हमारे भाव जैसे होंगे वैसे ही मन गति करता है: मुनि नवीन चंद्र

एस• के• मित्तल   
सफीदों,     नगर की श्री एसएस जैन स्थानक में धर्मसभा को संबोधित करते हुए मधुरवक्ता नवीन चन्द्र महाराज एवं श्रीपाल मुनि महाराज ने कहा कि धर्म हमारे मन में होगा तो त्याग के भाव जरूर आएंगे। मन ही बंधन का कारण है और मुक्ति का कारण भी है। मन के द्वारा हम कर्मबंध में बंध भी सकते है और उससे मुक्त भी हो सकते हैं। जैसे हमारे भाव होंगे वैसे ही मन गति करेगा।
हमारी समाज में हालात यह है कि कोई व्यक्ति पाप करके भी पापी कहलवाना नहीं चाहता। पाप मनुष्य के शरीर में भी है और वाणी में भी है। पाप इतना शरीर में नहीं होता जितना वाणी से होता है। हमारा मन भी चंगा बने हमारी वाणी भी चांगी बने ऐसे प्रयास हमें जीवन में करने चाहिए। हमें मन को मंदिर बनाना चाहिए शमशान घाट नहीं। मन को ऐसा बनाना चाहिए कि उसकी शांति किसी भी रूप में भंग ना हो।
समाज में माहौल इस प्रकार का है कोई गरीब हो रहा है तो उसका सभी का सब्र है लेकिन कोई व्यक्ति तरक्की कर रहा है तो वह किसी से सहन नहीं होता। उन्होंने कहा कि पशु के सामने जितना भी चारा डाल लो वह उतना ही खाएगा जितना उसके पेट में आएगा लेकिन इंसान का कभी भरता ही नहीं है। उन्होंने कहा कि मनुष्य को किसी के प्रति अपने मन में ईर्ष्या का भाव नहीं रखना चाहिए और अपने मन को कभी भी ज्यादा दुखी नहीं करना चाहिए। लोगों को अपने मन को मंदिर व घर को स्थानक बनाना चाहिए।

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