आधुनिकता के दौर में फीका पड़ने लगा त्योहारों का रंग: अपनी संस्कृति को भूले लोग, पहले तीज पर मनाया जाता था 10 दिन उत्सव

 

 

आधुनिकता के इस दौर में सबकुछ बदल रहा है। इसका असर हमारी संस्कृति व त्योहारों पर भी पड़ रहा है। सावन मास में मनाई जाने वाली हरियाली तीज भी आज समय के साथ बदल रही है। एक समय था जब हरियाणा में महिलाओं को तीज के त्यौहार बेसबरी से इंतजार होता था। हरियाली तीज को मनाने के कई-कई दिन पहले तैयारियां करना शुरू कर देती थी। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं की मंडलियां गीत गुनगुनाती नजर आती थी। तीज के दिन चारों ओर झूले पड़ जाते थे। इस दिन महिलाएं रंग-बिरंगे घाघरा चोली व आभूषण पहनकर अपने सखी सहेलियों के साथ नाचती थी। तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते थे। तीज के त्यौहार दस दिन तक उत्सव के तौर पर मनाया जाता था, लेकिन आज लोग व्हाट्सएप और फेसबुक पर ही व्यस्त है। त्योहारों पर लोग एक दूसरे को वॉट्सऐप व इंस्टाग्राम से बधाई दे देते है।

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तीज पर्व को लेकर मेहंदी लगवाती महिला।

तीज पर्व को लेकर मेहंदी लगवाती महिला।

तीज पर घर के आंगन में अब नजर नहीं आते झूले

गांव घोघड़ीपुर की रहने वाली 75 वर्षीय दयालो देवी ने कहा कि जब भी तीज आती है तो उनकी पुरानी यादें ताजा हो जाती है। पहले गांव में तीज से कई दिन पहले झूले पड़ने शुरू हो जाते थे। घर की बहू बेटियां आंगन में झूला झूलती नजर आती थी। चारों तरफ रौनके लग जाती थी, लेकिन आज सब कुछ बदल गया है। उस समय की बहुत याद आती है।

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दयालो देवी।

दयालो देवी।

कई दिन पहले दूध इकट्ठा कर लिया जाता था

गांव घोघड़ीपुर की रहने वाली 67 वर्षीय बिमला ने बताया कि तीज के त्यौहार से कई दिन पहले दूध इक_ा कर लिया जाता था, ताकि मावा निकालकर मिठाई बनाई जा सके, लेकिन आज लोग बाजारों की मिलावटी मिठाई से त्यौहार मनाते है।

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बिमला देवी।

बिमला देवी।

बहुओं को होता था कोथली (सिंधारा) का इंतजार

महिलाओं को तीज के त्यौहार बेसबरी से इंतजार होता था। खासकर बहू-बेटियों को कि उनके घर से कोथली (सिंधरा)आएगी। कोथली में रेशम की रस्सी व पाटड़ी भेजी जाती थी। इसके अलावा घर की बनी मिठाई भेजी जाती थी।

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सावन के महीने में तीज का खास महत्व

सावन के महीने में तीज का खास महत्व है। क्योंकि तीज के बाद त्योहार शुरू होते हैं। महिलाएं तीज की तैयारियां एक-एक महीना पहले शुरू करती थी। घर में पकवान बनाने से लेकर सिंधारा देने की तैयारी होती थी। खासकर नई नवेली दुल्हन के लिए यह त्योहार खास होता था। दस दिन पहले से ही झूला झूलना महिलाएं शुरू कर देती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।

 

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