पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की पहली मीडिया समिट नई दिल्ली में 13 सितंबर को आयोजित हुई।
टेक्नोलॉजी और डिजिटल मीडिया के उभार के साथ ही भारत में अखबारों के भविष्य को लेकर लंबे समय से चिंताएं जताई जा रही हैं, लेकिन हकीकत एकदम इसके उलट है। कोरोना के बाद न्यूजपेपर्स की डिमांड और बढ़ी है। वे न सिर्फ मजबूती के साथ लोगों की आवाज बुलंद कर रहे हैं, उनकी समस्याओं को दुनिया के सामने ला रहे हैं, बल्कि संस्थानों का प्रॉफिट और युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं। यह बात सामने आई ‘पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ की पहली मीडिया समिट में।
पीएचडीसीसीआई की मीडिया एंड कम्युनिकेशन कमेटी की तरफ से नई दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स, जर्नलिस्ट्स, टेक इनोवेटर्स और पॉलिसी मेकर्स शामिल हुए।
PHD चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की पहली मीडिया समिट में इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स, जर्नलिस्ट्स, टेक इनोवेटर्स और पॉलिसी मेकर्स शामिल हुए।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय सचिव अपूर्व चंद्र, पीएचडीसीसीआई के प्रेसिडेंट साकेत डालमिया और एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ. रंजीत मेहता, दैनिक भास्कर ग्रुप के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर और PHDCCI की मीडिया एंड कम्युनिकेशन कमेटी के चेयरमैन पवन अग्रवाल, टाइम्स ग्रुप के सीईओ मोहित जैन ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।
इस दौरान एक्सपर्ट्स ने बताया कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा न्यूजपेपर मार्केट है। जहां 1 लाख से ज्यादा अखबार रजिस्टर्ड हैं और रोज 24 करोड़ से अधिक प्रतियां प्रकाशित होती हैं। 22 भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले अखबार आम आदमी की आवाज बुलंद कर रहे हैं।
प्रसार के मामले में हिंदी अखबार अव्वल हैं, उनके बाद दूसरे नंबर पर अंग्रेजी अखबार और तीसरे नंबर पर तेलुगु अखबार सबसे ज्यादा पढ़े जाते हैं। इनके अलावा गुजराती, बंगाली, मलयालम, कन्नड़, मराठी, तमिल, पंजाबी, ओडिया, असमिया और उर्दू अखबार भी प्रमुखता के साथ प्रकाशित होते हैं।
इस दौरान पीएचडीसीसीआई प्रेसिडेंट साकेत डालमिया ने कहा कि आज मीडिया सिर्फ जानकारी ही नहीं दे रहा है, बल्कि लोगों के जीने के ढंग को भी प्रभावित कर रहा है। उन्होंने मीडिया के सामने मौजूद इन चुनौतियों पर बात करने की जरूरत पर जोर दिया।
दैनिक भास्कर ग्रुप के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर पवन अग्रवाल ने कहा कि कोविड के बाद भारतीय भाषाओं में निकलने वाले अखबारों ने तेजी से तरक्की की है।
दैनिक भास्कर ग्रुप के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर पवन अग्रवाल ने कहा कि कोविड के बाद भारतीय भाषाओं में निकलने वाले अखबारों ने न सिर्फ तेजी से तरक्की की है, बल्कि नई पीढ़ी को भी खुद से जोड़ा है। उन्होंने कहा कि फेक न्यूज और सूचनाओं की बाढ़ के बीच अखबार आज भी सबसे भरोसेमंद माध्यम हैं।
अपूर्व चंद्र ने कहा कि अंग्रेजी की तरफ रुझान के बावजूद देश के टॉप-10 बड़े न्यूजपेपर्स में अधिकतर स्थानीय भाषाओं में निकलने वाले अखबार हैं। प्रसार के मामले में अंग्रेजी न्यूजपेपर उनसे काफी पीछे हैं। सरकार का प्रयास भी यही है कि देश में हो रहे विकास कार्यों की जानकारी आम लोगों को उनकी भाषा में मिल सके।
