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- Silkyara Tunnel Collapse| MInistry Of Road And Transport To Audit All 29 Under Construction Tunnels
देहरादून28 मिनट पहले
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जम्मू-कश्मीर के गांदेरबाल जिले में गगनगैर और सोनामार्ग के बीच 6.5 किमी लंबी सुरंग का कंस्ट्रक्शन जारी है। इसके आकार की वजह से इसे Z मोड़ सुरंग नाम दिया गया है।
उत्तरकाशी में सिल्क्यारा सुरंग हादसे के बाद सड़क एवं परिवहन मंत्रालय ने देश भर में निर्माणाधीन सभी 29 सुरंगों का सुरक्षा ऑडिट कराने का फैसला लिया है।
इसके लिए मंत्रालय की तरफ से कोंकण रेलवे कॉरपोरेशन लिमिटेड के साथ समझौता किया गया है। बुधवार को जारी बयान में कहा गया है कि भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) और दिल्ली मेट्रो के विशेषज्ञ संयुक्त रूप से सभी सुरंगों की जांच करेंगे और 7 दिनों में एक रिपोर्ट तैयार करेंगे।
वर्तमान में, हिमाचल प्रदेश में 12, जम्मू-कश्मीर में 6, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान में 2-2 और मध्य प्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और दिल्ली में एक-एक सुरंग बनाई जा रही हैं। इन सुरंगों की कुल लंबाई 79 किमी के बराबर है।
एक्सपर्ट बोले- हिमालय की जियोलॉजी को नजरंदाज किया, इससे हादसा हुआ
मुख्य भूविज्ञानी त्रिभुवन सिंह पांगती ने उत्तरकाशी के सिल्क्यारा सुरंग में भूस्खलन को लेकर कई आशंकाएं जताई हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण से एडीजी पद से रिटायर पांगती ने 35 साल तक हिमालयी क्षेत्रों में विशेषज्ञ के रूप में कार्य किया है। उनकी नजर में ऐसी घटनाओं का सबसे बड़ा कारण भू-तकनीकी और भूभौतिकीय अध्ययन की कमी या उनकी लगातार उपेक्षा है।
इस हादसे के पीछे कई कारणों में से उनका मानना है कि सुरंग निर्माण में ब्लास्टिंग सबसे बड़ा कारण है। उन्होंने साफ कहा कि सुरंग निर्माण में विशेषज्ञों की राय को भी नजरअंदाज किया गया है।
हिमालयी इलाकों में भूस्खलन को गंभीरता से देखना चाहिए
भास्कर से बातचीत के दौरान पांगती ने कहा- ‘हाई टेक्टॉनिक इलाकों में किसी भी सतत विकास में भूविज्ञान की प्रमुख और महत्वपूर्ण भूमिका होती है। हिमालयी इलाके में किसी भी परियोजना से पहले लगातार हो रहे भूस्खलन और इलाके की विस्तृत जानकारी को गंभीरता से देखना चाहिए।
- बिजली और संचार परियोजनाओं के निर्माण में निजी कंपनियों की भागीदारी को गंभीरता से लेते हुए पांगती कहते हैं कि उन्हें भूविज्ञान और इलाके का ज्ञान नहीं है। इसके कारण उत्तराखंड में दुर्घटनाएं हो रही हैं और परियोजनाएं विफल हो रही हैं। उनका मानना है कि हिमालयी इलाके में परिवहन सुरंगें सबसे अच्छा विकल्प हैं, लेकिन हिमालय की स्थलाकृति हर जगह अलग है।
- सुरंग बनाने के लिए एक विस्तृत भूवैज्ञानिक और भू-तकनीकी अध्ययन किया जाता है और फिर चट्टान के आधार पर एक सुरक्षित डिजाइन बनाया जाता है। मुख्य सुरंग के काम से पहले एक पायलट सुरंग बनाई जानी चाहिए और इस सुरंग की चट्टान की स्थिति के आधार पर समर्थन प्रणाली तैयार की जानी चाहिए। ब्लास्टिंग भी नियंत्रित पैमाने पर होती है, लेकिन सिल्क्यारा टनल में इन बातों को नजरअंदाज कर दिया गया।
- उत्तराखंड के राष्ट्रीय राजमार्ग पर पांगती का कहना है कि जो राष्ट्रीय राजमार्ग बन रहे हैं या पूरे होने वाले हैं, उनमें हर मौसम में गंभीर भूस्खलन की आशंका बनी रहती है, क्योंकि भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार खड़ी ढलानों की सुरक्षा नहीं की जा रही है।
- भूवैज्ञानिक स्थितियों की जानकारी न होने के कारण भी कई पुल टूट रहे हैं। सरकार को भू-वैज्ञानिकों और भू-तकनीशियनों की राय लेनी चाहिए ताकि ऐसे हादसे न हों।
- पांगती का कहना है कि सिल्क्यारा जैसी दुर्घटना की स्थिति में यदि बायीं या दायीं दीवार से क्षैतिज खुदाई की जाये तो बचाव में शीघ्र सफलता संभव है।
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