अपने मन को अपना मित्र बनाएं: मुनि नवीन चंद्र

 
एस• के• मित्तल   
सफीदों,        नगर की एसएस जैन स्थानक में रविवार को मित्र दिवस मनाया। धर्मसभा को संबोधित करते हुए संघशास्ता शासनप्रभावक सुदर्शन लाल महाराज के सुशिष्य संघ संचालक नरेश चंद्र महाराज के आज्ञानुवर्ति मधुरवक्ता नवीन चंद्र महाराज तथा सरलमना श्रीपाल मुनि महाराज ने फरमाया कि जो संकट के वक्त काम आए उसे मित्र कहते हैं। भगवान राम और सुग्रीव की मैत्री पूरे जगत में प्रसिद्ध है।
प्रभू वीर ने बताया है कि मनुष्य की आत्मा ही उसकी मित्र होती है और वहीं उसकी शत्रु भी होती है। जो हमें धर्म से जोड़े और बुराई से बचाए उसे मित्र कहते हैं। गुरूदेवों ने बताया कि दौस्त क्या होता है और कौन होता है। मित्र जो मधुरता से तर कर दे उसे मित्र कहते हैं। दोस्त जो हमारे दोषों को अस्त कर दे उसे दोस्त कहते है। गुरु भी हमारे हमारे मित्र होते हैं क्योंकि वह भी हमारे दोषों को दूर करके हमें जीने की प्रेरणा देते हैं। जीवों के प्रति अगर दया भाव आ गया तो मान लो हम मित्र बनने के लायक हैं। उन्होंने बताया कि माया राम जी महाराज बड़ौदा के रहने वाले थे और उनके 8 मित्र थे। माया राम जी महाराज ने पहले दीक्षा ले ली।
बाद में उनके आठों मित्रों ने मित्रता निभाते हुए उनके ही रास्ते पर चलते हुए दीक्षा अंगीकार कर ली। सही मायनों में यही मित्रता होती है। उन्होंने कहा कि सच्चे मित्र बने, धर्म के मित्र बने, माता-पिता को भी अपना मित्र बनाएं और उनकी आज्ञा का पालन करें। औरों को मित्र बनाने से पहले अपनो को अपना मित्र बनाएं और अपनों को अपना मित्र बनाने से पहले अपने मन को अपना मित्र बनाएं। अगर हमारा मन हमारे कहने में है तो सारा संसार हमारा अपना बन जाएगा।

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