बिहार की जातीय गणना को लेकर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया । इसमें सरकार ने कहा है कि जनगणना एक्ट 1948 के अनुसार जनगणना का अधिकार केवल केंद्र सरकार को है, राज्यों को नहीं। हलफनामे में केंद्र ने बताया कि वह भारत के संविधान के प्रावधानों के अनुसार SC/ST/EBC और OBC के स्तर को उठाने के लिए सभी कदम उठा रही है। कोर्ट इस मामले पर सोमवार को फिर सुनवाई करेगा।
इससे पहले 21 अगस्त को सुनवाई हुई थी। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता उपस्थित हुए थे। उन्होंने कहा था कि वे इस केस में किसी पक्ष के साथ नहीं हैं केवल इसके रिजल्ट को लेकर अपना पक्ष रखना चाहते हैं। जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस भट्टी की कोर्ट से मेहता ने 7 दिन का समय मांगा था। इसके बाद 28 अगस्त की तारीख दे दी गई थी।
कोर्ट में बिहार सरकार ने दलील देते हुए कहा कि राज्य में गणना का काम 6 अगस्त को पूरा हो चुका है। सारे डेटा भी ऑनलाइन अपलोड कर दिए गए हैं। इसके बाद याचिकाकर्ता ने डेटा रिलीज करवाने की मांग की थी।
क्या है जनगणना कानून 1948?
हलफनामे में सरकार ने कहा है कि जनगणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की केंद्रीय सूची में एंट्री 69 में आता है। केंद्र ने इसमें दी गई शक्ति का इस्तेमाल करते हुए जनगणना कानून 1948 बनाया है। इस कानून की धारा तीन में सिर्फ केंद्र सरकार को जनगणना करने का अधिकार दिया गया है। संविधान के तहत किसी और संस्था या निकाय को जनगणना या जनगणना जैसी कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है।
NGO ने दायर की है याचिका
NGO एक सोच एक प्रयास और यूथ फॉर इक्वेलिटी ने हाईकोर्ट के एक अगस्त को दिए गए उस फैसले के खिलाफ याचिका लगाई है, जिसमें बिहार सरकार को जाति गणना कराने की परमिशन दी गई थी। एक और याचिका बिहार के नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की ओर से दायर की गई है। इसमें याचिकाकर्ता ने कहा कि पटना हाईकोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान दिए बिना कि बिहार राज्य के पास 6 जून, 2022 की अधिसूचना के से जाति-आधारित गणना को अधिसूचित करने का अधिकार ही नहीं है, उनकी याचिका को गलती से खारिज कर दिया था।
उन्होंने दलील दी कि बिहार सरकार की अधिसूचना, संविधान की अनुसूची VII के साथ पढ़े जाने वाले संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत राज्य और केंद्र के बीच शक्तियों के बंटवारे के संवैधानिक जनादेश के खिलाफ है। जनगणना अधिनियम के दायरे से बाहर है।
पटना हाईकोर्ट ने दी थी हरी झंडी
दरअसल, पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जातीय जनगणना को लेकर उठ रहे सवालों पर सुनवाई की थी। चीफ जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सार्थी की खंडपीठ ने लगातार पांच दिनों तक (3 जुलाई से 7 जुलाई तक) याचिकाकर्ता और बिहार सरकार की दलीलें सुनीं थी।
इसके बाद एक अगस्त को जाति गणना कराने की मंजूरी दे थी। इसके बाद बिहार सरकार ने बचे हुए इलाकों में गणना का कार्य फिर से शुरू करवा दिया।
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