हवन व भंडारे के साथ देव प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न
एस• के• मित्तल
सफीदों, नगर की गीता कालोनी स्थित नवनिर्मित श्री गीता मन्दिर का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव रविवार को हवन व भंडारे के साथ संपन्न हो गया। समापन समारोह में स्वामी मुक्तानंद महाराज भिक्षु: का सानिध्य प्राप्त हुआ। इस मौके पर हरियाणा गौसेवा आयोग के चेयरमैन श्रवण कुमार गर्ग व हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व सदस्य एडवोकेट विजयपाल सिंह विशेष अतिथि के रूप से उपस्थित थे। समापन सत्र में महिलाओं ने मंगल गीत गाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया। इस मौके पर स्वामी मुक्तानंद महाराज भिक्षु: के सानिध्य में देवों की प्राण-प्रतिष्ठा हुई।
सफीदों, नगर की गीता कालोनी स्थित नवनिर्मित श्री गीता मन्दिर का प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव रविवार को हवन व भंडारे के साथ संपन्न हो गया। समापन समारोह में स्वामी मुक्तानंद महाराज भिक्षु: का सानिध्य प्राप्त हुआ। इस मौके पर हरियाणा गौसेवा आयोग के चेयरमैन श्रवण कुमार गर्ग व हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग के पूर्व सदस्य एडवोकेट विजयपाल सिंह विशेष अतिथि के रूप से उपस्थित थे। समापन सत्र में महिलाओं ने मंगल गीत गाकर माहौल को भक्तिमय बना दिया। इस मौके पर स्वामी मुक्तानंद महाराज भिक्षु: के सानिध्य में देवों की प्राण-प्रतिष्ठा हुई।
उसके उपरांत विशाल हवन का आयोजन किया गया। हवन में असंख्य श्रद्धालुओं ने अपनी-अपनी आहुति डालकर क्षेत्र व समाज के सुख-शांति की कामना की। तदोपरांत प्रतिमाओं का अनावरण, आरती व भोग का कार्यक्रम हुआ। उसके बाद विशाल भंडारे आयोजन किया गया। भंडारे में श्रद्धालुओं ने पूरे श्रद्धाभाव से प्रसाद ग्रहण किया। अपने संबोधन में स्वामी मुक्तानंद महाराज भिक्षु: ने कहा कि श्रद्धालुओं की अथक मेहनत व सहयोग से इस भव्य मंदिर निर्माण व अनावरण समारोह संपन्न हुआ। जिसके लिए सभी लोग बधाई के पात्र हैं। यह मंदिर निर्माण समस्त क्षेत्र के कल्याण के निमित हुआ है। उन्होंने कहा कि जीवन में श्रद्धा का अपना एक विशेष महत्व है। श्रद्धा से ही भगवान को अपना बनाया जा सकता है। प्रेम में इतना प्रभाव होता है कि हजारों किलोमीटर की दूरी पर कोई किसी को सच्चे मन से याद करे तो उसे यह पता चल जाता है कि कोई उसे याद कर रहा है।
प्रभु भक्ति के लिए व्यक्ति के अंदर प्रेम का भाव होना अति आवश्यक है। व्यक्ति गुरु के प्रति सच्चे मन से समर्पित हो तो उसकी गुरु से ओर ज्यादा लेने की इच्छा होती है उसे प्रार्थना कहा जाता है। समर्पण, प्रेम व प्रार्थना के पश्चात प्रतीक्षा भक्ति एक अहम अंग है।