एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की जैन स्थानक में रविवार को गुरू-शिष्य दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। इस अवसर पर चौधरी रणबीर सिंह यूनिवर्सिटी जींद में बीकॉम करने पर छात्रा श्रूति जैन को श्री एसएस जैन सभा द्वारा सम्मानित किया गया। अपने संबोधन में मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि मां-बाप और गुरु का उपकार कभी नहीं चुकाया जा सकता। विद्या के बिना मनुष्य का जीवन पशु योनि के समान है।
सफीदों, नगर की जैन स्थानक में रविवार को गुरू-शिष्य दिवस मनाया गया। इस अवसर पर मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज का सानिध्य प्राप्त हुआ। इस अवसर पर चौधरी रणबीर सिंह यूनिवर्सिटी जींद में बीकॉम करने पर छात्रा श्रूति जैन को श्री एसएस जैन सभा द्वारा सम्मानित किया गया। अपने संबोधन में मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि मां-बाप और गुरु का उपकार कभी नहीं चुकाया जा सकता। विद्या के बिना मनुष्य का जीवन पशु योनि के समान है।
विद्या जीवन का श्वास है और शिक्षा के बिना जीवन शून्य है। शिक्षा का अर्थ केवल लंबी चौड़ी पुस्तकों पढ़ लेना नहीं बल्कि समाज व समूची मानवता का विकास करना है। अगर पढ़कर करने के बाद भी ठगी, चतुराई और बेईमानी की तो यह अशिक्षा का ही रूप है। उन्होंने एक घटना के माध्यम से अध्यापक का रुतबा बताया कि ओमान के सुल्तान कबूल बिन सैद ऐसे शासक के तौर पर जाने जाते हैं जिन्होंने कभी प्रोटोकॉल नहीं तोड़ा लेकिन उन्होंने सिर्फ एक व्यक्ति के लिए प्रोटोकॉल तोड़ा वह थे तात्कालीन भारतीय राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा। राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा मस्कट गए। जब एयर इंडिया का विमान वहां उतरा तो तीन घटनाएं हुई। ओमान के सुल्तान हवाई अड्डे पर जाकर किसी का सम्मान नहीं करते हैं लेकिन उनके लिए गए उन्होंने किया। सुल्तान ने शंकर दयाल शर्मा के जहाज की सीढ़ियों से नीचे उतरने की प्रतीक्षा नहीं की बल्कि उन्हें लेने के लिए उनकी सीट तक गए।
उन्हें लेकर जहाज से उतरने के बाद ड्राइवर को दूसरी कर में आने के को कहा और खुद ने उसे कर को चलाया जिसमें राष्ट्रपति बैठे थे। बाद में पत्रकारों से उनसे पूछा आपने इतने सारे प्रोटोकॉल क्यों तोड़े तब वह कहने लगे मैं उन्हे हवाई अड्डे पर रिसीव करने के लिए इसलिए नहीं आया कि वे भारत के राष्ट्रपति हैं। मैंने भारत में अध्ययन किया है और वहां से बहुत कुछ सीखा। जब मैं वहां पर पुणे में पढ़ रहा था तो शंकरदयाल शर्मा मेरे प्रोफेसर थे। यही कारण है मैंने अपने गुरु का सम्मान किया है।
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