हमेशा से ही बुलंद हौसलों और प्रतिभा के आगे शारीरिक विकलांगता नतमस्तक होती आई है। बशर्ते आपने अपनी विकलांगता को अपनी कमजोरी न बनने दिया हो। करनाल के इंद्री में रहने वाला नेत्रहीन छात्र यश्वनी ने कभी भी अपने अंधेपन को अपनी प्रतिभा के आड़े नहीं आने दिया। सुर ताल का ऐसा ज्ञान कि सुनने वालों की आंखे खुली की खुली रह जाये। यश्वनी ना सिर्फ तबला और हारमोनियम बजाने का हुनर रखता है बल्कि गायकी में भी गजब का सुरीलापन रखता आता है। हरियाणवी गीतों के साथ साथ अश्विनी की गजल पर भी अच्छी पकड़ है। नेत्रहीन छात्र यश्वनी की गजल, तबला, हारमोनियम औऱ उसके गीत सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे। गीत ऐसे कि आपकी आंखें भी नम हो जाएगी। यश्वनी ने अब तक जिला लेवल से राज्य स्तरीय लेवल तक अब तक कई पुरस्कार हासिल किए है।
संगीत के अभ्यास के दौारान हारमोनियम बजाता यश्वनी।
यश्वनी जन्मजात से ही था अंधेपन का शिकार
यश्वनी जन्मजात की अंधेपन का शिकार था। जब घर वालो को यश्वनी के अंधेपन का पता चला तो उनका दिल बैठ गया। लेकिन घरवालों ने भी हौसला बनाये रखा। यश्वनी पर घरवालों ने कोई दबाब नहीं दिया और उसे अपनी मर्जी से पढ़ाई और उसकी रुचि के अनुसार काम करने की छूट दी। धीरे धीरे यश्वनी के गायन और वादन का हुनर सामने आने लगा। जिसके बाद अच्छे शिक्षकों का साथ यश्वनी को मिला। यश्वनी ने बचपन में ही गाना और बजाना शुरू कर दिया था। यश्वनी ने अपने शिक्षकों की मदद से खुद को तरासना शुरू कर दिया और आज अश्विनी तबला, हारमोनियम खुद बजाता भी है और हरियाणवी गीत व गजलें गाता भी है।
अपने अध्यापक व अपने पिता के साथ यश्वनी।
यश्वनी बताता है कि उसने कभी भी अपने हौसलों को टूटने नहीं दिया। हालांकि उसे हार का मुंह भी देखना पड़ा लेकिन वह हार से जीत की तरफ बढ़ता चला गया। कॉलेज में भी उसे ऐसे दोस्त मिले, जिन्होंने उसका हमेशा साथ दिया। यश्वनी कहता है कि कोई व्यक्ति आपके बारे में क्या सोच रहा है या फिर आपका मजाक उड़ा रहा है तो उसकी परवाह बिल्कुल भी ना करें। क्योंकि समाज मे जहां कुछ लोग आपका साथ देने वाले होते है वही कुछ लोग आपकी टांग खींचने वाले भी होते है। इसलिए आगे बढ़ते रहे। आपकी शारीरिक अपंगता भी पस्त हो जाएगी यदि आपमे आगे बढ़ने का जज्बा है तो। यश्वनी का हमेशा से ही सपना रहा है कि वह प्रसिद्ध गायक गुलाम अली साहब से मिले, लेकिन वे पाकिस्तान में है इसलिए सम्भव नहीं हो सकता। वह जगजीत सिंह जी से भी मिलना चाहता था लेकिन वे इस दुनिया मे नहीं है। अब वह अरिजीत सिंह से मिलना चाहता है।
मां करती है मिडडे मील में कुक का काम
टीचर महेंद्र कुमार का कहना है कि जब यश्वनी स्कूल में नहीं आता था तब से वे यश्वनी को जानते है। जब स्पेशल बच्चों की तलाश की जा रही थी तो यश्वनी उनके सामने आया और यश्वनी को इंद्री के प्राइमरी स्कूल में एडमिशन दिया गया। यश्वनी की मां मिडडे मील में कुक का काम करती थी। वही अश्विनी को स्कूल में लेकर आती और घर लेकर जाती थी। नेत्रहीन होने के बावजूद यश्वनी की ग्रास्पिंग पावर बहुत ही अच्छी थी। जब अश्विनी पांच का था तो इसमें एक अलग बात देखने को मिली। यश्वनी के हाथ रुकते ही नहीं थे, कभी वह डेस्क को बजाने लगता था तो कभी बैग को।
अपनी टीम के साथ हरियावणी गीत गाते यश्वनी।
जिसके बाद एक ढोलक यश्वनी को दी गई और इसने ढोलक बजाना शुरू किया। जिसकी ट्रेनिंग भी दी गई। इसके अलावा छोटी उम्र में ही यश्वनी ने बाल सभा मे गाना भी गाना शुरू कर दिया था। यश्वनी के पिता हर तरीके से इसके प्रति समर्पित है और जिस भी चीज की जरूरत होती है वह उसे मुहैया करवाई जाती है। अटीचर ने बताया कि पांच साल पहले यश्वनी राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय इंद्री में आया था। इसकी शुरू से ही रुचि संगीत में रही है और इसने राज्य स्तर पर भी स्कूल को कई अवॉर्ड दिलाये है। हम इसे सारे गामा सिंगिग रियलिटी शो में देखना चाहते है।
जब चलते हुए टकरा जाता था यश्वनी तब पता चला अंधेपन का
यश्वनी के पिता नरेंद्र सिंह ने बताया कि उन्हें पहले अश्विनी के अंधेपन के बारे में नहीं पता था। जब यश्वनी ने पैदल चलना शुरू किया तो वह चलते चलते कभी दीवार से टकरा जाता था तो कभी किसी और चीज से। इसके बाद इस बीमारी का पता चला। फिर सभी अस्पतालों में चैकअप करवाया लेकिन कुछ नहीं हो पाया। इसके बाद यश्वनी के गुरु जनों का मार्गदर्शन मिला और वह आज इस मुकाम पर पहुंच चुका है ।