26 वीक प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन केस की SC में सुनवाई आज: पिछली सुनवाई में AIIMS बोर्ड को महिला की जांच रिपोर्ट पेश करने को कहा था

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सुप्रीम कोर्ट 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन की याचिका पर 9 अक्टूबर से सुनवाई कर रहा है।

26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को मेडिकली अबॉर्ट करने के केस में आज 16 अक्टूबर को सुबह 10.30 बजे सुनवाई होगी। पिछली सुनवाई 13 अक्टूबर को हुई थी।

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उस दिन दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने निर्देश दिया था कि AIIMS के डॉक्टर्स का बोर्ड महिला की मानसिक और शारीरिक जांच करके उसकी मनोविकृत्ति का पता लगाए और अगली सुनवाई के दौरान रिपोर्ट पेश करे।

CJI ने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ता महिला को बोर्ड के सामने पेश होना होगा। इसके बाद बोर्ड रिपोर्ट बनाए कि महिला को दी जा रही डिप्रेशन की दवाओं से भ्रूण को कैसे बचाया जा सकता है।

चार दिन पहले पूछा था- क्या महिला कुछ दिन और इंतजार नहीं कर सकती
12 अक्टूबर को CJI की बेंच ने याचिकाकर्ता महिला के वकील से पूछा था कि 26 सप्ताह तक इंतजार करने के बाद, क्या वह कुछ दिन और इंतजार नहीं कर सकती। साथ ही ASG ऐश्वर्या भाटी और महिला की वकील को इस संबंध में उससे बात करने को भी कहा था।

पिछली सुनवाई के दौरान CJI की बेंच ने क्या-क्या कहा…

  • संसद ने एक कानून बनाया है, जो प्रो-लाइफ और प्रो-चॉइस को बैलेंस करता है। इसे ध्यान में रखते हुए 24 वीक का कट ऑफ लगाया है। लेकिन हमारा कानून प्रो-चॉइस है।
  • अगर आपको किसी महिला की जान बचानी है तो आप प्रेग्नेंसी खत्म कर सकते हैं। हमारे कानून में महिला के जीवन को सर्वोपरि रखा गया है। जैसा कि आयरलैंड में हुआ था जब एक महिला की मौत सिर्फ इसलिए हुई थी, क्योंकि वह गर्भपात नहीं करा सकी और फिर आयरिश कानून में संशोधन किया गया।
  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के लिए कानून में लिखा है- 20 वीक के लिए एक मेडिकल प्रैक्टिशनर, 20-24 वीक के लिए 2 डॉक्टर्स और फिर 24 वीक से ज्यादा के लिए एक बोर्ड फैसला लेगा। अगर महिला की जान खतरे में है तो आपको मेडिकल बोर्ड की जरूरत नहीं, क्योंकि जाहिर है ऐसा इमरजेंसी में किया जाएगा।
  • असामान्यता के साथ पैदा हुआ बच्चा माता-पिता के जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करेगा और दूसरा, इसका असर बच्चे के जीवन की गुणवत्ता पर पड़ेगा।
  • भले ही आप 28वें हफ्ते में भ्रूण की असामान्यता का पता लगा लें, हमारा कानून कहता है कि डॉक्टर जो कहें, उसके अनुसार चलें। जब आप मां की जान बचा रहे हैं, तो कोई कटौती नहीं है।

