दुनिया भर में क्लाइमेट चेंज की वजह से सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ सकता है। इससे भारत-पाकिस्तान समेत ज्यादा आबादी वाले देशों में लोगों को ज्यादा गर्मी होगी। इसकी वजह से लोगों को हीट स्ट्रोक और हार्ट अटैक जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
यह रिसर्च पेन स्टेट कॉलेज ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन डेवलपमेंट, पूर्ड्यू यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ साइंसेज और पूर्ड्यू इंस्टीट्यूट फॉर ए सस्टेनेबल फ्यूचर ने मिलकर किया है। इस रिपोर्ट को प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के रिसर्च पेपर में पब्लिश किया गया है।
विकसित देश, विकासशील देशों की तुलना में कम प्रभावित
रिसर्च में बताया गया कि अगर दुनियाभर का तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 2 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ता है तो इससे कई देशों में हीटवेब बढ़ेगी। इसमें भारत, पाकिस्तान, पूर्वी चीन और सब-सहारा अफ्रीका का हिस्सा शामिल है।
साथ ही रिपोर्ट में बताया गया कि अगर धरती का तापमान प्री-इंडस्ट्रियल लेवल से 3 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ता है तो इसका असर अमेरिक में भी होगा। रिसर्च में पाया गया कि विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में ज्यादा प्रभावित होंगे।
रिसर्च पेपर के को-राइटर और पर्ड्यू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मैथ्यू ह्यूबर ने बताया है कि इस बढ़ता गर्मी का सबसे ज्यादा नुकसान लोवर और मिडिल इनकम वाले देशों को होगा।
कम इनकम वाले देशों को सबसे ज्यादा नुकसान: प्रो ह्यूबर
पर्ड्यू यूनिवर्सिटी में अर्थ, एटमॉस्फियर और प्लानेटरी साइंस के प्रोफेसर मैथ्यू ह्यूबर ने कहा कि गर्मी की सबसे खराब दिक्कतें उन इलाकों में होगी, जो देश समृद्ध नहीं हैं। इसके अलावा जहां आने वाले दशकों में तेजी से जनसंख्या बढ़ने की उम्मीद है।
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उन्होंने कहा कि ये देश अमीर देशों की तुलना में बहुत कम ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन करते हैं। इसके बावजूद इन्हें गर्मी की मार झेलनी पड़ सकती है। इससे करोड़ों गरीब लोग प्रभावित होंगे और लाखों लोग मर सकते हैं।
प्रो ह्यूबर ने बताया कि तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन जलाने से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड को कम किया जाना चाहिए। अगर बदलाव नहीं किए गए तो लोवर और मिडिल इनकम वाले देशों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
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