JKLF यानी जम्मू-कश्मीर लिबरल फ्रंट का चीफ यासीन मलिक 2019 से तिहाड़ जेल में बंद है।
JKLF प्रमुख यासीन मलिक ने बंदूक निकाली और भारतीय वायुसेना के जवानों पर गोलियां चला दीं… यह बात स्पेशल CBI कोर्ट को उस चश्मदीद ने बताईं जो 25 जनवरी 1990 को श्रीनगर में हुए आतंकी हमले के वक्त मौजूद था। ये गवाह पूर्व IAF कॉर्पोरल राजवार उमेश्वर सिंह हैं, जो उस आतंकी हमले में बच गए थे।
उमेश्वर ने कोर्ट रूम में मलिक को पहचानते हुए हमले का मेन शूटर बताया। इस पेशी में यासिन मलिक दिल्ली की तिहाड़ जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शामिल हुआ था। मलिक यहां, टेरर फंडिंग केस में आरोपी होने के कारण 2019 से कैद है। NIA के इस केस में 14 फरवरी को सुनवाई होनी है।
1990 में श्रीनगर के रावलपोरा में आतंकी हमला हुआ था। जिसमें स्क्वाड्रन लीडर रवि खन्ना समेत चार लोग मारे गए थे और 40 लोग घायल हो गए थे। वायुसेना के जवान ड्यूटी जाने के लिए पिकअप का इंतजार कर रहे थे, तभी वे आतंकवादियों ने उन पर हमला किया था।
जवानों की हत्या में ये आरोपी भी शामिल थे
मलिक और 5 दूसरे आरोपियों के खिलाफ 31 अगस्त 1990 को जम्मू में नामित टाडा कोर्ट में चार्जशीट पेश की गई थी। मलिक के अलावा, भारतीय वायुसेना कर्मियों की हत्या में अन्य आरोपियों में जेकेएलएफ के संचालक अली मोहम्मद मीर, मंजूर अहमद सोफी उर्फ मुस्तफा, जावेद अहमद मीर उर्फ नलका, शौकत अहमद बख्शी, जावेद अहमद जरगर और नानाजी शामिल हैं।
मलिक ने चश्मदीद गवाह से जिरह नहीं की
पेशी के दौरान यासीन मलिक को चश्मदीद गवाह से जिरह करने की पेशकश की गई थी। लेकिन उसने इनकार कर दिया। हालांकि वह कोर्ट में फिजिकली पेश होने के लिए दबाव बना रहा है। CBI की तरफ से पेश एडवोकेट मोनिका कोहली ने कहा, “यह इस केस का बहुत बड़ा डेवलपमेंट है। गवाह ने गोलीबारी करने वाले मलिक की पहचान की है।
कोहली मलिक के खिलाफ दो और केस में चीफ प्रॉसिक्यूटर हैं- पहला 989 में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद की किडनैपिंग और दूसरा भारतीय वायुसेना कर्मियों की हत्या।
कौन है यासीन मलिक
मलिक 1987 के विवादास्पद विधानसभा चुनावों के बाद 1988 में जेकेएलएफ में शामिल हो गया था। 31 मार्च 1990 को JKLF चीफ अशफाक मजीद की हत्या के बाद मलिक इसका प्रमुख बना। मलिक को अगस्त 1990 में गिरफ्तार किया गया था और उसी साल सीबीआई ने चार्जशीट दायर की थी, लेकिन मुकदमा ठंडा पड़ गया।
1994 में रिहा कर दिया गया और जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने 1995 में उसके मुकदमे पर रोक लगा दी। रिहाई के बाद, मलिक ने जेकेएलएफ को बांट दिया। वह खुद अहिंसक अलगाववादी गुट का लीडर बना, और अमानुल्लाह खान को हिंसक गुट का नेतृत्व दिया।