अंग्रेजों के जमाने की आकर्षक घड़ी
झज्जर में अंग्रेजी हुकूमत के प्रति के तौर पर शहर के बीचों बीच मौजूद टाउन हॉल अब 118 साल बाद अपने पुराने स्वरूप में फिर लौट आया है। नगर परिषद ने इस ऐतिहासिक इमारत को बचाने के लिए 35 लाख खर्च करके इसे संवारा है। परिषद की मानें तो ऐसे कैफे या रेस्टोरेंट संचालित होने से परिषद की आय बढ़ेगी और शहर के लोगों को प्राचीन इमारत में लाभ उठाने का आनंद मिलेगा।
इसके लिए अब आवेदकों से निविदाएं आमंत्रित की जाएंगी। झज्जर के इसी टाउन हॉल में ब्रिटिश हुकूमत के समय झज्जर के प्रशासक बैठा करते थे। आजादी के बाद नगर पालिका का ऑफिस भी इसमें संचालित हुआ। राजकीय नेहरू कॉलेज का पुस्तकालय बाबू बालमुकुंद गुप्त के नाम से यहां चला। फिलहाल अब लाइब्रेरी नगर परिषद के ही कम्युनिटी हॉल के पास बनाए नए भवन में संचालित हो रही है। ऐसे में इस जर्जर इमारत को नगर परिषद ने 35 लाख रुपए खर्च करके अपने पुराने स्वरूप में लौटा दिया है।
यहां इसके परिसर में एक जलघर नुमा कुंआ बना हुआ था उसे हटाकर लंबा चौड़ा फर्श बना दिया गया है। पुरानी इमारत के हाल को टाइल लगाकर आकर्षक लुक दिया गया है साथ ही इसके साथ में बने दो छोटे कमरों में भी मजबूती देकर फर्श और दीवारों पर टाइल लगा दी गई है। इसका जो रंग रूप 118 साल पहले था वहीं कलर इसे दिया गया है इसकी गुंबद को तिरंगा रंग से रंगा गया है। इसकी बजट में यहां टॉयलेट भी बनाया गया है अब इंतजार है कि यहां कोई आवेदक रेस्टोरेंट या कैफे चलाने के लिए आगे आए।
101 साल पहले टाउन हॉल आजादी के परवानों के बीच चर्चा का विषय बना था
असहयोग आंदोलन के दौरान 15 जनवरी 1922 में झज्जर के स्वतंत्रता सेनानी पं. श्री राम शर्मा, राव मंगली राम और लाल हरि चंद जैन ने यूनियन जैक को उतारकर तिरंगा झंडा फहराया था।झज्जर शहर के बीचों-बीच स्थित टाउन हाल पर करीब 101 साल पहले असहयोग आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी राव मंगली के कंधे पर चढ़कर पं. श्री राम शर्मा ने यूनियन जैक को उतारकर तिरंगा झंडा फहराया था। इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज इस घटना की वजह से झज्जर का टाउन हाल देश भर में विशेष तौर पर आजादी के परवानों की चर्चा में शामिल हुआ।
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अंग्रेजों के जमाने की आकर्षक घड़ी
टाउन हाल की ऊपरी बुर्ज पर तीनों साइड में बड़े आकार की अंग्रेजों के जमाने के लुक वाली घड़ियां स्थापित कर दी गई है। जीपीएस से नियंत्रित होने वाली इस घड़ियों में समय के साथ घंटा भी बजता है।1905 में बने इस ऐतिहासिक टाउन हाल, जिसे घंटा घर भी कहा जाता है इसे पुराने स्वरूप में बदलने का श्रेय झज्जर के तत्कालीन उपायुक्त श्याम लाल पूनिया को जाता है।
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