सिलसिलेवार पढ़िए इस केस में अब तक क्या-क्या हुआ

  • 9 अक्टूबर: 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी खत्म करने की इजाजत दी, कहा- AIIMS जाएं जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा कि अपने शरीर पर महिला का अधिकार है। अगर अनचाहे गर्भधारण से बच्चा पैदा होगा, तो उसे पालने की जिम्मेदारी महिला पर ही आएगी। इस वक्त वह इसके लिए तैयार नहीं है। उसे अबॉर्शन की इजाजत दी जाती है। कोर्ट ने महिला से कहा था कि वो 10 अक्टूबर को AIIMS जाए।
  • 10 अक्टूबर: SC ने अबॉर्शन रोका, मां की अपील- मेरे 2 बच्चे, तीसरा नहीं चाहिए AIIMS के डॉक्टरों ने मंगलवार को कोर्ट में बताया कि भ्रूण के पैदा होने की संभावना है। इसके बाद कोर्ट ने डॉक्टरों को अबॉर्शन प्रोसेस रोकने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिए बुधवार को एक नई बेंच का गठन किया जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर गर्भ में शिशु जीवित मिले तो डॉक्टरों की सलाह से उसे इन्क्यूबेशन में रख सकते हैं
  • 11 अक्टूबर: नई मेडिकल रिपोर्ट देखकर फैसला पलटा, 2 जज बंटे, केस बड़ी बेंच को भेजा कोर्ट ने नई मेडिकल रिपोर्ट पर नाराजगी जाहिर की। बेंच ने कहा कि रिपोर्ट में लिखा है कि 26 हफ्ते के भ्रूण के जीवित रहने की काफी संभावना है। जस्टिस हिमा कोहली प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के पक्ष में नहीं थीं, लेकिन जस्टिस बीवी नागरत्ना उनसे सहमत नहीं थीं। दोनों जजों के बीच मतभेद के बाद मामले को बड़ी बेंच के पास रेफर कर दिया गया। पढ़ें पूरी खबर…
  • 12 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- महिला इतने दिन रुकी, क्या और इंतजार नहीं कर सकती चौथे दिन की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा था- हमें अजन्मे बच्चे के अधिकार को मां के अधिकार के साथ बैलेंस करने की जरूरत है। वो एक जीवित भ्रूण है। क्या आप चाहते हैं कि हम AIIMS के डॉक्टरों को उसके दिल को रोकने के लिए कहें, हम ऐसा नहीं कर सकते। हम किसी बच्चे को नहीं मार सकते।

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क्या है यह पूरा मामला- महिला बोली- प्रेग्नेंट हुई, पता नहीं चला
याचिकाकर्ता ने अपनी अपील में कहा था कि उसका दूसरा बच्चा अभी छोटा है और ब्रेस्ट फीडिंग करता है। ऐसे में महिला ने लैक्टेशनल अमेनोरिया नाम के कॉन्ट्रासेप्टिव तरीके का इस्तेमाल किया, लेकिन ये तरीका फेल हो गया और वह प्रेग्नेंट हो गई। इसके बारे में उसे काफी समय बाद पता चला।

कोर्ट ने भी माना कि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान प्रेग्नेंसी की संभावना बेहद कम होती है। सोमवार को कोर्ट ने याचिकाकर्ता को वर्चुअली पेश होने को कहा और उससे पूछा कि क्या वह प्रेग्नेंसी को जारी रखना चाहती है, लेकिन महिला ने कोर्ट से अबॉर्शन की इजाजत मांगी।

याचिकाकर्ता के वकील के मुताबिक महिला को पहली बार 28 सितंबर को अपनी गर्भावस्था के बारे में पता चला। 5 दिनों के भीतर वह सुप्रीम कोर्ट आईं। उनमें भी 3 दिन छुट्टियां थीं।

कोर्ट में महिला का इलाज कर रहे अमित मिश्रा ने बताया कि उनका अक्टूबर 2022 से, यहां तक ​​कि प्रेग्नेंसी के दौरान भी पोस्ट पार्टम डिप्रेशन का इलाज नोएडा के क्लिनिक में चल रहा था।

दिसंबर 2017 में उनकी शादी हुई थी। पहला बच्चा 30 सितंबर 2019 और दूसरा बच्चा 30 सितंबर 2022 में हुआ। हालांकि CJI चंद्रचूड़ ने सवाल उठाया कि नवंबर 2022 के शुरुआती प्रिस्क्रिप्शन में यह नहीं लिखा है कि किस बीमारी के लिए दवाएं दी गई थीं।

 

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