Multibagger Stocks: आपको भी है कई गुना मुनाफा देने वाले शेयर का इंतजार? इन तरीकों से कर सकते हैं मल्टीबैगर की तलाश

How to Find Multibagger Stocks: शेयर बाजार में पैसे लगाने वाले हर निवेशक को रहती है मल्टीबैगर की तलाश. मल्टीबैगर यानी एक ऐसा शेयर जिसमें लगाए पैसे कुछ ही बरस में दस-बीस-पचास या सौ गुना रिटर्न दे जाएं. देखते ही देखते मालामाल कर दे. लेकिन यह बात अमूमन किसी को पता नहीं होती कि ऐसा शेयर मिलेगा कहां? ऐसे शेयर को पहचानेंगे कैसे?

इन सवालों का पक्का जवाब तो शायद ही कोई दे सकता है, लेकिन कुछ ऐसे लक्षण जरूर हैं, जिनके आधार पर एक मल्टीबैगर को पहचानने की कोशिश की जा सकती है. तो आइए जानते हैं मल्टीबैगर के ऐसे ही कुछ लक्षण.

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सबसे पहली बात तो यह है कि कोई भी शेयर मल्टीबैगर तभी बन सकता है, जब वो न सिर्फ एक हाई ग्रोथ स्टॉक हो, बल्कि इस ऊंची ग्रोथ को लंबे समय तक बरकरार भी रख सके. मिसाल के तौर पर अगर कोई शेयर एक साल में औसतन 12 फीसदी रिटर्न दे रहा है, तो आपने निवेश को 100 गुना करने में उसे 41 साल लग जाएंगे. लेकिन अगर औसत सालाना रिटर्न 16.6 फीसदी हो तो यही काम 30 साल में हो जाएगा. और अगर कहीं सालाना 50 फीसदी रिटर्न देने वाला शेयर आपके हाथ लग गया, तो सिर्फ 11 साल में ही आपका निवेश सौ गुना हो सकता है. लेकिन यह तो आप भी मानेंगे कि लगातार 11 साल तक 50 फीसदी का औसत रिटर्न देने वाला शेयर खोज निकालना लगभग नामुमकिन ही होगा. फिर भी आप किसी ऐसे शेयर की तलाश करने का प्रयास तो कर ही सकते हैं, जिसमें लंबे समय तक बेहतर रिटर्न देने की संभावना हो.

कैसे करें हाई ग्रोथ शेयर की पहचान ?

किसी हाई ग्रोथ शेयर को मुख्य तौर पर दो लक्षणों से पहचाना जा सकता है.

  1. EPS यानी प्रति शेयर आय में बढ़ोतरी – एक ऐसी कंपनी जिसके रेवेन्यू, मार्जिन और मार्केट शेयर लगातार बढ़ रहे हों, अपने निवेशक की पूंजी को भी नई ऊंचाई पर ले जा सकती है. कंपनी के ईपीएस (Earnings Per Share) को देखने से इस ग्रोथ का पता चल सकता है. आम तौर पर कंपनी की ईपीएस का सीधा असर उसके शेयर की कीमत पर पड़ता है. ईपीएस की ग्रोथ का सीधा मतलब है आपकी पूंजी की ग्रोथ.
  2. P/E यानी प्राइस/अर्निंग रेशियो – किसी शेयर का P/E रेशियो हमें बताता है कि मौजूदा कीमतों पर कोई शेयर कितना महंगा या सस्ता है. P/E जितना ज्यादा होगा, शेयर उतना ही महंगा माना जाता है. लेकिन इसके साथ ही यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि जिन कंपनियों में ग्रोथ की अच्छी संभावना होती है, उनका P/E रेशियो अक्सर ऊंचा ही होता है. इसलिए P/E रेशियो को हमेशा कंपनी की लंबे समय की संभावनाओं और वित्तीय मजबूती को ध्यान में रखकर ही देखना चाहिए. अगर आप किसी ऐसी कंपनी की पहचान करने में सफल हो जाते हैं, जिसमें ग्रोथ की काफी ठोस संभावना है, लेकिन उसका P/E अभी कम है, तो उसमें निवेश अच्छा रिटर्न दे सकता है.

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कंपनी पर कर्ज ज्यादा न हो

बहुत ज्यादा लीवरेज्ड यानी भारी-भरकम कर्ज लेने वाली कंपनी के शेयर का मल्टीबैगर बनना मुश्किल होगा. अगर कंपनी पर कर्ज रहा है, लेकिन उसने अपना कर्ज तेजी से घटाया है, तो यह उसकी वित्तीय हालत में सुधार का संकेत हो सकता है. कंपनी अगर कर्जमुक्त और कैश रिच है, तो उसके बारे में मार्केट सेंटिमेंट अक्सर बढ़िया रहता है. ऐसी कंपनी अपने कारोबार के विस्तार पर आसानी से निवेश कर सकती है और ब्याज का बोझ न होने के कारण उसकी बैलैंस शीट और प्रॉफिटेबिलिटी भी बेहतर रहती है.

