एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की जैन स्थानक में धर्म सभा को संबोधित संघशास्ता गुरुदेव सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य एवं युवा प्रेरक अरूण मुनि जी महाराज ने कहा कि जीवन में संयम, तप, सेवा व साधना का विशेष महत्व है। जो जीवन में इन्हें अपना लेते हैं उनका जीवन धन्य हो जाता है। संयम आत्मा के निखार का साधन है। उन्होंने जीवन में विनय व समर्पण को समाहित करने पर जोर देते हुए कहा कि संयम की राह पर वीर ही चलते हैं।
सफीदों, नगर की जैन स्थानक में धर्म सभा को संबोधित संघशास्ता गुरुदेव सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य एवं युवा प्रेरक अरूण मुनि जी महाराज ने कहा कि जीवन में संयम, तप, सेवा व साधना का विशेष महत्व है। जो जीवन में इन्हें अपना लेते हैं उनका जीवन धन्य हो जाता है। संयम आत्मा के निखार का साधन है। उन्होंने जीवन में विनय व समर्पण को समाहित करने पर जोर देते हुए कहा कि संयम की राह पर वीर ही चलते हैं।
जो अपने इंद्रिय और मन पर अनुशासन करना जान जाता है वे ही संयम के पुष्पों से जीवन को सजाते हैं। मनुष्य को नित्य ही आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपनी गलतियों पर गौर करना चाहिए। उनको सुधारने के लिए कमर कसनी चाहिए। आत्म-विकास इसका एक हिस्सा है। हमको अपनी संकीर्णता में सीमित नहीं रहना चाहिए। दूसरों के दु:ख हमारे दु:ख हों, दूसरों के सुखों में हम सुखी रहें, इस तरह की वृत्तियों का हम विकास कर सकें तो कहा जाएगा कि हमने जीवन में साधना करने के लिए प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि मन की मलिनता को धोने के लिए स्वाध्याय अति आवश्यक है। हमको श्रेष्ठ विचार अपने भीतर धारण करने के लिए श्रेष्ठ पुरुषों का सत्संग करना चाहिए।
संतों का सानिध्य प्राप्त करके उनसे वार्ता करनी चाहिए। स्वाध्याय को आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक माना गया है। इसके अलावा हमको सेवा कार्यों के लिए भी समय निकालना चाहिए। अपने जीवन का कुछ समय व धन देश, धर्म व समाज के लिए अवश्य लगाना चाहिए। हम केवल भौतिक जीवन ही ना जिए बल्कि आध्यात्मिक जीवन भी जिए। हमारी क्षमताओं का उपयोग, हमारे समय का उपयोग, पेट पालने तक ही सीमित न रहे, बल्कि लोकमंगल और लोकहित के लिए भी खर्च करें।
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