लोक अदालतें 9 सितंबर को दिल्ली और मणिपुर को छोड़कर देश भर में लगाई गईं।
साल 2023 की तीसरी नेशनल लोक अदालत में 1.67 करोड़ मामले निपटाए गए। इनमें से 32 लाख मामले अदालतों में पेंडिंग थे। वहीं, 1.35 करोड़ मामलों में मुकदमा शुरू नहीं हुआ था।
इन मामलों में 1200 करोड़ रुपए से ज्यादा के समझौते कराए गए। इन समझौतों के चलते कोर्ट में पेंडिंग केस कम होंगे। कोर्ट जाने वाले लोगों की संख्या में भी कमी आएगी।
ये लोक अदालतें 9 सितंबर को दिल्ली और मणिपुर को छोड़कर देश भर में लगाई गईं। इनका आयोजन नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी (NALSA) ने दूसरे लीगल सर्विस इंस्टीट्यूशन के साथ मिलकर किया।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में लगा नेशनल लोक अदालत का पोस्टर।
लोक अदालतों में नहीं लगती है फीस
लोक अदालत में ऐसे मामले सुने जाते हैं, जिनमें समझौता हो सकता है। जैसे- रेवेन्यू से जुड़े केस, मोटर एक्सीडेंट क्लेम, लेबर विवाद, शादी संबंधित विवाद (तलाक को छोड़कर), चेक बाउंस केस, बैंक रिकवरी केस और दूसरे सिविल मामले। यहां कोई फीस नहीं देनी होती है।
लोक अदालत में दोनों पक्षों के बीच समझौता कराया जाता है। लोक अदालतों को लीगल सर्विसेज अथॉरिटी एक्ट, 1987 के तहत कानूनी दर्जा दिया गया है। लोक अदालत के फैसले को सिविल कोर्ट की डिक्री के समान माना जाता है। दोनों पक्षों को इसे मानना होता है।
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जस्टिस संजय किशन कौल NALSA के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं।
रिकवरी के मामलों में समझौते कराए गए
NALSA ने बताया कि लोक अदालत में फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस, बैंक, सरकारी संस्थाओं से जुड़े रिकवरी के मामले बड़ी संख्या में सुने गए। इन मामलों के कोर्ट जाने से पहले ही समझौता करा दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल NALSA के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन हैं। उन्होंने पूरे प्रोसेस की निगरानी की।