गांव सिंघाना में चर्च बनाने के प्रयास का मामला गहराया ग्रामीणों ने एसडीएम व डीएसपी को सौंपा ज्ञापन
दैनिक भास्कर ग्रुप के डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल ने कहा कि कोविड-19 के 18 महीनों के दौरान पत्रकारों ने जान दांव पर लगाकर रीडर्स तक खबरें पहुंचाईं।
मीलों आगे निकल आए हैं अखबार
दैनिक भास्कर ग्रुप के डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल ने कहा कि लॉकडाउन के बाद मार्केट खुलते ही 15 दिन के भीतर रीजनल अखबार पटरी पर लौट आए। कोविड-19 के 18 महीनों के दौरान पत्रकारों ने जान दांव पर लगाकर रीडर्स तक खबरें पहुंचाई। जिसके चलते संस्थानों का प्रॉफिट कोविड से पहले की तुलना में और बढ़ गया। भारतीय भाषाओं में प्रकाशित अखबार अब अंग्रेजी अख़बारों से अधिक प्रॉफिटेबल हैं।
वहीं, एबीपी ग्रुप के सीईओ ध्रुबा मुखर्जी ने कहा कि लोग अपने शहर और आसपास की खबरें पढ़ना चाहते हैं, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म पर नहीं मिलतीं। हाइपरलोकल खबरें देकर उनकी यह जरूरत अखबार पूरी करते हैं। यही वजह है कि छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में स्थानीय भाषाओं में निकलने वाले अखबार मजबूती से जड़ें जमा रहे हैं। अमर उजाला के मैनेजिंग डायरेक्टर तन्मय माहेश्वरी और इनाडु के डायरेक्टर आई वेंकट ने भी इस चर्चा में भाग लिया।
भास्कर ग्रुप के नेशनल एडिटर लक्ष्मी पंत ने कहा- छोटे शहरों में काम करने वाले रिपोर्टर लगातार पाठकों के दर्द, उनके गुस्से और उनकी बेचैनी को उठा रहे हैं।
आइडिएशन, इनोवेशन और रिपोर्टिंग से मारी बाजी
इस दौरान रीडर को उसकी जरूरत के मुताबिक कंटेंट मुहैया कराने पर भी बात हुई। एक सवाल का जवाब देते हुए दैनिक भास्कर ग्रुप के नेशनल एडिटर लक्ष्मी पंत ने कहा कि आज भी पत्रकारिता इन्हीं छोटे शहरों में काम करने वाले अखबारों के रिपोर्टरों के दम पर जिंदा है। वे लगातार पाठकों के दर्द, उनके गुस्से और उनकी बेचैनी को उठा रहे हैं। यही वजह है कि कोविड के दौरान जब कहा गया कि प्रिंट खत्म हो जाएगा, तब अखबारों ने पाठकों के दर्द को समझा और आइडिएशन, इनोवेशन व रिपोर्टिंग के बूते आपदा को अवसर में बदल दिया।
डीबी ग्रुप के चीफ कॉरपोरेट सेल्स एंड मार्केटिंग ऑफिसर सत्यजीत सेनगुप्ता ने बताया कि विज्ञापन के जरिए होने वाले रेवेन्यू में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। पिछले साल दैनिक भास्कर ने 17 फीसदी ग्रोथ हासिल की। 65 से 75 फीसदी रेवेन्यू रिटेल मार्केट से आ रहा है। मीडिया में विज्ञापन के बदलते ट्रेंड और रेवेन्यू को लेकर टाइम्स ऑफ इंडिया के ब्रांड डायरेक्टर कौस्तव चटर्जी और आकाश बायजूस के मार्केटिंग हेड सुशांत कुमार ने भी अपनी राय रखी।
मीडिया की फ्रीडम ऑफ स्पीच पर जोर
इस दौरान मीडिया की फ्रीडम ऑफ स्पीच का मुद्दा भी उठा। टीवी लाइव इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर नलिनी सिंह, द वायर के फाउंडर एडिटर सिद्धार्थ वरदराजन, अमर उजाला के अशोक शर्मा ने मीडिया के अभिव्यक्ति की आजादी और जिम्मेदारी से भरी पत्रकारिता पर जोर दिया।
टेक्नोलॉजी के साथ बदले रीडर
वहीं, पीडीलैब डॉट मी के फाउंडर संदीप अमर और नेटवर्क 18 के सीईओ पुनीत सिंघवी ने कहा कि बदलती टेक्नोलॉजी के साथ रीडर्स का टेस्ट भी बदला और साथ ही कंटेंट की खपत भी बढ़ती गई।
.