नई दिल्ली. दिल्ली से लगभग 150 किलोमीटर दूर हरियाणा के राखीगढ़ी में सभ्यता के कई प्रमाण मिले हैं. राखीगढ़ी में आरकेलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) हड़प्पा कालीन इस सभ्यता के प्रमाण को ढूंढने की कोशिश कर रही है. राखीगढ़ी में मिली हड़प्पा कालीन सभ्यता में बेहतरीन टाउन प्लानिंग दिखाई दी है. अभी तक की गई खुदाई से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि वहां पर 18 मीटर के अंतराल पर गलियां बनाई गई थीं. गलियों से लगती हुई नाली भी थी. साथ ही साथ गलियों के किनारे पर सोक पिट बना हुआ था, जोकि हड़प्पा कालीन सभ्यता में स्वच्छता और हाइजीन के बेहतर प्रबंधन को दर्शाता है.
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राखीगढ़ी में एक चूल्हा मिला है जो काफी बड़े आकार का है और इसके साथ- साथ एक एयर ब्लोअर भी दिख रहा है जो कि व्यापार के लिए बड़े चूल्हे के प्रयोग को दर्शाता है. इसके साथ ही साथ राखीगढ़ी में दो शील भी मिले हैं जिस पर वहां की लिपि लिखी गई है. इसके साथ- साथ राखीगढ़ी में माप तौल के स्टैंडर्ड तरीक़े भी मिले है. यहां से सोना, तांबा और कांसे भी मिले हैं जो सभी यहां पर समृद्ध व्यापार की ओर इशारा करते हैं. राखीगढ़ी में मिले हड़प्पा कालीन सभ्यता में कच्ची ईंट और पक्की ईंट दोनों मिली हैं. एएसआई के अधिकारियों का कहना है कि कच्ची ईंट प्राचीन हड़प्पा यानी 5,000 BC के आसपास की है जबकि पक्की ईद 26000 BC के आसपास की है, जिसे मेच्योर हड़प्पा के तौर पर देखा जा रहा है.
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बाद में भी यहां सभ्यता विकसित हुई
राखीगढ़ी से मिट्टी के कच्चे और पके बरतन भी मिले हैं, जिनपर कई बार कच्चे रंगों से पेंट भी किया गया है. हालांकि, इन स्थलों पर गुप्त काल और कुषाण काल के भी कुछ वस्तुओं के अवशेष मिले हैं. एएसआई से जुड़े लोग इसे महत्वपूर्ण स्थान मानते हैं. इसलिए बाद में भी यहां सभ्यता विकसित हुई.
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यह था राखीगढ़ी का कालखंड
एएसआई से जुड़े लोग रखीगढ़ी में मिले हड़प्पा सभ्यता को 5000 BC से 1900 BC के काल खंड मानते हैं. जिसमें से 5000BC से 2600 BC तक के काल खंड को प्री हड़प्पा काल और 2600 से 1900 तक के काल को मेच्योर हड़प्पा काल मानते हैं.
एएसआई सात टीलों पर कर रहा है खोज
राखीगढ़ी में एएसआई फिलहाल लगभग 350 हेक्टेयर में फैले हड़प्पा कालीन 7 टीलो पर अपनी खोज कर रही है. 1989 में इस स्थल की खोज की गई, जबकि इसकी खुदाई 1998 से शुरू हो गई थी जो 2001 तक चली. फिर इसके बाद यहां पर 2013 से 2016 तक खुदाई की गई और सभ्यता से जुड़े कई प्रमाणों की खोज की गई. 2020-21 के केंद्रीय बजट में इसे आईकॉनिक स्थल के तौर पर विकसित करने की परिकल्पना की गई और इसी के तहत 24 फरवरी 2022 से यहां पर खुदाई की जा रही है.
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सभ्यता के पतन के ये कारण हो सकते हैं
राखीगढ़ी में मिली सभ्यता के पतन के कारण को लेकर निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है. इसके साथ ही साथ जानकार यहां किसी विदेशी आक्रमण से भी इंकार करते हैं. उनका मानना है कि हो सकता है कि किसी कारण से जो व्यापार का इको सिस्टम विकसित था वह प्रतिकूल तौर पर प्रभावित हुआ और जिसके कारण इस सभ्यता का अंत हो गया. इनके साथ ही साथ जानकर पानी की कमी को भी पतन का एक महत्वपूर्ण कारण मानते हैं. इसके साथ- साथ मौसम में बदलाव को भी पतन के विभिन्न संभावित कारणों में से एक माना जा सकता है.