राचांदपुर सीमा पर मंगलवार (29 अगस्त) को गोलीबारी हुई। इसमें दो वॉलंटियर्स की मौत हो गई, जबकि करीब 7 लोग घायल हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार को नारानसीना में हमलावरों ने खेतों में काम कर रहे किसानों पर गोलाबारी की। इसके जवाब में वॉलंटियर्स ने भी फायरिंग शुरू कर दी। सुरक्षाबलों ने राज्य के अन्य इलाकों में भी गोलीबारी होने की बात कही है।
मृतकों की पहचान लाइबुजम इनाओ और जांगमिनलेन गंगेट के रूप में हुई है। लाइबुजम को बिष्णुपुर के नारानसीना में गोली लग गई थी। उसे इंफाल के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। वहीं, जांगमिनलेन को चुराचांदपुर के सोंगदो गांव में झड़प के दौरान घायल हो गया था।
उधर, पुलिस ने 28 अगस्त को प्रतिबंधित विद्रोही समूह की राजनीतिक विंग रिवोल्यूशनरी पीपुल्स फ्रंट(RPF), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम इसाक-मुइवा (NSCN-IM) के एक-एक एक्टिव कैडर और कांगलेईपाक कम्युनिस्ट पार्टी(KCP) के 2 ओवर-ग्राउंड वर्कर को गिरफ्तार किया गया। इंफाल पूर्व और बिष्णुपुर में तलाशी अभियान के दौरान 6 हथियार, 5 गोला-बारूद और 2 विस्फोटक बरामद किए गए। पुलिस ने 29 अगस्त को इसकी जानकारी दी।
राज्य में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच 3 मई से जारी हिंसा में 160 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि मणिपुर में 6 हजार 523 FIR दर्ज की गई हैं। इनमें से 11 केस महिलाओं और बच्चों की हिंसा से जुड़े हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 7 अगस्त को कहा था कि मणिपुर में हिंसा से जुड़े मामलों की 42 स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीमें (SIT) जांच करेंगी।
65 हजार से अधिक लोगों ने घर छोड़ा
हिंसा में अब तक 160 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं 6 हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। 65 हजार से अधिक लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। आगजनी की 5 हजार से ज्यादा घटनाएं हुई हैं। 6 हजार मामले दर्ज हुए हैं और 144 लोगों की गिरफ्तारी हुई है। राज्य में 36 हजार सुरक्षाकर्मी और 40 IPS तैनात किए गए हैं। पहाड़ी और घाटी दोनों जिलों में कुल 129 चौकियां स्थापित की गईं हैं।
4 पॉइंट्स में जानिए, मणिपुर हिंसा की वजह…
मणिपुर की आबादी करीब 38 लाख है। यहां तीन प्रमुख समुदाय हैं- मैतेई, नगा और कुकी। मैतेई ज्यादातर हिंदू हैं। नगा-कुकी ईसाई धर्म को मानते हैं। ST वर्ग में आते हैं। इनकी आबादी करीब 50% है। राज्य के करीब 10% इलाके में फैली इंफाल घाटी मैतेई समुदाय बहुल ही है। नगा-कुकी की आबादी करीब 34 प्रतिशत है। ये लोग राज्य के करीब 90% इलाके में रहते हैं।
कैसे शुरू हुआ विवाद: मैतेई समुदाय की मांग है कि उन्हें भी जनजाति का दर्जा दिया जाए। समुदाय ने इसके लिए मणिपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई। समुदाय की दलील थी कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले उन्हें जनजाति का ही दर्जा मिला हुआ था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से सिफारिश की कि मैतेई को अनुसूचित जनजाति (ST) में शामिल किया जाए।
मैतेई का तर्क क्या है: मैतेई जनजाति वाले मानते हैं कि सालों पहले उनके राजाओं ने म्यांमार से कुकी काे युद्ध लड़ने के लिए बुलाया था। उसके बाद ये स्थायी निवासी हो गए। इन लोगों ने रोजगार के लिए जंगल काटे और अफीम की खेती करने लगे। इससे मणिपुर ड्रग तस्करी का ट्राएंगल बन गया है। यह सब खुलेआम हो रहा है। इन्होंने नगा लोगों से लड़ने के लिए आर्म्स ग्रुप बनाया।
नगा-कुकी विरोध में क्यों हैं: बाकी दोनों जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने के विरोध में हैं। इनका कहना है कि राज्य की 60 में से 40 विधानसभा सीट पहले से मैतेई बहुल इंफाल घाटी में हैं। ऐसे में ST वर्ग में मैतेई को आरक्षण मिलने से उनके अधिकारों का बंटवारा होगा।
सियासी समीकरण क्या हैं: मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई और 20 विधायक नगा-कुकी जनजाति से हैं। अब तक 12 CM में से दो ही जनजाति से रहे हैं।
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