​​​​​​​अनूठा कैंपेन: विरोध झेला, पर रुकी नहीं… घर में पीरियड ट्रैक करने का चार्ट लगाकर 30 हजार लड़कियों ने बदली जिंदगी

 

घर की दीवार पर लगा एक सामान्य चार्ट किस तरह सोच और समाज को बदल सकता है… यह देश की 30 हजार से ज्यादा लड़कियों को पता है। मासिक धर्म के बारे में घर-स्कूल में बात करने की हिचक को दूर करने के लिए हरियाणा के जींद के गांव बीबीपुर के सुनील जागलान और साथियों ने 2019 में एक पीरियड चार्ट बनाया। उद्देश्य था कि घर पर लगे इस चार्ट से हर सदस्य को घर की बच्चियों के पीरियड के समय की जानकारी रहे।

​​​​​​​अनूठा कैंपेन: विरोध झेला, पर रुकी नहीं… घर में पीरियड ट्रैक करने का चार्ट लगाकर 30 हजार लड़कियों ने बदली जिंदगी

भले ही बात न हो, पर पता भर होने से वे बच्ची की मदद कर सकेंगे। शुरुआत में इस चार्ट का भी उतना ही विरोध हुआ जितना इस बारे में बातचीत का होता था। पर 3 साल में अलग-अलग शहरों में 30 हजार लड़कियों ने यह तरीका अपनाया और उनकी जिंदगी में ऐसा बदलाव आया जो कभी सोचा नहीं था। कैंपेन से हरियाणा ही नहीं, यूपी, महाराष्ट्र, तेलंगाना व जम्मू-कश्मीर की लड़कियां भी जुड़ रही हैं।

बेटियों से ही जानिए कैसे आया है सोच में बदलाव

चार्ट से ही बीमारी पता चली, इलाज हो पाया
मोनिका (बदला हुआ नाम) ने बताया कि इस विषय पर बात करने में सबसे बड़ी बाधा महिलाएं ही हैं। घर पर भी चार्ट का विरोध उसकी मां ने ही किया था। बहुत समझाने पर वे लोग राजी हुए। बाहर पढ़ने आई तो हॉस्टल के कमरे में भी चार्ट लगाया। मोनिका ने बताया कि उसकी रूम मेट ने तीन महीने से चार्ट पर टिक नहीं लगाया।

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पूछने पर बोली कि पीरियड 3 महीने से नहीं आया और उसे यह सामान्य लगा। डॉक्टर के पास गए तो पता चला इस वजह से उसका वजन बढ़ा हुआ है तथा दूसरी भी कई दिक्कतें थीं। चार्ट से इसका पता चला और इलाज हो पाया।

रिश्तेदार नाराज, पर घर वालों ने साथ दिया
प्रियंका के परिवार ने तो साथ दिया, मगर घर पर आए कुछ रिश्तेदारों ने चार्ट फाड़ दिया। उनका कहना था कि हमारे बच्चों को भी बिगाड़ रही हो। पर परिवार का साथ होने की वजह से वे चुप हो गए। एक बार स्कूल में एक लड़की को पीरियड्स आ गए। उसके पास सैनिटरी नैपकिन नहीं था। प्रियंका ने सफेद चुन्नी काटकर कॉटन लगाकर उसे दिया। प्रियंका कहती हैं कि अगर हर लड़की चार्ट लगाकर ट्रैक करे तो उसे इस तरह की मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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बात की शुरुआत घर से ही क्यों न हो
पुलवामा की रहने वाली इशरत (बदला हुआ नाम) ने कहा कि घर पर चार्ट लगाया तो मां और बड़ी बहन ने ही एतराज जताया। कहा-ऐसी बातें शेयर नहीं करते। मैंने समझाया कि जिस लड़की के घर में और कोई महिला न हो उसे तो पिता या भाई से ही यह बातें करनी पड़ेंगी। फिर शुरुआत क्यों न हो। अगर बात नहीं की और कोई बड़ी बीमारी हो गई तो फिर किसे दोष देंगे।

अब भाई करते हैं मदद…
पलवल से अनु (बदला हुआ नाम) का मानना है कि मासिक धर्म के बारे में लड़कों को जागरूक करने की जरूरत ज्यादा है। जब तक उन्हें इस बारे में पता नहीं होगा वे अपने परिवार की लड़कियों की मदद कैसे करेंगे। वे कहती हैं कि जब घर में चार्ट लगाया तो दादा-दादी को ज्यादा दिक्कत हुई। मगर समय के साथ सबकी सोच बदली। पहले मां कहती थी कि पापा से सैनिटरी नैपकिन क्यों मंगा रही हो, लेकिन अब खुद सब लाकर देते हैं।

हिसार की अन्नू (बदला हुआ नाम) ने बताया कि शुरू में चार्ट लगाया तो सभी ने इसका विरोध किया। मेरे भाई भी नहीं चाहते थे कि मैं ये चार्ट लगाऊं। घर में मां के अतिरिक्त किसी को भी मासिक धर्म के बारे में पता नहीं होता था तो उस दौरान भी भाई और पापा मुझे या मम्मी को कुछ भी काम करने के लिए कह देते थे। लेकिन जब से चार्ट लगाया है तो सभी को पता रहता है। सभी काम में मदद करते हैं।

 

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घर में काम करने वाली की बीमारी ट्रैक की
14 साल की रिशिदा (बदला हुआ नाम) ने कहा कि उसने अपने घर पर खुद के साथ ही अपनी मेड के लिए भी चार्ट लगाया। इससे पता चला कि मेड को मासिक धर्म से जुड़ी कई दिक्कतें थीं। वह गुड़गांव के एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ती है। पीरियड्स के दौरान एक बार उसके पास नैपकिन नहीं था तो दोस्त से लेकर वॉशरूम की तरफ जाने लगी। रास्ते में एक टीचर ने रोका और कहा कि इसे छिपाकर ले जाओ, पेपर में लपेट लो।

वे कहती हैं कि टीचर के इस तरह बात करने से ही पता चलता है कि समाज की सोच अब भी बदली नहीं है। दिपांशी (बदला हुआ नाम) कहती हैं कि दिल्ली के जिस कॉलेज में वह पढ़ती हैं वहां भी लड़कियां इस बारे में कोडवर्ड में ही बात करती हैं।

कॉलेज में मशीन लगी है, पर लड़कियां छुपकर वहां से नैपकिन लाती हैं। सभी को डर लगता है कि कोई लड़का न देख ले। एक बार कॉलेज में इन सब बातों पर चर्चा के लिए एक कार्यक्रम भी हुआ तो लड़कियों को शामिल किया गया। ऐसी चर्चा में लड़कों को क्यों शामिल नहीं किया जाता।

सेल्फी विद डाॅटर कैंपेन चलाने वाले सुनील कुमार की पहल
यह कैंपेन शुरू करने सुनील कुमार पूर्व में सरपंच रह चुके हैं। अभियान के दौरान उन्हें पता चला कि महिलाओं के पास मासिक धर्म ट्रैक करने का कोई सिस्टम नहीं है। फिर यह चार्ट डिजाइन किया गया जो महिलाएं घर पर इस्तेमाल कर सकती हैं। सुनील कुमार इससे पहले सेल्फी विद डाॅटर अभियान को लेकर चर्चा में रह चुके हैं। पीएम मोदी ने भी उनकी तारीफ की थी।

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