरोहर को पूरी तरह से संजोकर रखा हुआ है तथा आगे उनके पोता-पोती भी सहेजकर रखेंगे।
आगे उनके पोता-पोती व नाते-नातिन इस पिलंग से बेहद प्यार करते हैं। राज सिंह ने समाज के युवाओं से आह्वान किया कि वे अपने बड़े-बुजुर्गों की धरोहरों को पूरी तरह से संभालकर रखे तथा अपने बच्चों को उसके बारे में बताए। आज के भ्भौतिकवादी युग में अपनी धरोहरों से जुडऩा बेहद आवश्यक है।
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