हर रोज सुबह 9 से सांय 5 बजे तक बीडीपीओ कार्यालय पर देंगे धरना
एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर के बीडीपीओ कार्यालय पर तालाबंदी के बाद अब सरपंच अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं। इस धरने की अगुवाई सरपंच एसोसिएशन के अध्यक्ष निरवैल सिंह खरकड़ा कर रहे हैं। वहीं उनके साथ दर्जन भर सरपंच भी धरने पर बैठे हुए है। मंगलवार को विभिन्न गांवों के सरपंच नगर के बीडीपीओ कार्यालय पहुंचे और टैंट लगाकर धरने पर बैठ गए हैं।
सफीदों, नगर के बीडीपीओ कार्यालय पर तालाबंदी के बाद अब सरपंच अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं। इस धरने की अगुवाई सरपंच एसोसिएशन के अध्यक्ष निरवैल सिंह खरकड़ा कर रहे हैं। वहीं उनके साथ दर्जन भर सरपंच भी धरने पर बैठे हुए है। मंगलवार को विभिन्न गांवों के सरपंच नगर के बीडीपीओ कार्यालय पहुंचे और टैंट लगाकर धरने पर बैठ गए हैं।
सरपंचों ने हर रोज सुबह 9 से सांय 5 बजे तक यह धरना देने का ऐलान किया है। अपने संबोधन में सरपंच एसोसिएशन के प्रधान निरवैल सिंह ने कहा कि मौजूद सरकार जनप्रतिनिधियों व गांवों को तबाह करने पर तुली है। सरकार की नीति के कारण प्रदेश में अफसरशाही हावी है। सरपंच ही एमएलए मंत्री बनाते हैं लेकिन ये लोग एमएलए व मंत्री बनकर सरपंचों व जनप्रतिनिधियों को चोर बताने का कार्य करते हैं। धरने को संबोधित करते हुए गांव धर्मगढ़ बोहली के सरपंच अजीतपाल सिंह च_ा ने कहा कि केवल विकास कार्यों के लिए सरपंच की जरूरत नहीं होती बल्कि गांव का भाईचारा बनाने व प्रशासन के साथ तालमेल बनाकर चलने के लिए सरपंच की जरूरत होती है।
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उसके बावजूद सरकार सरपंचों को नीचा दिखाने का काम कर रही है। एमएलए बनना कोई बड़ी बात नहीं है बल्कि गांव सरपंच बनना अपने आप में बहुत बड़ी बात है। जब गांव के विकास कार्यों में सरपंच की भूमिका सरकार ने छोड़ी ही नहीं है तो गांवों में सरपंच बनाने की क्या आवश्यकता थी। उन्होंने मांग की कि जो एमएलए व मंत्री बने हैं उनकी संपत्तियों की जांच होनी चाहिए कि जब वे एमएलए या मंत्री बने थे उस वक्त उनके पास क्या संपत्ति थी और आज उनके पास कितनी है। इससे साफ हो जाएगा कि चोर कौन है।
हरियाणा के एमएलए व मंत्रियों को सरपंचों को चोर बताने से पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। गांव के सरपंच सरकार की दमनकारी नीति के आगे झुकने वाले नहीं है और सरपंचों का आंदोलन उस वक्त तक चलेगा जब तक उनकी मांगे सरकार मान नहीं लेती है। सरकार ने मांगे नहीं मानी तो सरपंचों का यह आंदोलन एक बड़ा रूप ले लेगा जिसकी सारी जिम्मेदारी सरकार की होगी।
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