विपक्षी दलों की एकता बैठक की तारीख़ फिर क़रीब आ गई। फिर शुरू हो गए- कौन क्या बनेगा, कौन क्या नहीं बनना चाहता, जैसे बयान। नाम इंडिया रखा है और इंडिया यानी भारत की तरह ही इसमें तरह-तरह की भाषा, तरह-तरह के विचार वाले गुट शामिल हैं।
कुछ दिन पहले तो इंडिया वालों ने यह भी दावा किया था कि चार वे दल जो पिछली बार एनडीए की बैठक में शामिल हुए थे, वे अब इंडिया के पाले में आ गए हैं। ख़ैर, न उन्होंने उन दलों के नाम बताए और न ही उनसे किसी ने नाम पूछे। बहरहाल 31 अगस्त से विपक्षी दलों यानी इंडिया वालों की तीसरी एकता बैठक होनी है। इसमें बहुत कुछ तय होना है।
संयोजक के नाम पर बड़ी बहस छिड़ी हुई है। बहुत पहले से इंडिया के संयोजक के रूप में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम चर्चा में हैं। कुछ दिनों पहले राजद सुप्रीमो लालू यादव ने कह दिया था कि संयोजक केवल नीतीश ही बनें, ऐसा ज़रूरी नहीं है।
I.N.D.I.A के कन्वीनर को लेकर CM नीतीश कुमार ने कहा- मुझे इस पद की इच्छा नहीं है।
इस पद पर कोई और भी बैठ सकता है। बात से बातें निकलती गई। राजनीति है। हर किसी के हर बयान में कुछ न कुछ ज़रूर छिपा होता है। लालू यादव ने नीतीश की बजाय किसी और के नाम की गुंजाइश बताई तो इसके पीछे भी उनका कोई मंतव्य होगा। या तो लालू खुद ही संयोजक बनना चाहते हैं या उनके मन में कोई और नाम चल रहा हो।
आख़िर सोमवार को इस मुद्दे पर खुद नीतीश कुमार ही सामने आ गए। उनसे जब संयोजक बनने पर सवाल किया गया तो बोले- हम कुछ नहीं बनना चाहते। हमें कोई पद नहीं चाहिए। हम तो सबको इकट्ठा करना चाहते हैं, बस। और कुछ नहीं। इस बयान के पीछे भी कई मंतव्य छिपे हुए हैं। नीतीश विपक्षी एकता के पर्याय बनना चाहते हैं।
नीतीश कुमार डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के साथ सोमवार को श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल पहुंचे थे।
अगर विपक्ष वाक़ई एक हो जाता है तो नीतीश का नाम इस एकता के अध्याय में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। यही वे चाहते हैं। उनके प्रयास सफल हो जाते हैं तो कोई भी बड़ा पद उन्हें आसानी से मिल सकता है। हालाँकि प्रधानमंत्री पद तो लोकसभा चुनाव में मिलने वाली सीटें ही तय करेंगी। जिस दल के पास ज़्यादा सीटें होंगी, उसका दावा इस पद के लिए ज़्यादा सशक्त होगा।
विपक्षी एकता के इन प्रयासों के बीच भाजपा कहाँ है? वह इन प्रयासों को महज़ एक तमाशा बताने में जुटी हुई है। नीतीश कुमार के सोमवार के बयान का भी भाजपा ने मज़ाक़ उड़ाया। कहा- नीतीश जो कहते हैं वो कभी नहीं करते यानी वे कुछ भी नहीं बनना चाहते, इसका मतलब ज़रूर कोई बड़ा पद चाहते हैं।
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