एस• के• मित्तल
सफीदों, संघशास्ता गुरुदेव सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य एवं युवा प्रेरक अरूण मुनि जी महाराज के परम सानिध्य में रविवार को नगर की जैन स्थानक में काली सुकाली का मंगल पाठ का आयोजन किया गया। नगर के सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने जैन स्थानक में पहुंचकर स्वरबद्ध होकर इस मंगल पाठ वाचन किया।
सफीदों, संघशास्ता गुरुदेव सुदर्शन लाल जी महाराज के सुशिष्य एवं युवा प्रेरक अरूण मुनि जी महाराज के परम सानिध्य में रविवार को नगर की जैन स्थानक में काली सुकाली का मंगल पाठ का आयोजन किया गया। नगर के सैंकड़ों श्रद्धालुओं ने जैन स्थानक में पहुंचकर स्वरबद्ध होकर इस मंगल पाठ वाचन किया।
अपने आशीर्वचन में गुरूदेव अरूण मुनि महाराज ने कहा कि हर रोज काली सुकाली महाकाली, कण्हा सुकण्हा महाकण्हा, वीर कण्हा य बोद्धवा, राम कण्हा तहेव य, पीउसेण कण्हा नवमी, दशमी महासेन कण्हा य का पाठ करे। यह पाठ मंगल करने वाला है तथा मनुष्य के हर प्रकार के कष्ट हरने वाला है। इस पाठ का वर्णन जैन शास्त्रों में विद्यमान है तथा पूज्य गुरूदेवों के द्वारा बताया गया पाठ है। उन्होंने उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि वे हर रोज कम से कम 11 बार इस पाठ को करें और दूसरों को भी करने के लिए निरंतर प्रेरित करें, ताकि खुद के साथ-साथ दूसरे लोगों भी इस चमत्कारिक गुणों से अभिभूत हो सके।
इस महामंगलकारी पाठ से सभी व्याधियां दूर हो जाएगी और सर्वत्र आनंद व मंगल होगा। इस धर्मसभा में मुनीष मुनि महाराज ने कहा कि जीवन में शांति का अहम रोल है। जिस घर व मनुष्य के मन में अशांति का भाव होगा वह मनुष्य और उसका परिवार कभी भी जीवन में तरक्की नहीं कर सकता है। कलह-क्लेश से किसी का भी भला होने वाला नहीं है। उन्होंने फरमाया कि हम सभी जीवन में शांति की कामना करते हैं। दिन-रात हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि अशांति हमसे कोसों दूर रहे। फिर भी अशांति बिन बुलाए मेहमान की तरह हमारे जीवन में प्रविष्ट कर ही जाती है। जब मन चिड़चिड़ा हो जाता है तो किसी काम में नहीं रमता। काम में मन नहीं लगने से निराशा का भाव पैदा होता है। यही निराशा क्रोध को आमंत्रित करती है। क्रोध ही अशांति को जन्म देता है। यही अशांति हमारे लिए सर्वथा प्रतिकूल मानी गई है। इससे व्यक्तित्व में अस्थिरता का भाव बढ़ता है।
इसके वशीभूत व्यक्ति प्राय: गलत निर्णय लेकर अपना अहित कर बैठता है। शांति का वास्तविक स्नोत हमारे भीतर ही है। अपने मन को शांत करना ही आंतरिक शांति का सूत्र है। शांति हमारे जीवन में इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि शांत वातावरण में ही मनुष्य के रचनात्मक व्यक्तित्व का विकास होता है। शांति ही सकारात्मकता की वृद्धि करती है। शांति में ही प्रगति न केवल निहित होती है, अपितु उसे समृद्धि की पहली सीढ़ी भी माना जाता है।
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