सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि दूसरे राज्य के मामले में अग्रिम जमानत देने की ऐसी शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार 20 नवंबर को कहा कि हाईकोर्ट या सेशंस कोर्ट किसी व्यक्ति को सीमित अवधि के लिए अग्रिम जमानत दे सकते हैं। ऐसा अपने क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के बाहर दर्ज एफआईआर के संबंध में गिरफ्तारी की आशंका के चलते किया जा सकता है। एक नागरिक की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है। यह जीवन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सम्मान का अधिकार है।
शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में जहां अभियुक्तों को अन्य राज्यों में दर्ज मामलों में गिरफ्तारी की आशंका होती है, ऐसे में राहत देने के लिए कई शर्तें रखीं। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भूयन की बेंच ने ये फैसला सुनाया।
हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा कि दूसरे राज्य के मामले में अग्रिम जमानत देने की ऐसी शक्ति का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट में कैसे पहुंचा मामला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महिला की अपील पर आया। इसमें राजस्थान के झुंझुनू जिले के चिड़ावा पुलिस स्टेशन में दर्ज दहेज उत्पीड़न का केस किया था। बेंगलुरु की एक स्थानीय अदालत ने अलग हो रहे पति और उसके परिवार के सदस्यों को अग्रिम जमानत दे दी। महिला ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
सवाल उठा कि क्या सेशंस कोर्ट धारा 438 के तहत अधिकार क्षेत्र के बाहर दर्ज एफआईआर पर अग्रिम जमानत दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 85 पेज के फैसले में सशर्त जमानत को मंजूरी दे दी।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा
सीमित अवधि में अग्रिम जमानत का आदेश पारित करने से पहले जांच अधिकारी और पब्लिक प्रॉसिक्यूटर को सुनवाई की पहली तारीख पर नोटिस जारी किया जाएगा। हालांकि, उचित मामले में अदालत के पास अंतरिम अग्रिम जमानत देने का अधिकार होगा।