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छोटी कंपनियों में मल्टीपल टाइम ग्रोथ की अधिक संभावना

उन कंपनियों में मल्टीबैगर साबित होने की ज्यादा संभावना मानी जाती है, जो वित्तीय और कारोबारी रूप से मजबूत हों, लेकिन अभी उनका आकार बहुत बड़ा न हुआ हो. अगर किसी कंपनी का मार्केट शेयर 2-4 फीसदी है, तो उसके शेयर के कई गुना बढ़ने की संभावना, एक 40-50 फीसदी मार्केट शेयर वाली कंपनी से ज्यादा रहती है. ऐसा इसलिए क्योंकि जिस कंपनी का पहले से ही बाजार में दबदबा है, उसके सही वैल्युएशन का अंदाजा तो सभी को रहता है, यानी उसके शेयर की प्राइस डिस्कवरी पहले ही हो चुकी है. ऐसे में उसमें और कई गुना उछाल की संभावना कम रहती है. मल्टीबैगर को पहचानने में सबसे बड़ी चुनौती ही यही है कि आप उस कंपनी की संभावना को उस वक्त पहचान लें, जब ज्यादातर लोगों की नजर उस पर पड़ी ही न हो. तभी तो वो शेयर आपको ऐसे भाव में मिलेगा जो देखते ही देखते कई गुना मुनाफा दिला दे.

बेहतरीन रिकॉर्ड वाले ग्रुप का नया वेंचर

कई बार पहले से स्थापित किसी मजबूत कंपनी या ग्रुप का नया वेंचर भी मल्टीबैगर बनने की संभावना लिए होता है. ऐसा इसलिए क्योंकि पैरेंट कंपनी या ग्रुप का मजबूत समर्थन कामयाबी की संभावना को बढ़ा देता है. और नया वेंचर होने के कारण भविष्य में उस शेयर की प्राइस डिस्कवरी का फायदा आपको मिल सकता है.

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बेहतरीन मैनेजमेंट वाली कंपनी

मल्टीबैगर की तलाश करते समय कंपनी के मैनेजमेंट की क्वॉलिटी को देखना भी जरूरी है. जिन कंपनियों के संचालन में उनके ओनर खुद शामिल होते हैं, उनकी सफलता की संभावना ज्यादा मानी जाती है. रिलायंस इंडस्ट्रीज, टाटा ग्रुप की कंपनियां, विप्रो, बजाज फाइनेंस और डाबर जैसी कई कंपनियां इस बात की मिसाल हैं. मैनेजमेंट में बेहतर तकनीकी जानकारी और वित्तीय क्षमता वाले लोगों का होना भी कंपनी के सफल होने की संभावना को बढ़ाता है.

प्रतिस्पर्धा में आगे रहने की संभावना वाली कंपनी

अगर किसी कंपनी में कोई ऐसी खास बात है, जो उसे कंपटीशन से आगे रखने में मददगार साबित होने वाली है, तो उसके सफल होने की उम्मीद काफी बढ़ जाती है. मिसाल के तौर पर अगर किसी कंपनी के पास कोई ऐसा पेटेंट या एक्सक्लूसिव टेक्नॉलजी है, जो उसके किसी प्रतिद्वंद्वी के पास नहीं है, तो उसके पास एक यूनीक कंपटीटिव एडवांटेज आ जाता है, जो उसे तेजी से कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने में मदद कर सकता है.

वॉरेन बफेट की सीख याद रखें, शेयर की बजाय बिजनेस में निवेश करें

दिग्गज निवेशक वॉरेन बफेट का यह मंत्र हमेशा याद रखना चाहिए कि सफल निवेशक को बिजनेस में पैसे लगाने चाहिए, शेयर में नहीं. इसका मतलब यह है कि जिस कंपनी का बिजनेस सफल होगा, उसका शेयर भी देर-सबेर सफल होना ही है. लेकिन अगर बिजनेस सफल नहीं है, तो किसी तात्कालिक कारण से ऊंचाई पर पहुंचा शेयर आखिरकार नीचे आ जाएगा. इसलिए लंबे समय तक निवेश करके अपनी पूंजी को कई गुना बढ़ाना है, तो मल्टीबैगर की तलाश दरअसल एक सफल बिजनेस की तलाश होनी चाहिए.

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