एस• के• मित्तल
सफीदों, आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है। यह बात हर इंसान को अच्छी प्रकार से समझ लेनी चाहिए। उक्त उद्गार माउंटआबू से पधारे राजयोगी एवं मोटिवेशनल स्पीकर प्रोफेसर भ्राता ओमकार चंद ने कही। वे नगर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सफीदों के हैप्पी हाल चल रहे खुशियों से दोस्ती उत्सव को बतौर मुख्यवक्ता संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सफीदों सैंटर इंचार्ज बहन स्नेहलता ने भ्राता ओमकार व अन्य अतिथियों का अभिनंदन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित करके किया गया।
सफीदों, आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है। यह बात हर इंसान को अच्छी प्रकार से समझ लेनी चाहिए। उक्त उद्गार माउंटआबू से पधारे राजयोगी एवं मोटिवेशनल स्पीकर प्रोफेसर भ्राता ओमकार चंद ने कही। वे नगर के प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय सफीदों के हैप्पी हाल चल रहे खुशियों से दोस्ती उत्सव को बतौर मुख्यवक्ता संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर सफीदों सैंटर इंचार्ज बहन स्नेहलता ने भ्राता ओमकार व अन्य अतिथियों का अभिनंदन किया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलित करके किया गया।
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अपने संबोधन में भ्राता ओमकुमार ने कहा कि आत्मा और परमात्मा के बीच मिलन व संबंध का नाम राजयोग है। यह मिलन या संबंध तब तक संभव नहीं है जब तक इन दोनों विषयों पर अच्छी प्रकार से बात ना हो। राजयोग के बारे में गीता जी में विस्तार से बताया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने भी अर्जुन को राजयोग सीखने के बारे में कहा था। उन्होंने कहा कि मन और इंद्रियों पर कंट्रोल करना और कर्मइंद्रियों पर राज करने का नाम ही राजयोग है। वर्तमान माहौल में हमें यह जानने की नितांत आवश्यकता है कि मैं कौन हुं? लेकिन हम स्वयं को जानने की बजाए दूसरों को जानने व दुख में अपनी एनर्जी वेस्ट कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि हम केवल अपने बारे में ही भली भांंति जान लें यही काफी है। हमें अपने आप की कमियों व अच्छाईयों को देख लेना चाहिए लेकिन वास्तविकता यह है कि हमारी नजर दूसरों पर है। खुद का जानना कि मैं कौन हुं यही राजयोग का पहला पाठ है। आत्मा अजर, अमर व अविनाशी है, जिसे कोई नहीं मिटा सकता है।
आत्मा शरीर धारण करने से पहले भी थी और शरीर छोड़ने के बाद भी रहेगी। आत्मा के लिए तो शरीर एक वस्त्र या अस्थाई मकान के समान है। अपने आप को जानने के लिए हमें भागवत गीता के बारे में जानना होगा। उन्होंने कहा कि श्रीकृष्ण ने अपने सखा अर्जुन को गीता का संदेश देते हुए जीवन एवं मृत्यु के संबंधों को बहुत ही अच्छी तरह समझाया है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं के नैनं छिन्दन्ति शास्त्रिाणि नैनं दहति पावक:। न चैनं क्लेदयन्तापो न शोषयति मारूत:।। अथार्त हे अर्जुन, आत्मा को न शस्त्र भेद सकते हैं न अग्नि जला सकती है, न ही इसे वायु सुखा सकती है, न ही इसे दु:ख-सुख, क्लेश आदि प्रभावित कर सकते हैं।
यह भली-भांति समझ ले कि आत्मा अजर अमर है। जिस प्रकार शरीर को बचपन, यौवन और वृद्धावस्था के परिवर्तन एक के बाद एक भोगने पड़ते हैं उसी प्रकार आत्मा भी पुराने शरीर रूपी वस्त्र उतारकर नए शरीर के वस्त्रधारण कर लेती है। मृत्यु कोई चिन्तनीय विषय नहीं है, यह तो आत्मा का चोला बदलना मात्र है। एक शरीर को छोड़कर जब आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश करती है तब उसे हम मृत्यु कहते हैं। मृत्यु केवल देह अथवा ऊपरी आवरण का ही अंत करती हैं, आत्मा का नहीं।