हरियाणा में एमबीबीएस के दाखिले के लिए लागू की गई बाॅन्ड पॉलिसी का अब भले ही विद्यार्थी विरोध कर रहे हैं, लेकिन सच यह भी है कि इस पॉलिसी के पक्ष में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज भी नहीं रहे। 2020 में यह पॉलिसी बनी थी। मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च डिपार्टमेंट भी विज के पास है, इस कारण तब फाइल उनके पास पहुंची। सूत्रों का कहना है कि विद्यार्थियों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बताते हुए उन्होंने इसे रिजेक्ट कर दिया था। इसके बाद फाइल सीएमओ के पास पहुंची लेकिन मंत्री की सिफारिश नहीं मानी गई और घूमकर एक बार फिर फाइल स्वास्थ्य मंत्री के पास पहुंच गई।
सूत्रों के अनुसार, उन्हें पॉलिसी को पास करने को कहा गया। इसके बाद मंत्री ने पॉलिसी की फाइल को अप्रूव किया, फिर फाइल के आगे बढ़ने के बाद यह बाॅन्ड पॉलिसी लागू हो पाई। सूत्रों का कहना है कि इस मामले को अभी भी पूरी तरह सीएम खुद ही देख रहे हैं, उनकी ही रोहतक में पीजीआई स्टूडेंट्स से बातचीत हुई थी। अब पंचकूला में मेडिकल एंड रिसर्च डिपार्टमेंट के निदेशक ने भी उनसे मिलने पहुंचे विद्यार्थियों को सीएम से मुलाकात कराने का आश्वासन दिया है। ऐसे में यदि पॉलिसी यूं ही बनी रहती है या फिर इसमें कोई बदलाव किया जाएगा, इसका फैसला खुद सीएम लेंगे।
2020 में पॉलिसी जारी पर तब लागू नहीं हुई
राज्य में दो वर्ष पहले नवंबर, 2020 में एमबीबीएस फीस को लेकर पॉलिसी जारी की गई थी। उस वक्त वह सख्ती से लागू नहीं हो सकी, क्योंकि कोरोना संक्रमण था। इसलिए न तो विद्यार्थियों ने बाॅन्ड भरा और न भरने के लिए दबाव बनाया गया। दाखिले भी हो गए। पॉलिसी के अनुसार विद्यार्थियों को 36 लाख रुपए का बाॅन्ड भरना है, 4 से 5 लाख उनकी फीस है। पॉलिसी में यह भी है कि एमबीबीएस के बाद विद्यार्थी को सरकारी नौकरी दी जाएगी और उसे 7 वर्ष सेवाएं देनी होगी। 7 वर्ष पूरी होने पर बाॅन्ड राशि नहीं देनी, वह सरकार भुगतान करेगी। डिग्री करने के बाद प्राइवेट नौकरी करता है तो उसे बाॅन्ड राशि देनी होगी। सरकारी नौकरी में आने के बाद सात वर्ष पहले नौकरी छोड़ता है तो बचे समयानुसार राशि ली जाएगी।
इंटेल का कहना है कि उसने डीपफेक समस्या से निपटने के लिए तकनीक का निर्माण किया है: सभी विवरण
अब इसलिए शुरू हुआ विवाद
पॉलिसी बनने के वक्त कोरोना संक्रमण था। इसलिए पॉलिसी लागू होने के बावजूद लागू नहीं हुई। कुछ समय पहले विभाग ने बाॅन्ड पॉलिसी सख्ती से लागू करने को कहा गया। इसके बाद विद्यार्थियों से 2020-21 से ही यह पॉलिसी लागू की गई और विद्यार्थियों से बाॅन्ड करने को कहा गया। अब नए सत्र के लिए भी बाॅन्ड मांगा जा रहा है। इसलिए अब विरोध शुरू हुआ है।
सीएम मनोहर लाल ने पॉलिसी जारी रखने को यह दिया था तर्क
सीएम मनोहर लाल ने पिछले दिनों कहा था कि डॉक्टरी पेशा सेवा है और सरकार उसी को आगे बढ़ा रही है। बाॅन्ड की राशि का पैसा विद्यार्थियों को नहीं देना है। प्राइवेट नौकरी में जाता है तो वहां उसे सरकारी नौकरी से ज्यादा पैसा मिलता है तो उसे यह पैसा देना होगा। पढ़ाई पूरी करने के बाद पहले ही दिन जाता है तो पूरे 7 साल और बीच में जाता है तो बचे हुए समय के अनुसार इंस्टॉलमेंट में बाॅन्ड राशि देनी होगी। यदि सात वर्ष तक सरकारी नौकरी करता है तो बाॅन्ड के पैसे का भुगतान सरकार करती रहेगी। यदि पैसे की जरूरत हुई तो बाॅन्ड इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
विज ने फाइल पर लिखा था, मेरिट होल्डर नहीं लेंगे दाखिला
फाइल पर लिखा गया था कि बाॅन्ड पॉलिसी से मेरिट वाले बच्चे यहां दाखिला नहीं लेंगे, जिससे सीटें खाली रह जाएंगी। इसके अलावा बाॅन्ड छात्रों पर आर्थिक बोझ रहेगा, यह नहीं होना चाहिए।
विद्यार्थियों की मांगें
- बाॅन्ड पॉलिसी में सरकारी सेवा की अवधि 1 वर्ष हो।
- बाॅन्ड राशि 36 के बजाय 5 लाख रु. तक की जाए।
- ग्रेजुएशन के बाद 2माह में सरकारी नौकरी दी जाए।
- बॉन्ड पॉलिसी में बैंक का दखल खत्म किया जाए।
- पॉलिसी में पीजी कोर्स के बारे में स्थिति स्पष्ट की जाए।